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राजस्थान को जितनी ज़रुरत, उतना एक खदान से निकल रहा कोयला-सुदीप

रायपुर | संवाददाता: सुप्रीम कोर्ट के वकील सुदीप श्रीवास्तव ने छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य में राजस्थान के नाम पर नए कोयला खदानों को छत्तीसगढ़ के साथ धोखा कहा है. उन्होंने कहा है कि राजस्थान विद्युत उत्पादन की कुल वार्षिक आवश्यकता 21 मिलियन टन अधिकतम है और हसदेव में राजस्थान को आवंटित और पहले से चालू पीईकेबी खदान की वार्षिक क्षमता 21 मिलियन टन है.

सुदीप श्रीवास्तव ने तमाम दस्तावेज़ों और तथ्यों के साथ पत्रकारों से बातचीत में कहा कि राजस्थान को जितना कोयला चाहिए, उतना कोयला हसदेव में पहले से ही चालू पीईकेबी खदान से आपूर्ति हो रही है. ऐसे में हसदेव में नये खदान की ज़रुरत ही नहीं है.

गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ सरकार ने भी सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर कर के कहा था कि राजस्थान को नए खदान की ज़रुरत नहीं है. पहले से चालू एक खदान ही राजस्थान की कोयला ज़रुरतों के लिए पर्याप्त है.

राजस्थान के पावर प्लांट, जहां हसदेव से कोयला जाना है

पावर प्लांट यूनिट नंबर हसदेव के कोल ब्लॉक से लिंक क्षमता
छाबड़ा पावर स्टेशन 3 व 4, प्रत्येक 250 MW 500 MW
छाबड़ा पावर स्टेशन 5 व 6, प्रत्येक 660 MW 1320 MW
कालीसिंध पावर स्टेशन 1 व 2, प्रत्येक 600 MW 1200 MW
सूरतगढ़ पावर स्टेशन 7 व 8, प्रत्येक 660 MW 1320 MW
कुल 4340 MW


अब सुदीप श्रीवास्तव ने इस मुद्दे पर राजस्थान सरकार को घेरते हुए कहा है कि भारत सरकार की केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण ने भी साफ़ कहा है कि राजस्थान की कुल वार्षिक आवश्यकता 21 मिलियन टन है.

उन्होंने कहा कि इतना कोयला उत्पादन की क्षमता अकेले परसा ईस्ट केते बासन यानी पीईकेबी खदान की है. राजस्थान के 4340 मेगावाट पावर प्लांट, जो हसदेव के कोल ब्लॉक से लिंक हैं, उनकी आवश्यकता चालू कोयला खदान पीईकेबी से पहले ही पूरी हो रही है. ऐसे में राजस्थान को जंगल उजाड़ कर और नये खदान क्यों चाहिए?

सुदीप श्रीवास्तव ने कहा की राजस्थान की आड़ में किसी और को कोयला देने का काम होगा. इसके लिए हसदेव के जंगल और आदिवासियों को छत्तीसगढ़ सरकार न उजाड़े.

उन्होंने कहा कि केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण भारत सरकार की संस्था है, जो विभिन्न पावर प्लांट में यूनिट साइज के अनुसार कोयले की खपत निर्धारण के मापदंड तय करती है.

उसके 20 जुलाई 2021 को इस संबंध में जारी आदेश क्रमांक 219/GC/BO/TPPD/CEA/2021/224 के अनुसार राजस्थान की कुल अधिकतम वार्षिक आवश्यकता (जब प्लांट 85% की क्षमता से चले) गणना करने पर राजस्थान की कुल वार्षिक आवश्यकता 21 मिलियन टन आती है.

सुदीप श्रीवास्तव ने कहा कि यही चालू कोयला खदान पीईकेबी की उत्पादन क्षमता है. यानी किसी और नये खदान की आवश्यकता राजस्थान को नहीं है. इस खदान में अभी 310 मिलियन टन खनन योग्य कोयला उपलब्ध है, जो अगले 15 सालों तक के लिए पर्याप्त है.

हसदेव अरण्य में राजस्थान को आवंटित कोयला खदान

कोयला खदान का नाम वन क्षेत्र (हे.) गैर वन क्षेत्र (हे.) कुल क्षेत्र कटने वाले पेड़ों की संख्या
परसा इस्ट केते बासन 1898.328 812.706 2711.034 3,67,000 (2009 की गणना)
परसा 841.538 410.909 1252.447 96,000 (2009 की गणना)
केते एक्सटेंशन 1745.883 16.956 1762.839 गणना नहीं, 6 लाख अनुमान
35 मिलियन टन/ करार 20 मिलियन टन 4485.749 (यानी कुल क्षेत्रफल का 78% वन) 1240.571 5726.32 लगभग 10 से 12 लाख


अधिवक्ता सुदीप श्रीवास्तव ने कहा कि कोल इंडिया का उत्पादन शीघ्र ही 1500 मिलियन टन को पार कर जाएगा, जिसके बाद बाज़ार में सरप्लस कोयला उपलब्ध हो जाएगा.

अगर राजस्थान को 15 साल बाद कोयले की ज़रुरत हुई भी तो देश में अभी 300 कोल ब्लॉक ऐसे हैं, जो किसी को आवंटित नहीं हैं. उन्होंने राजस्थान सरकार को सुझाव दिया कि वह चाहे तो आने वाले दिनों में मध्यप्रदेश से कोयला भी ले सकता है, जहां से परिवहन में प्रति टन 400 रुपये की बचत होगी. ऐसा होने पर राजस्थान के लोगों को सस्ती बिजली उपलब्ध कराई जा सकती है.

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