भगवान शिव को यूं तो प्रलय का देवता और काफी गुस्से वाला देव माना जाता है. लेकिन जिस तरह से नारियल बाहर से बेहद सख्त और अंदर से बेहद कोमल होता है उसी तरह शिव शंकर भी प्रलय के देवता के साथ सृष्टिकर्ता भी हैं और उन्हें भोले नाथ कहा जाता है. वह थोड़ी सी भक्ति से भी बहुत खुश हो जाते हैं. फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को महाशिवरात्रि पर्व मनाया जाता है. माना जाता है कि सृष्टि के प्रारंभ में इसी दिन मध्यरात्रि भगवान शंकर का ब्रह्मा से रुद्र के रूप में अवतरण हुआ था.
महाशिवरात्रि का महत्व
शिवपुराण में वर्णित है कि शिवजी के निष्कल (निराकार) स्वरूप का प्रतीक लिंग इसी पावन तिथि की महानिशा में प्रकट होकर सर्वप्रथम ब्रह्मा और विष्णु के द्वारा पूजित हुआ था. इसी कारण यह तिथि शिवरात्रि के नाम से विख्यात हो गई. यह दिन माता पार्वती और शिवजी के ब्याह की तिथि के रूप में भी पूजा जाता है. माना जाता है जो भक्त शिवरात्रि को दिन-रात निराहार एवं जितेंद्रिय होकर अपनी पूर्ण शक्ति व सामर्थ्य द्वारा निश्चल भाव से शिवजी की यथोचित पूजा करता है, वह वर्ष पर्यंत शिव-पूजन करने का संपूर्ण फल मात्र शिवरात्रि को तत्काल प्राप्त कर लेता है.
शिवरात्रि की पूजन विधि
महाशिवरात्रि का यह पावन व्रत सुबह से ही शुरू हो जाता है. इस दिन शिव मंदिरों में जाकर मिट्टी के बर्तन में पानी भरकर, ऊपर से बेलपत्र, आक-धतूरे के पुष्प, चावल आदि डालकर शिवलिंग पर चढ़ाया जाता है. अगर पास में शिवालय न हो, तो शुद्ध गीली मिट्टी से ही शिवलिंग बनाकर उसे पूजने का विधान है. इस दिन भगवान शिव की शादी भी हुई थी, इसलिए रात्रि में शिवजी की बारात निकाली जाती है. रात में पूजन कर फलाहार किया जाता है. अगले दिन सवेरे जौ, तिल, खीर और बेलपत्र का हवन करके व्रत समाप्त किया जाता है.
शिवजी का प्रिय बेल
बेल (बिल्व) के पत्ते शिवजी को अत्यंत प्रिय हैं. शिव पुराण में एक शिकारी की कथा है. एक बार उसे जंगल में देर हो गयी , तब उसने एक बेल वृक्ष पर रात बिताने का निश्चय किया. जगे रहने के लिए उसने एक तरकीब सोची- वह सारी रात एक-एक कर पत्ता तोड़कर नीचे फेंकता जाएगा. कथानुसार, बेलवृक्ष के ठीक नीचे एक शिवलिंग था. शिवलिंग पर प्रिय पत्तों का अर्पण होते देख, शिव प्रसन्न हो उठे. जबकि शिकारी को अपने शुभ कृत्य का आभास ही नहीं था. शिव ने उसे उसकी इच्छापूर्ति का आशीर्वाद दिया. यह कथा बताती है कि शिवजी कितनी आसानी से प्रसन्न हो जाते हैं. आज शिवरात्रि के अवसर पर सच्चे दिल से शिवजी की भक्ति करने से सभी भक्तों की मनोकामना अवश्य पूरी होगी.
महादेव के किस मंत्र से दूर होगी आपकी तकलीफ ?
महाशिवरात्रि पर शिव अराधना से प्रत्येक क्षेत्र में विजय, रोग मुक्ति, अकाल मृत्यु से मुक्ति, गृहस्थ जीवन सुखमय, धन की प्राप्ति, विवाह बाधा निवारण, संतान सुख, शत्रु नाश, मोक्ष प्राप्ति और सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं. महाशिवरात्रि कालसर्प दोष, पितृदोष शांति का सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त है. जिन व्यक्तियों को कालसर्प दोष है, उन्हें इस दोष की शांति इस दिन करनी चाहिए.
4 प्रहर के 4 मंत्र- महाशिवरात्रि के प्रथम प्रहर में संकल्प करके शिवलिंग को दूध से स्नान करवाकर “ॐ हीं ईशानाय नम:” का जाप करना चाहिए.
द्वितीय प्रहर में शिवलिंग को दधि (दही) से स्नान करवाकर “ॐ हीं अधोराय नम:” का जाप करें.
तृतीय प्रहर में शिवलिंग को घृत से स्नान करवाकर “ॐ हीं वामदेवाय नम:” का जाप करें
चतुर्थ प्रहर में शिवलिंग को मधु (शहद) से स्नान करवाकर “ॐ हीं सद्योजाताय नम:” मंत्र का जाप करना करें.
किस तरह से करें पूजा एवं मंत्र जाप ?
मंत्र जाप में शुद्ध शब्दों के बोलने का विशेष ध्यान रखें कि जिन अक्षरों से शब्द बनते हैं, उनके उच्चारण स्थान 5 हैं, जो पंच तत्व से संबंधित हैं. 1- होंठ पृथ्वी तत्व 2- जीभ जल तत्व 3- दांत अग्नि तत्व 4- तालू वायु तत्व 5- कंठ आकाश तत्व मंत्र जाप से पंच तत्वों से बना यह शरीर प्रभावित होता है.
शरीर का प्रधान अंग सिर है. वैज्ञानिक शोध के अनुसार सिर में 2 शक्तियां कार्य करती हैं- पहली विचार शक्ति व दूसरी कार्य शक्ति. इन दोनों का मूल स्थान मस्तिष्क है. इसे मस्तुलिंग भी कहते हैं. मस्तुलिंग का स्थान चोटी के नीचे गोखुर के बराबर होता है. यह गोखुर वाला मस्तिष्क का भाग जितना गर्म रहेगा, उतनी ही कर्मेन्द्रियों की शक्ति बढ़ती है.
मस्तिष्क के तालू के ऊपर का भाग ठंडक चाहता है. यह भाग जितना ठंडा होगा उतनी ही ज्ञानेन्द्रिय सामर्थ्यवान होगी. मानसिक जाप अधिक श्रेष्ठ होता है. जाप, होम, दान, स्वाध्याय व पितृ कार्य के लिए स्वर्ण व कुशा की अंगूठी हाथ में धारण करें. बिना आसन के जाप न करें.
भूमि पर बैठकर जाप करने से दुख, बांस के आसन पर जाप करने से दरिद्रता, पत्तों पर जाप करने से धन व यश का नाश व कपड़े के आसन पर बैठ जाप करने से रोग होता है. कुशा या लाल कंबल पर जाप करने से शीघ्र मनोकामना पूर्ण होती है.
महाशिवरात्रि 2023 के मुहूर्त
चतुर्दशी तिथि का आरम्भ: 18 फरवरी, रात 08:02 बजे से
चतुर्दशी तिथि की समाप्ति: 19 फरवरी, शाम 04:18 बजे पर
निशिता काल पूजा समय – 11:52 पी एम से 12:42 ए एम, फरवरी 19
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