रायपुर। तेजी से बदलते सामाजिक परिदृश्य में पालक भी अपने बच्चों के समुचित विकास के लिए हर कदम उठाने को तैयार रहते हैं, लेकिन बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए एक विशिष्ट सोच अपनाने की भी जरूरत पालकों को है। इसके लिए पालकों को बच्चों के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण, समझदारी से बच्चों से साथ संव्यवहार और सजगतापूर्वक उनका सहभागी बनने की जरूरत है। आजकल की शिक्षा व्यवस्था में सकारात्मक व योजनाबद्ध तरीके से पालकों को बच्चों के प्रति जागरूक बनाने के लिए किसी प्रकार की व्यवस्था का समावेश नहीं है। कई बार पालकों के असंतुलित व्यवहार से बच्चों के विकास पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। इससे अनजाने में भी बच्चों के अधिकारों का हनन हो जाता है। सही देखरेख के अभाव में बच्चों के शोषण और अधिकारों से वंचित रह जाने की प्रबल संभावना रहती है। पालक सावधानी व समझदारी से अपने बच्चे का भविष्य संवार सकते हैं। बच्चे कल के भविष्य होते हैं। पालक अपने बच्चों को एक अच्छा नागरिक बनाकर परोक्ष रूप से सशक्त प्रदेश और देश निर्माण में भी सहायता कर सकते हैं।
छत्तीसगढ़ राज्य बाल संरक्षण आयोग द्वारा समझदार पालक सशक्त प्रदेश के नाम से जागरूकता कार्यक्रम तैयार किया गया है, जिसका उद्देश्य बच्चों के उचित मनोवैज्ञानिक विकास हेतु पालकों की मानसिकता तैयार करना है। पालकों के व्यक्तित्व, व्यवहार व बातचीत का बच्चों पर पड़ने वाले प्रभावों के संबंध में, पालकों को जागरूक बनाना है बच्चों के उचित व नैतिक व्यक्तित्व विकास के लिए पालकों को संवेदनशील बनाकर पालकों को बच्चों से संव्यवहार करते समय सावधानियों व प्रोत्साहन के संबंध में संवेदनशील बनाना है। इस प्रकार बच्चों के उचित मानसिक विकास के लिए कार्यक्रम के माध्यम से चेतना जगाकर बाल अधिकारों का संरक्षण करना है।
उत्कृष्ट पालक बनने के लिए आवश्यक कदम………….
उत्कृष्ट पालक बनने में बाधाएँ…
• टूटते हुए घर।
• घरेलू अनुशासन व घरेलू नियम कायदों का अभाव।
• पालकों के पास अतिव्यस्तता के कारण बच्चों के साथ समय बिताने का अभाव।
• टी.व्ही., वीडियो और इंटरनेट पर पर्याप्त नियंत्रण ना होना।
• पालकों को अपनी संस्कृति और मूल्यों की गहराई और उसके प्रभाव की समझ ना होना।
• बच्चों को समय ना देने के कारण अनावश्यक लाड़ प्यार करना।
ध्यान दें कि –
• बच्चों की अति सुरक्षा करने का परिणाम होता है उनमें आत्मविश्वास का अभाव।
• बच्चों को बहुत अधिक चिंता दिखाने का परिणाम होता है बच्चों में निराशा व चिंता की भावना पैदा होना।
• बच्चों से अति दक्षता की उम्मीद का परिणाम है बच्चों में असफल होने की भावना का विकास।
• बच्चों को बहुत ढील देने का अर्थ है। बच्चों में आक्रामक व हिंसक स्वभाव विकसित होना।
याद रखिए –
• सबसे ज्यादा जरूरी है बच्चों से संतुलित व्यवहार….
• बच्चे कैसे सीखते हैं ?
• बच्चे 80 प्रतिशत बातें सीखते हैं पालकों के व्यवहार से और उन्हें देखकर।
• बच्चे 20 प्रतिशत बातें सीखते हैं पालकों के उपदेशों से।
इसलिए सबसे ज्यादा जरूरी है कि पालक बच्चों के सामने उत्कृष्ट व्यवहार का उदाहरण पेश करें।
आक्रामक बच्चे
कुछ बच्चे आक्रामक हो जाते हैं, ऐसे बच्चों के घर में निम्नलिखित सामान्य बातें दिखाई देती हैं-
• कोई घरेलू अनुशासन नहीं ।
• बच्चों की कोई देखभाल व अनुश्रवण नहीं ।
• नियंत्रण का अभाव।
• बच्चों की समस्याएं हल ना करना।
• बच्चों को शारीरिक या मानसिक तौर पर चोट पहुंचाना जैसे बच्चों के साथ मारपीट या अति
• अपमानजनक व्यवहार।
कुछ बच्चों का व्यवहार उत्कृष्ट होता है, क्योंकि ऐसे बच्चों के माता-पिता/पालक-
• बच्चों से अत्यंत गहरा प्रेमभरा बंधन रखते हैं।
• अपने कर्त्तव्यों को सही तरीके से निभाते हैं।
• आनंद व शांति का वातावरण परिवार में बनाए रखते हैं।
• अपनी नैतिकता और मूल्यों भरे व्यवहार से बच्चों में नैतिकता और संस्कार देते हैं।
• बच्चों की समस्याएं पूरी गंभीरता से समझते व सुलझाते हैं।
• बच्चों में विवेक जागृत करते हैं।
उत्कृष्ट पालक बनिए, उत्कृष्ट बच्चे गढ़िए, उत्कृष्ट राष्ट्र के निर्माण में योगदान दीजिए।