रायपुर. भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है. यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है. भाद्रपद शुक्ल पक्ष सप्तमी के दिन एक वर्ष तक यह व्रत किया जाता है. अपराजिता सप्तमी में सूर्य देवता की पूजा होती है. भाद्रपद शुक्लपक्ष सप्तमी को अपराजिता भी कहा जाता है.
यह व्रत पुत्र प्राप्ति, पुत्र रक्षा तथा पुत्र अभ्युदय के लिए भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को किया जाता है. इस व्रत का विधान दोपहर तक रहता है. इस दिन जाम्बवती के साथ श्यामसुंदर तथा उनके बच्चे साम्ब की पूजा भी की जाती है. माताएँ भगवान शिव पार्वती का पूजन करके पुत्र प्राप्ति तथा उसके अभ्युदय का वरदान माँगती हैं. इस व्रत को मुक्ताभरण भी कहते हैं.
विधि
व्रत करने वाले को प्रातः काल स्नान आदि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए. दोपहर के समय चैक पूर कर चंदन, अक्षत, धूप, दीप, नैवेद्य, सुपारी तथा नारियल आदि से शिव-पार्वती की पूजा करे. इस दिन नैवेद्य भोग के लिए खीर-पूरी तथा गुड़ के पुए रखें. रक्षा के लिए शिवजी को डोरा भी अर्पित करें. डोरे को शिवजी के वरदान के रूप में लेकर उसे धारण करके व्रत कथा का श्रवण करना चाहिए.
अपराजिता सप्तमी व्रत
यह व्रत भाद्रपद शुक्ल पक्ष सप्तमी को किया जाता है. इसके प्रभाव से व्यक्ति प्रत्येक स्थान पर अपराजित रहता है. इसीलिए इसे अपराजिता कहा जाता है. इस व्रत का वर्णन ब्रह्मा जी ने गणेश जी से किया था.
पारणा
षष्ठी को उपवास और सप्तमी को विधिवत् सूर्यपूजन कर पारणा करे. इसी प्रकार एक वर्ष तक प्रत्येक शुक्ल पक्ष मे करते हुए तीन-तीन महीने मे पारणा करे. इस व्रत से मनुष्य सदैव अपराजेय रहता है. उसे धर्म अर्थ काम तीनो की प्राप्ति हो जाती है.
मंत्र
॥। ॐ अपराजिता महाविद्यायै नमः ॥
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