नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने कलकत्ता हाईकोर्ट के एक फैसले पर शुक्रवार को कड़ी आपत्ति जाहिर की। हाईकोर्ट के इस आदेश में किशोरियों को ‘अपनी यौन इच्छाओं पर नियंत्रण’ रखने की सलाह दी गई थी। शीर्ष अदालत ने हाईकोर्ट की इन टिप्पणियों को आपत्तिजनक और गैर-जरूरी बताया। न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति पंकज मिथल की पीठ ने कहा कि ये टिप्पणियां संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त किशोरों के अधिकारों का पूरी तरह से उल्लंघन हैं।
पीठ ने मामले में पश्चिम बंगाल सरकार और अन्य पक्षों को नोटिस जारी किया। उसने कहा, ‘हमारा प्रथम दृष्टया यह मानना है कि न्यायाधीशों से व्यक्तिगत विचार व्यक्त करने या उपदेश देने की अपेक्षा नहीं की जाती।’ शीर्ष अदालत ने इस मामले में अपनी सहायता के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता माधवी दीवान को न्याय मित्र नियुक्त किया। न्यायालय ने न्याय मित्र की सहायता के लिए अधिवक्ता लिज मैथ्यू को अधिकृत किया है।