44 दिनों में भी पूर्व मुख्यमंत्री राजनांदगांव संसदीय क्षेत्र में नहीं ठहरे, भिलाई स्थित अपने निवास से चुनावी अभियान के लिए निकलते हैं
बूथ, सेक्टर प्रभारियों में निराशा हावी, स्थानीय नेताओं को पूर्व सीएम के करीबियों के ऑर्डर फॉलो करने पड़ रहे
राजनांदगांव। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल लोकसभा चुनाव जीतने पूरा जोर लगा रहे हैं। वे गांव-गांव का धुंआधार दौरा कर रहे हैं। लेकिन उन्होंने अब भी राजनांदगांव संसदीय क्षेत्र से दूरी बनाए रखी है। 8 मार्च को प्रत्याशी बनाए जाने के बाद 10 मार्च को राजनांदगांव पहुंचे थे।
इसके कुछ ही दिनों बाद उन्होंने अपना चुनावी अभियान भी शुरु किया। उनके प्रोटोकॉल में कई गांव के दौरे शामिल होते हैं। बावजूद इसके 10 मार्च से 23 अप्रैल के अंतराल के बीच 44 दिनों में भी पूर्व मुख्यमंत्री राजनांदगांव संसदीय क्षेत्र में नहीं ठहरे हैं। वे लगातार भिलाई स्थित अपने निवास से चुनावी अभियान के लिए निकलते हैं और वापस वहीं लौटते हैं। किसी भी दिन उन्होंने क्षेत्र में रहकर अपने कार्यकर्ताओं-नेताओं से मंथन करने की जहमत नहीं उठाई। न ही उनसे कोई रणनीति साझा की जा रही है। कांग्रेसी अंधेरे में तीर चला रहे हैं। भूपेश बघेल को प्रत्याशी बनाए जाने को लेकर कांग्रेसियों में भी आक्रोश रहा। कई ने तो इसकी खुली खिलाफत की और मंच में भूपेश के सामने ही उन्हें कडुवा घूंट पिलाए। सुरेंद्र दाऊ के प्रखर विरोध ने उन्हें क्षेत्र में उनकी खिलाफ नाराजगी का एहसास करा दिया। डैमेज कंट्रोल के लिए भूपेश को राजनांदगांव में संगठन के नेताओं की परिक्रमा करनी पड़ी। प्रदेश संगठन उनके चुनाव प्रचार में उदासीन है। बघेल के करीबियों के गुट ने ही यहां डेरा डाल रखा है जो कि, कांग्रेसियों से काम करवा रहे हैं। कांग्रेसियों में इस बात को लेकर भी उदासिनता है कि उनसे किसी तरह की बातें साझा नहीं की जा रही है। भूपेश के करीबी नेता जिनमें अमूमन सभी संसदीय क्षेत्र के बाहर से हैं उन्हें उनके ऑर्डर फॉलो करने में दिक्कतें आ रहीं हैं। चुनावी व्यवस्थाओं को लेकर भी संगठन के लोग परेशान हैं। सूत्रों से पता चला है कि डोंगरगांव विधानसभा के कुछ हिस्से में तो गलत मतदाता पर्चियां छपवाकर भेज दी गई हैं। इनमें मतदाता का नाम और बूथ का नंबर गलत छपा है। इससे कई मतदाताओं में भी भ्रम की स्थिति पैदा हो रही है। मसला यह है कि, कांग्रेसी नेता अपनी समस्याएं, चुनाव में कमियां और जरुरतें किसी से साझा नहीं कर पा रहे हैं। सीधे भूपेश बघेल तक उनकी पहुंच है नहीं और दूसरे नेताओं से भी उनके संपर्क वैसे नहीं है। स्थानीय विधायकों ने भी अपना दखल सीमित रखा है। कार्यकर्ता – नेता इससे हताश हैं। बूथ प्रभारियों में इसे लेकर खासी निराशा है। संगठन भी इसका कोई निदान करने में सक्षम नहीं दिख रहा।
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