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कुलपति, रजिस्टार, वित्त नियंत्रक को पकड़ने बनी टीमें

भोपाल।
राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (आरजीपीवी) के फरार चल रहे कुलपति, रजिस्टार और वित्त नियंत्रक को भगोड़ा घोषित कर पुलिस ने उन पर इनाम घोषित कर दिया है। जो मामला चर्चाओं में है, वह तो है ही इसके अलावा भी यूनिवर्सिटी में भ्रष्टाचार हुआ है। यहां भवन बनाने और फर्नीचर खरीदी के नाम पर करोड़ों का खेल हुआ है।

पिछले वर्ष रजिस्ट्रार और कुलपति पर आर्थिक अनियमित्ता के आरोप लगाए गए थे। रिपोर्ट में आरोपों की पुष्टि भी की गई थी। लेकिन मामले में अब तक कोई कार्रवाई नहीं हो सकी है। विश्वविद्यालय में कन्वेंशन सेंटर बनाने का काम वर्ष 2015 में शुरू किया गया। उस समय इस बिल्डिंग के लिए 14 करोड़ का बजट स्वीकृत किया गया था, सूत्रों के मुताबिक इस बिल्डिंग पर अब तक 80 करोड़ रु पए खर्च किए जा चुके हैं, इसका काम अब भी अधूरा है। इस सेंटर में 4 हॉल बनाए गए हैं। इनमें सबसे बड़े आॅडिटोरियम की क्षमता 2100 है, जबकि अन्य 3 हॉल में एक की क्षमता 300 और बाकी 2 की 150-150 है।

5 साल में 10 करोड़ बढ़ी कीमत
इन्क्यूबेशन सेंटर (केआरसी भवन ) तैयार करने का प्लान 2013 में तैयार किया गया था। उस समय इसकी कीमत 8.5 करोड़ थी। भवन का काम 2018 में शुरू किया गया था। इस समय भवन की कीमत 18 करोड़ आंकी गई।

दो करोड़ से अधिक का फर्नीचर  तीन साल से खा रहा धूल
केआरसी भवन के लिए विश्वविद्यालय ने लगभग दो करोड़ का फर्नीचर भी खरीदा है। जिसमें लग्जरी सोफे भी शामिल हैं। स्थिति यह है कि पिछले तीन साल से यह रखे-रखे धूल खा रहे हैं।

कोरोना काल में खरीदे पांच  करोड़ के सॉफ्टवेयर
विश्वविद्यालय में कोरोना काल दिसंबर 20 से 30 अप्रैल 21 तक लगभग 5 करोड़ रु पए के सॉफ्टवेयर खरीदे गए। मामले की शिकायत तकनीकी शिक्षा विभाग, सीएम से लेकर प्रधानमंत्री तक की गई। शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया है कि यदि जांच में इनसे कड़ी पूछताछ की जाती है तो पता चलेगा कि अधिकारियों को खरीदी गई सामग्री का सही नाम तक मालूम नहीं है।

किसकी अनुमति से हुए डीपीआर में बदलाव
विवि में इन्क्यूबेशन सेंटर, कन्वेंशन सेंटर, खेल ग्राउंड सहित अन्य डेवलपमेंट के कार्य किया जा रहे है। जिनमें स्वीकृत बजट से कई गुना अधिक खर्च किया गया है। नियम अनुसार डीपीआर में छोटे से छोटे बदलाव के लिए भवन समिति, इंजीनियर, आर्किटेक्ट के साथ कार्यपरिषद की मजूरी लेना जरूरी होता है। सूत्र बताते हैं कि विश्वविद्यालय द्वारा इस संबंध में किसी की अनुमति नहीं ली गई। इसके बारे में किसी को भी जानकारी नहीं है।

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