दुर्गा प्रसाद सेन@बेमेतरा। एक ऐसा शिव मंदिर जहां 16 स्तंभों के साथ शिवजी विराजमान है। सहसुपर शिव मंदिर वास्तुकला की नायाब धरोहर है। फणी नागवंशी राजाओं के शासनकाल में निर्मित जुड़वा मंदिर प्रतिनिधि स्मारकों में से एक है। इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि कवर्धा के फणी नागवंशी राजाओं ने 13-14 वीं शताब्दी में बनवाया है। किवदंती है कि गर्भगृह में स्थापित शिवलिंग कभी नहीं डूबा।
आठ दशक पहले गांव में भीषण अकाल पड़ने पर सहसपुर, सहित आसपास क्षेत्र के ग्रामीणों ने महा शिवरात्रि के दिन गर्भगृह में स्थापित शिवलिंग को जल अभिषेक कर डूबाने का निर्णय लिया था। योजना के मुताबिक मंदिर परिसर से लगभग 300 मीटर की दूरी पर स्थित जलाशय तक कतारबद्ध खड़े होकर जल अभिषेक किया
सुबह से शाम तक शिवलिंग पर हजारों गैलन जल चढ़ाया गया, लेकिन शिवलिंग को जल से डुबाने का प्रयास असफल रहा। हजारों गैलन पानी कहां गया किसी को पता नहीं चला। उसके बाद शाम को जोरदार पूरे क्षेत्र में बारिश हुई और उस दिन से उस गांव में आज तक अकाल की स्थिति नहीं बनी है ऐसा गांव वाले का मानना है
इसके बाद से गर्भगृह में स्थापित शिवलिंग की आस्था बढ़ती चली आ रही है। तब से हर साल महाशिवरात्रि में मेला लगता है। आसपास के ग्रामीण शिवलिंग का जल अभिषेक करने पहुंचते हैं। परंपरा के मुताबिक अभी श्रद्धालु मंदिर के गर्भगृह से जलाशय तक कतारबद्ध खड़े होकर जलाशय के जल से शिवजी का अभिषेक करते हैं।
देवकर से 7 किलोमीटर दूर है स्थित
गर्भगृह में स्थापित शिवलिंग के प्रति आस्था प्रदेश के बाहर से लोगों को भी खींच लाती है। महाशिवरात्रि और सावन में आसपास के ग्रामीणों के अलावा दूर से भी लोग दर्शन के लिए पहुंचते हैं।
13वीं शताब्दी का है मंदिर
गर्भगृह में स्वयंभू शिवलिंग स मंदिर में अंतराल, गर्भगृह और मंडप है। नागर शैली में आमलक एवं कलश युक्त शिखर है। मंडप का धरातल, गर्भगृह से लगभग 4 फीट ऊंचा है। शिव मंदिर के मंडप में पत्थर से बनें 16 पिल्लर(कॉलम) है। प्रत्येक पिल्लर में नाग उकेरे गए हैं।
मंदिर के प्रवेश द्वार में चतुर्भुजी शिव एवं दाएं छोर पर ब्रम्हा और बाएं छोर पर विष्णु की प्रतिमा विराजमान है। नीचे में नवग्रह विपरीत क्रम में अंकित है। गर्भगृह में जलधारी शिवलिंग है। । गर्भगृह के सामने मंडप है। दरवाजे की कलाकृति भोरमदेव मंदिर कबीरधाम के समान है।
शिवलिंग मंदिर के धरातल पर गर्भगृह में तीन फुट नीचे है। मंदिर का छत कला से अलंकृत है। मंदिर के बांयी ओर के बाहरी हिस्से में नटराज शिव और दायीं ओर चतुर्भुजी गणेश की भित्ति चित्र है। यह नृत्य की मुद्रा में है।