मणिपुर के भाजपा विधायक ने मैती समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जे देने के हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। मणिपुर विधानसभा की पहाड़ी क्षेत्र समिति (एचएसी) के अध्यक्ष डिंगांगलुंग गंगमेई द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि मैती समुदाय एक जनजाति नहीं है और इसे कभी भी इस तरह से मान्यता नहीं दी जा सकती है।
उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ दायर अपील में कहा गया है कि आदेश पूरी तरह से अवैध है और इसे रद्द किया जाना चाहिए। उच्च न्यायालय को यह महसूस करना चाहिए था कि यह एक राजनीतिक समस्या थी, जिसमें उच्च न्यायालय की कोई भूमिका नहीं है और राजनीतिक विवादों को राजनीतिक रूप से हल किया जाना था।
याचिका में आगे कहा गया है कि अनुसूचित जनजाति सूची के लिए एक जनजाति की सिफारिश करने के लिए राज्य सरकार को निर्देश देने वाला आदेश पूरी तरह से राज्य के अधिकार क्षेत्र में आता है, न कि उच्च न्यायालय के। 27 मार्च को मणिपुर हाईकोर्ट ने राज्य को अनुसूचित जनजातियों की सूची में मैती समुदाय को शामिल करने पर विचार करने का निर्देश दिया।
अपील में कहा गया कि उच्च न्यायालय ने अस्पष्ट रूप से और अनजाने में आदिवासियों के बीच बड़ी गलतफहमी और चिंता के साथ तनाव को जन्म दिया है। भाजपा विधायक ने कहा कि ये आदेश राज्य सरकार दे सकती है और मैती को शामिल करने के लिए केंद्र को सिफारिश कर सकती है, लेकिन कोर्ट ने सही नहीं किया है। अपील में हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाने की भी मांग की गई है।
3 मई को ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ मणिपुर (एटीएसयूएम) की आरक्षण को लेकर एक रैली के बाद मणिपुर में हिंदू मैती और आदिवासी कूकी, जो ईसाई हैं, के बीच हिंसा भड़क उठी है। कई दिनों से पूरे राज्य में हिंसा की स्थिति बनी हुई है और स्थिति को नियंत्रण में लाने के लिए केंद्र सरकार को अर्धसैनिक बलों को तैनात करना पड़ा।
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