रायपुर। प्रदेश में पुरानी पेंशन बहाली को लेकर जहां लाखों चेहरों पर मुस्कान है वही हजारों चेहरे ऐसे भी हैं जो उदास है। जिनके पास न कहने के लिए शब्द हैं और न चुनने के लिए विकल्प क्योंकि यह वह शिक्षक है जिन्होंने अपनी पूरी जिंदगी छत्तीसगढ़ की शिक्षा व्यवस्था को बेहतर बनाने में खपा दी लेकिन जब उनके नौकरी के अंतिम दिनों में सौगात मिलने की बारी आई तो उनके हिस्से में आई सिर्फ और सिर्फ मायूसी….. हम बात कर रहे हैं उन शिक्षक एलबी (संवर्ग) के अलग अलग शिक्षकों की जो 2028 से पहले रिटायर होने वाले हैं जिनकी कुल सेवा तो लगभग 25 से 29 साल की हैं पर जिस सेवा को पेंशन के लिए गिना जा रहा है वह 10 साल से भी कम है और यही वजह है कि पेंशन के बने हुए पुराने नियम के तहत वह ओपीएस के दायरे से बाहर हो जा रहे हैं। उनकी व्यथा सुनने वाला कोई नहीं है। यह ऐसे शिक्षक हैं जिन्होंने विभाग को उस समय सहारा दिया जिस समय विभाग को सबसे अधिक जरूरत थी यानी जब नए शिक्षकों की भर्ती बंद करके शिक्षाकर्मी के जरिए स्कूल शिक्षा विभाग को सहारा देने की कोशिश की गई। तमाम उम्र संघर्ष करते-करते यह 2018 में शासकीयकरण की दहलीज पर पहुंचे तो एक झटके में इनकी सेवा शून्य हो गई और वहीं से शुरु हो गया हर लाभ को खोने का सिलसिला…. आलम यह है कि जो शिक्षक जुलाई 2023 से पहले रिटायर हो रहे हैं उन्हें ग्रेजुएटी तक का लाभ नहीं मिल रहा है। क्योंकि उसके लिए भी 5 साल की सेवा अनिवार्य होती है। जब अर्जित अवकाश के नकदीकरण की बारी आती है तब भी उनके उसी अर्जित अवकाश की गणना हो रही है जो उनके खाते में जुलाई 2018 के बाद जमा हुई है। दरअसल संविलियन आदेश में इस बात का उल्लेख किया गया था कि “देय सभी लाभ के लिए सेवा की गणना संविलियन दिनांक जुलाई 2018 से की जाएगी” और यहीं पर जाकर सारा मामला फंस जा रहा है।
ओपीएस लागू होते ही विकल्प पत्र भरने के लिए डीडीओ के द्वारा दबाव बनाया जा रहा है लेकिन शिक्षकों को यह समझ नहीं आ रहा है कि यह उनके साथ प्रकृति का कैसा इंसाफ है जिसमें सबसे अधिक सेवा देने के बाद सबसे अधिक नुकसान भी उन्हें ही हो रहा है ।