रायपुर | संवाददाता: छत्तीसगढ़ की सरकार 6 महीने बाद भी वन्य जीवों के संरक्षण के लिए वन्यप्राणी बोर्ड का गठन नहीं कर पाई है.
यह तब है, जब पड़ोसी राज्य मध्यप्रदेश ने इन छह महीनों में न केवल वन्यप्राणी बोर्ड का गठन कर लिया, बल्कि इसकी पहली बैठक भी कर ली है. इस बैठक में नए टाइगर रिजर्व को लेकर भी चर्चा हो चुकी है.
क़ानून इस संवैधानिक संस्था की साल में दो बैठक अनिवार्य है. लेकिन छह महीने बाद भी इसकी कोई बैठक नहीं हो पाई है क्योंकि बोर्ड अस्तित्व में ही नहीं है.
वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत राज्य में वन्यप्राणी बोर्ड का गठन अनिवार्य है.
वन एवं पर्यावरण से संबंधित समस्त बड़े फ़ैसलों को इस वैधानिक संस्था वन्यप्राणी बोर्ड में प्रस्तुत किया जाता है और इस बोर्ड की सहमति के बाद ही उन परियोजनाओं पर मुहर लगती है.
यह बोर्ड वन और वन्यजीवों के संरक्षण और विकास को भी बढ़ावा देता है.
यह मुख्य रूप से वन्यजीव से जुड़े मामलों से संबंधित मुद्दों से निपटता है. यह बोर्ड उन परियोजनाओं का भी ध्यान रखता है, जो राष्ट्रीय उद्यानों और अभयारण्यों के अंदर या उनके आसपास हो रही हैं या होने वाली हैं.
इस बोर्ड के पास वन्यजीवों से संबंधित सभी मामलों की समीक्षा करने की शक्ति है. यह परियोजनाओं को उनके महत्व और दुष्प्रभावों के आधार पर स्वीकृत या अस्वीकार कर सकता है.
लेकिन बाघों की संख्या बढ़ाने और मानव-हाथी द्वंद्व को कम करने के लिए कागज़ों में योजनाएं बनाने वाला छत्तीसगढ़ का वन विभाग इस बोर्ड के गठन को ही भूला बैठा है.
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