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चौथी लोकसभा में पहली बार मिला था नेता प्रतिपक्ष

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नई दिल्ली। संसद का सत्र सांसदों के शपथ ग्रहण समारोह के साथ आज से शुरू हो गया। इस सत्र में लोकसभा अध्यक्ष सहित नेता प्रतिपक्ष जैसे पदों पर देश की निगाह लगी रहेगी। अध्यक्ष कैसे चुना जाता है इसके सहित नेता प्रतिपक्ष कौन होगा यह सवाल राजनीति के जानकारों के जेहन में घूम रहा है।

उल्लेखनीय है कि इस बार 99 सीट जीतकर कांग्रेस ने नेता प्रतिपक्ष तय करने की पात्रता प्राप्त की है। नेता प्रतिपक्ष उसी पार्टी का बन पाता है जिस पार्टी के लोकसभा सदस्यों की कुल सदस्य संख्या से 10 फीसदी सीट होती है।

पहली तीन लोस में खाली था

ज्ञात हो कि कांग्रेस 2014 और 2019 के चुनाव के कमजोर प्रदर्शन के बाद इस बार अपने रंग में नजर आ रही है। 2014 में नेता प्रतिपक्ष नहीं चुना जा सका था। यही हाल 2019 की लोकसभा का रहा।

राजनीति के जानकारों के मुताबिक पहली तीन लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष किसी को नहीं चुना जा सका था। पंडित जवाहर लाल नेहरू के सामने विपक्षी दल कुल सदस्य संख्या का 10 प्रतिशत का आंकड़ा नहीं छू पाए थे इस कारण पहली, दूसरी और तीसरी लोकसभा में किसी को नेता प्रतिपक्ष बनने का अवसर नहीं मिला।

देश को पहला नेता प्रतिपक्ष चौथी लोकसभा में मिला। तब रामसुभाग पहले नेता प्रतिपक्ष बने थे। इसके बाद पांचवी, सांतवी, आठवी लोकसभा में भी यह पद खाली रहा। 2014 की 16वीं और 2019 की 17वीं लोकसभा में भी पद रिक्त रहा।

लोकसभा के कुल 18 क्रम हो चुके हैं जिनमें आठ बार लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष का पद रिक्त रहा है। नेता प्रतिपक्ष को केबिनेट मंत्री स्तर की सुविधाएं मिलती है। इसके अलावा उन्हें लोकलेखा, सार्वजनिक उपक्रम जैसी महत्वपूर्ण समितियों का सदस्य बनने का अवसर मिलता है। कई अन्य समिति में भी वह चुने जाते हैं।

सरकार की नीतियों की आलोचना करने की स्वतंत्रता के साथ ही नेता प्रतिपक्ष को केन्द्रीय सूचना आयोग की प्रमुखों की नियुक्ति करने वाली चयन समिति का सदस्य बनने का गौरव प्राप्त होता है। इसी तरह एनएचआरसी, सीबीआई जैसी इकाई में भी नियुक्ति करने वाली समिति का सदस्य नेता प्रतिपक्ष होता है।

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