रायपुर | संवाददाता :छत्तीसगढ़ भले ‘ग्लोबल टाइगर डे’ पर सोमवार को कई आयोजन कर रहा है लेकिन पिछले कुछ सालों में बाघों की आबादी बढ़ाने की दिशा में, छत्तीसगढ़ वन विभाग ने कोई गंभीर प्रयास ही नहीं किया. यही कारण है कि एक तरफ़ पड़ोसी राज्य मध्यप्रदेश को ‘टाइगर स्टेट’ दर्ज़ा प्राप्त है, वहीं उसी मध्यप्रदेश से अलग हुए छत्तीसगढ़ में, नकारा अफ़सरों के कारण बाघों की जान के लाले पड़े हुए हैं.
पिछले कुछ सालों में एक के बाद एक बाघ ख़त्म होते चले गए.
अब हालत ये है कि राज्य सरकार ने मध्यप्रदेश से 3 बाघों को लाने का फ़ैसला किया है.
इन्हीं बाघों के सहारे राज्य में बाघों की आबादी बढ़ाने का लक्ष्य रखा गया है.
लेकिन राज्य का वन अमला बाघों को लेकर कितना संवेदनशील और गंभीर है, इसे महज इस बात से समझा जा सकता है कि पिछले चार महीनों से, वन विभाग का अमला राज्य के बार नवापारा के इलाके में घूम रहे एक मेहमान बाघ को कॉलर आईडी नहीं लगा पाया है.
गरमी से इस बाघ का पीछा करते-करते बरसात का मौसम आ गया.
अब हालत ये है कि बरसात में उग आई झाड़ियों में इस बाघ को तलाशना और मुश्किल होगा.
एनटीसीए के दिशा-निर्देश के अनुसार इस बाघ को प्राथमिकता के आधार पर कॉलर आईडी लगाया जाना चाहिए था.
लेकिन छत्तीसगढ़ का वन विभाग इसमें असफल रहा.
ऐसे में मध्यप्रदेश से लाये जाने वाले बाघों का जीवन किस हद तक सुरक्षित रहेगा,यह स्वाभाविक सवाल है.
नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी के अनुसार छत्तीसगढ़ में 2014 की गणना में 46 बाघ थे.
लेकिन 2018 में यह संख्या घट कर केवल 19 रह गई.
पिछले साल आई रिपोर्ट के अनुसार राज्य के तीन टाइगर रिजर्व उदंती-सीतानदी, अचानकमार और इंद्रावती में केवल सात बाघ हैं.
पिछले 10 सालों में राज्य के अलग-अलग इलाकों में लगातार बाघों के शिकार की ख़बरें आती रही हैं.
वन विभाग के स्थानीय अमले ने शिकारियों को पकड़ा भी है लेकिन बाघों की आबादी बढ़ाने की दिशा में वन विभाग ने कोई कोशिश नहीं की.
यहां तक कि जिस अचानकमार और बार नवापारा अभयारण्य से गांवों को विस्थापित किया गया, उन इलाकों को भी आज तक वन विभाग का अमला बाघों के अनुकूल विकसित नहीं कर पाया.
इसी तरह छत्तीसगढ़ सरकार ने 12 साल पहले गुरु घासीदास राष्ट्रीय अभयारण्य को टाइगर रिज़र्व बनाने की घोषणा की थी.
नेशनल टाइगर कंजरवेशन अथॉरिटी ने इसकी मंजूरी भी दे दी. लेकिन सरकार ने इस फ़ाइल को ठंडे बस्ते में डाल दिया.
2019 में भूपेश बघेल की सरकार ने भी इस टाइगर रिजर्व के नाम पर विज्ञापन छपवाए, वाहवाही लूटी.
लेकिन नेशनल टाइगर कंजरवेशन अथॉरिटी की अंतिम मंजूरी के बाद भी, बघेल सरकार ने इस प्रस्तावित टाइगर रिजर्व को अधिसूचित नहीं किया.
गुरु घासीदास अभयारण्य झारखंड के बेतला टाइगर रिजर्व और मध्यप्रदेश के संजय से जुड़ा हुआ है.
ऐसे में बाघों का एक बेहतर कॉरिडोर बन सकता था.
लेकिन खनन के चक्कर में वन अमला चुप्पी मार कर बैठ गया.
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