संजय के. दीक्षित
तरकश, 22 जनवरी 2023
प्रोटोकॉल की सीमाएं
आईएफएस अफसर आलोक कटियार को सरकार ने जब 25 हजार करोड़ का जल जीवन मिशन का दायित्व सौंपा तो उन्हें इस बात का इल्म नहीं रहा होगा कि उन्हें इस मिशन का काम किस कदर पटरी से उतर चुका है और वहां कैसे-कैसे खटराल अधिकारियों से साबका पड़ेगा। जाहिर है, सियासी पृष्ठभूमि वाले कटियार आईएफएस बिरादरी में दबंग अधिकारी माने जाते हैं। मगर जल जीवन मिशन का शुरूआती अनुभव कुछ अच्छा नहीं रहा। विधानसभा में जब बिलासपुर के 100 करोड़ से अधिक के टेंडर घोटाले में हंगामा हुआ, तो वहां के ईई को सरकार ने सस्पेंड कर दिया। पीएचई के विभागीय वेबसाइट में कटियार ने सस्पेंशन का आर्डर अपलोड करते हुए लिखा…रेड अलर्ट। इस पर ईई ने न केवल थैंक्यू लिखा बल्कि पूरा प्रदेश का ब्योरा लिख लिख डाला… किस जिले में जल जीवन मिशन में क्या खेल हो रहा है। राज्य बनने के बाद अब तक मुझे इस तरह का वाकया याद नहीं कि जिले स्तर का कोई अधिकारी विभाग के सुप्रीमों की कमेंट पर कभी ऐसा पलटवार किया होगा। सिस्टम को इसे देखना चाहिए, अफसरों में इतना साहस कहां से आ रहा है…मर्यादा और प्रोटोकॉल की सीमाएं टूट क्यों रही हैं।
क्रिकेट की टिकिट या…
भारत-न्यूजीलैंड वनडे इंटरनेशनल क्रिकेट मैच की टिकिट ने रेलवे के तत्काल टिकिट को पीछे छोड़ दिया। रेलवे के तत्काल के लिए आप सुबह कंप्यूटर खोल कर बैठ जाएं या रेलवे के काउंटर पर खड़े हो जाएं तो सबको नहीं फिर भी दस-बारह लोगों को मिल ही जाती है। मगर क्रिकेट की जादुई टिकिट ने लोगों को ऐसा छकाया कि पूछिए मत! मैच के आखिरी दिन तक लोग पैसा लिए टिकिट की जुगाड़ में लगे रहे…ठेकेदार, सप्लायर नोटों की गड्डी लेकर भटकते रहे…किसी भी रेट में मिल जाए…वरना, साहब नाराज और साहब नाराज तो रोजी-रोटी का सवाल। दरअसल, बड़े अफसरों का ये अपना स्टाईल होता है…ये सदियों से चला आ रहा है…कोई भी पैसे लगने वाला काम हो, विभागों के ठेकेदारों का यह परम कर्तव्य है।
सिरदर्द
रायपुर में बैठकर वनडे क्रिकेट मैच देखना लोगों के लिए बड़ा रोमांचकारी रहा मगर उनसे पूछिए, जो सिस्टम में थोड़ा-बहुत प्रभाव रखते हैं। लास्ट तीन दिन उनका इतना हैट्रिक रहा कि लोग फोन उठाने में घबराने लगे। कॉल रिसीव भी किए तो एक ही रोना क्या बताएं…बड़ा बुरा हाल है, लोग पास के लिए तंग कर डाले हैं। पास मांगने वालों की भी जरा सुनिये। किसी को भी एक पास नहीं, दो चाहिए। एक उनके लिए, दूसरा उनके दोस्त के लिए। क्या है कि वे मैच देखने अकेले नहीं जाएंगे…अकेल जाएंगे तो मैच देखने का मजा नहीं आएगा। अगर गैलरी की टिकिट मिली तो उपर गोल्ड का नहीं मिल पाएगा क्या? और गोल्ड का मिल गया तो उपर में मेरे चिंटु को मजा नहीं आता, मुझे लोवर का दे दीजिए। आलम यह हो गया था कि लगा कैसे 21 जनवरी का दिन निकले।
2 करोड़ का काम, 40 का बिल
प्रदेश भर के टेंट वालों का करीब ढाई सौ करोड़ रुपए पिछले चार साल से फंसा हुआ है। आलम यह हो गया है कि टेंट वाले अब 26 जनवरी का काम करने में भी हीलाहवाला कर रहे हैं। जिलों में कलेक्टर टेंट वालों को हड़काकर सरकारी काम करवा लेते हैं और पेमेंट के लिए पीडब्लूडी पर डाल देते हैं। एक नेताजी की बेटे की शादी हो रही है, उनका भी प्रेशर…टेंट लगा दो, फलां महोत्सव के आयोजन में बिल जोड़कर कलेक्टर को भेज देना। दरअसल, जो हाल अधिकारियों का है, वहीं नेताओं का भी। अधिकारी खुद के पैसे से अपने मोबाइल का रिचार्ज तक नहीं कराना चाहते, बाकी चीजें तो अलग है। अब नेताजी लोग दोनो हाथ से बटोर रहे हैं, फिर भी टेंट भी मुफ्त का चाहिए। नेताओं और अफसरों का सम्मान कम हो रहा, ये भी एक वजह है। ये दोनों कौम जेब से एक पैसा नहीं निकालना चाहता। जो कैश घर पहुंच गया, उससे इतना मोह माया कि छूना नहीं। इसका फायदा नीचे वाले भी उठाते हैं। एक टेंट वाले ने दो करोड़ का सरकारी काम किया और 40 करोड़ बिल भेज दिया। उस चक्कर में बाकी टेंट वाले फंस गए हैं।
