रायपुर | संवाददाता : हसदेव अरण्य में अडानी के एमडीओ वाले कोयला खदान को लेकर राजस्थान के ऊर्जा मंत्री हीरालाल नागर छत्तीसगढ़ में ग़लतबयानी कर के चले गए. उन्होंने कोयले की ज़रुरत से लेकर कोयले की क़ीमत तक पर भ्रामक जानकारी मीडिया को दी.
गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य में राजस्थान सरकार को परसा ईस्ट केते बासन, परसा और केते एक्सटेंशन नामक खदान आवंटित है.
इन तीनों खदानों को राजस्थान सरकार ने एमडीओ के तहत अडानी समूह को सौंप दिया है.
इनमें से परसा ईस्ट केते बासन के पहले चरण में 2028 तक कोयले की खुदाई होनी थी. इसके बाद दूसरे चरण की खुदाई होनी थी.
लेकिन अडानी समूह ने 2022 में ही पहले चरण का यह खदान पूरा खोद दिया. लेकिन इसका पूरा कोयला राजस्थान को नहीं दिया गया.
बल्कि करार के अनुसार इसी खदान के कथित रिजेक्ट कोयले से अडानी समूह अपने पावर प्लांट चलाता रहा.
केवल एक साल का आंकड़ा ये है कि राजस्थान को आवंटित इस खदान से करीब 30 लाख टन कोयला अडानी समूह ने अपने पावर प्लांट और दूसरे उद्योगों को भेजा.
2021 में अडानी समूह ने इस खदान से 49 हज़ार 229 वैगन कोयला अपने पावर प्लांट समेत दूसरी कंपनियों को भेजा.
इसमें से अकेला 39 हजार 345 वैगन कोयला अडानी ने अपने पावर प्लांट में भेजा.
राजस्थान सरकार के साथ अडानी ने इस तरह का करार किया है कि राजस्थान के लिए आवंटित इस कोयला खदान के कोयले का उपयोग अडानी समूह अपना रायपुर का पावर प्लांट के लिए करता रहा.
अब अडानी समूह इस खदान के दूसरे चरण की खुदाई में अभी से जुटा हुआ है.
अकेले इस खदान के लिए हसदेव के घने जंगल के कम से कम 2,22,921 पेड़ों की कटाई की जानी है. पेड़ों का यह आंकड़ा बरसों पुराना है. इस बीच पेड़ों की संख्या भी बढ़ी है.
आदिवासी परसा और केते एक्सटेंशन खदान का विरोध कर रहे हैं.
आदिवासियों का कहना है कि इन दोनों ही खदानों की स्वीकृतियां ग़ैरकानूनी तरीके से हासिल की गई हैं.
राजस्थान के ऊर्जा मंत्री हीरालाल नागर ने मीडिया को कहा कि राजस्थान के 4350 मेगावाट पावर प्लांट छत्तीसगढ़ के कोयले पर निर्भर हैं. उन्होंने कहा कि अगर दो और कोल ब्लॉक नहीं शुरु होते हैं तो ऐसी स्थिति में हमें कोल इंडिया से ज्यादा कीमत पर कोयला ख़रीदना पड़ेगा.
मंत्री हीरालाल नागर के दावे का सच ये है कि छत्तीसगढ़ की तत्कालीन सरकार ने साल भर पहले 16 जुलाई 2023 को सुप्रीम कोर्ट में यह हलफनामा दिया है कि जिस खदान परसा ईस्ट केते बासन में पहले से खुदाई चल रही है, वहां 350 मिलीयन टन कोयला अभी खुदाई के लिए बचा हुआ है.
छत्तीसगढ़ सरकार ने अपने हलफनामे में साफ कहा है कि राजस्थान के 4340 मेगावाट की ज़रुरत को अगले 20 साल तक इस एक अकेले कोयला खदान से पूरा किया जा सकता है.
ऐसे में और नये खदानों की ज़रुरत का, मंत्री हीरालाल नागर का दावा पूरी तरह से भ्रामक है.
कोयले की क़ीमत का हाल ये है कि राजस्थान सरकार अपने ही इस खदान से कोयले के लिए अडानी समूह को 3914.57 रुपये प्रति टन क़ीमत देती है.
जबकि कोल इंडिया से इससे कम क़ीमत पर राजस्थान को कोयला मिलता रहा है.
कोल इंडिया इसी ग्रेड का कोयला, राजस्थान के इन्हीं पावर प्लांट को 3405.19 प्रति टन की दर से देता रहा है.
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