जयपुर का मोती डूंगरी गणेश मंदिर आस्था का प्रमुख केंद्र है। इस मंदिर में दाहिनी सूंड़ वाले गणेशजी की विशाल प्रतिमा है। जिस पर सिंदूर का चोला चढ़ाकर भव्य श्रृंगार किया जाता है। मंदिर की प्रसिद्धि इतनी है कि गणेश चतुर्थी पर यहां एक लाख से अधिक श्रद्धालु पहुंचते हैं।जयपुर में मोती डूंगरी स्थित गणेश मंदिर जयपुरवासियों के लिए प्रथम अराध्य माने जाते हैं। मान्यता है कि यदि कोई भी व्यक्ति नया वाहन खरीदता है तो उसे सबसे पहले मोती डूंगरी गणेश मंदिर में लाने की परंपरा है। ऐसे में नवरात्रा, रामनवमी, दशहरा, धनतेरस और दीपावली जैसे खास मुहूर्त पर वाहनों की पूजा के लिए यहां लंबी कतारें लग जाती हैं। मान्यता है कि नए वाहन की यहां लाकर पूजा करने से वाहन का एक्सीडेंट नहीं होता।
इसके अलावा मोती डूंगरी गणेश मंदिर में शादी के समय पहला निमंत्रण-पत्र मंदिर में चढ़ाने की परंपरा है। मान्यता है कि निमंत्रण पर मोती डूंगरी गणेश उनके घर आते हैं और शादी-विवाह के सभी कार्यों को शुभता से पूर्ण करवाते हैं। ऐसे में इस मंदिर में जयपुर के आसपास से भी लोग दूर-दूर से शादी का निमंत्रण देने पहुंचते हैं।
इतिहासकार बताते हैं कि यहां स्थापित गणेश प्रतिमा जयपुर नरेश माधोसिंह प्रथम की पटरानी के पीहर मावली से 1761 ई. में लाई गई थी। उस समय प्रतिमा पांच सौ साल पुरानी थी। जयपुर के नगर सेठ पल्लीवाल यह मूर्ति लेकर आए थे और उन्हीं की देख-रेख में मोती डूंगरी की तलहटी में इस मंदिर को बनवाया गया था।
इस मंदिर में मंगलवार को मेहंदी पूजन और सिंजारा उत्सव मनाया गया। इसके लिए 3100 किलो मेहंदी सोजत से मंगवाई गई है। भगवान श्री गणेश जी को मेहंदी धारण करवाने के बाद, शाम 7:30 बजे से इसे भक्तों को बांटना शुरू किया। इस मेहंदी को लेने के लिए बड़ी संख्या में हजारों लोग मंदिर पहुंचे। मान्यता है कि ये मेहंदी बहुत ही शुभ होती है। अविवाहित युवक-युवतियां इस मेहंदी को लगाते हैं, जिससे उनकी जल्दी शादी हो जाए।
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