ऐसा भी हुआ है
भारत-न्यूजीलैंड मैच से छत्तीसगढ़ में क्रिकेट का खुमार चढ़ा हुआ है। ऐसे में, क्रिकेट स्टेडियम से जुड़े रोचक तथ्य भी आपको जानना चाहिए। बात 2013 की है…स्टेडियम के उद्घाटन के पांच बरस बाद पहली बार आईपीएल की मेजबानी मिली थी। मगर स्टेडियम की कोई तैयारी थी नहीं। टाईम भी नहीं था। यही कोई डेढ़-एक महीने बचे होंगे। जल्दीबाजी के सरकारी काम कैसे होते हैं, ये बताने की जरूरत नहीं। उस समय आईपीएस राजकुमार देवांगन स्पोर्ट्स कमिष्नर थे। उन्होंने स्टेडियम में कुसिर्यो से लेकर तमाम इंतजामात के लिए 65 लाख का बजट सरकार को दिया। खर्च का ब्यौरा देख तब के चीफ सिकरेट्री सुनील कुमार भड़क गए। सबसे पहले उन्होंने सीएम से बात कर राजकुमार को हटवाकर आरपी मंडल को खेल सचिव और खेल आयुक्त बनवाया। इसके बाद काट-छांट करके स्टेडियम के लिए 34 लाख का बजट फायनल हुआ। सीएस ने खुद दो बार स्टेडियम का विजिट किया। और टीम मंडल ने आईपीएल से हफ्ते भर पहले स्टेडियम को तैयार कर सरकार को सौंप दिया। इसमें सबसे बड़ी बात यह हुई कि 34 लाख की बजाए 29 लाख में पूरा काम कंप्लीट हो गया। छत्तीसगढ़ के 22 साल में यह पहला और आखिरी काम होगा, जो बजट से कम में कंप्लीट हुआ।
सचिवों का रात्रि विश्राम
पिछले दो दशकों से यह सुनते आ रहे….जो भी सरकार बनती है प्रभारी सचिवों को निर्देश जारी करती है कि सभी को अपने प्रभार वाले जिलों में एक रात गुजारनी होगी। जीएडी से इसका आदेश जारी होता है मगर वह कभी इसकी सुध नहीं लेता कि कोई सिकरेट्री किसी जिले में रात गुजारी क्या? अभी हाल ही में एक अफसर ने इस पर चुटकी ली…सिकरेट्री मंत्रालय में नहीं बैठ रहे तो जिलों में रात्रि विश्राम…ये तो जोक हैं।
दीया तले अंधेरा
पुलिस मुख्यालय के वित्त और प्रबंध विभाग का क्लर्क अधिकारियों के आंखों में धूल झोंककर जिलों को निर्माण और मरम्मत मद का फंड ट्रांसफर करता रहा। नोटशीट पर एडीजी का खुद ही दस्तखत कर एप्रूवल दे देता था और ट्रांसफर भी। असल में, जिले वाले पीएचक्यू के बाबुओं से सेटिंग रखते हैं, ताकि ज्यादा-से-ज्यादा पैसा मिल जाए। पैसा मिलेगा तभी तो ठेकेदारों से उन्हें कमीशन मिलेगा। वो तो सुकमा के एक पुलिस अधिकारी के फोन से मामले का भंडाफोड़ हो गया…वरना यह खेल बदस्तूर जारी रहता। सुकमा के पुलिस अधिकारी ने एडीजी को फोन लगाकर आग्रह किया…सर थोड़ा और अधिक फंड बढ़ा देते। एडीजी हक्के-बक्के रह गए…बोले, मैंने तो ऐसा कोई फंड जारी नहीं किया है। इसके बाद क्लर्क को निलंबित कर दिया गया। मगर पता नहीं किधर से क्या चकरी चली कि फिर बहाल भी।
पांच कमिश्नर
हाउसिंग बोर्ड में पता नहीं किस ग्रह की दशा खराब है कि कोई कमिश्नर टिक नहीं पा रहा है। राज्य बनने के बाद पहली बार भीम सिंह को कमिश्नर अपाइंट किया गया था। उनके बाद फिर शम्मी आबिदी आईं। शम्मी के बाद अय्याज तंबोली, फिर धर्मेंद्र साहू और अब सत्यनारायण राठौर। अब देखना है, सत्यनारायण कब तक क्रीज पर टिक पाते हैं।
अंत में दो सवाल आपसे
1. क्या राहुल गांधी के भारत जोड़ो यात्रा की समाप्ति के बाद छत्तीसगढ़ में मंत्रिमंडल की सर्जरी होगी?
2. नेता प्रतिपक्ष बेटे के मामले में मुश्किलों मे घिर गए हैं और प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव का काफिल बार-बार हादसे का शिकार हो जा रहा, बीजेपी के साथ ये अपशकुन क्यों हो रहा है?