रायपुर। छत्तीसगढ़ की संस्कृति और सभ्यता की चर्चा पुरातन काल से होती आ रही है। बीते कुछ समय तक इस संस्कृति को लगभग भुला दिया गया था। लेकिन छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने के बाद से ही भूपेश बघेल ने यहां की संस्कृति और पुरातन सभ्यता को विश्व पटल पर लाने की योजना पर काम शुरू किया।
स्थानीय त्यौहारों के अवसर पर अवकाश, बोरे-बासी को वैश्विक पहचान दिलाना, स्थानीय त्यौहारों के प्रति लोगों को जागरुक करना मुख्यमंत्री की पहल का परिणाम है। इसी कड़ी छत्तीसगढ़ की संस्कृति से लोगों को जोड़ने के लिए छत्तीसगढ़िया ओलंपिक की शुरूआत की गई है जिसकी संकल्पना खुद मुख्यमंत्री ने की है।
मुख्यमंत्री की सादगी, संजीदगी और स्थानीय संस्कृति के प्रति लगाव का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि छत्तीसगढ़िया ओलंपिक के शुभारंभ के अवसर पर मुख्यमंत्री खुद रेफरी की सीटी लेकर महिला कबड्डी खिलाड़ियों के बीच पहुंच गए और मैच में निर्णायक की भूमिका निभाने लगे। इतना ही नहीं मुख्यमंत्री ने लंगड़ी, भौंरा, बाटी (कंचा) और पिट्ठुल जैसे खेलों मे खिलाड़ी के रूप में खुद भी हाथ आजमाया और अन्य खिलाड़ियों के साथ खुद को एक खिलाड़ी के रूप में प्रस्तुत किया और खिलाड़ियों का उत्साह वर्धन किया।
गौरतलब है कि छ्त्तीसगढ़ की संस्कृति से लोगों को जोड़ कर रखने के लिए स्थानीय खेलकूद को बढ़ावा देने के लिए मुख्यमंत्री की पहल पर छत्तीसगढ़िया ओलंपिक की शुरूआत आज 6 अक्टूबर से की गई है। 6 जनवरी 2023 तक चलने वाले इस ओलंपिक में दलीय एवं एकल श्रेणी में 14 प्रकार के पारंपरिक खेलकूदों को शामिल किया गया है जिसमें 18 वर्ष से कम, 18 से 40 वर्ष एवं 40 वर्ष से अधिक आयु वर्ग के लोग शामिल हो रहे हैं। इससे स्थानीय लोगों को एक तरफ खेल का मंच मिलेगा वहीं उनमें खेलों के प्रति जागरूकता बढ़ेगी और खेल भावना का भी विकास होगा।
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