पर्यावरण के प्रति बचपन से लगाव रखने वाली शहर की एक बेटी विकास कार्यों में प्रभावित होने वाले पेड़ों के लिए आक्सीजन बनीं।
नेहा बंसोड़ ने ढाई साल में सड़क चौड़ीकरण अथवा अन्य निर्माण के दायरे में आने वाले 296 पेड़ों को अन्य स्थान पर शिफ्ट किया। पेड़ों को शिफ्ट करने के 15 दिन पहले से लेकर शिफ्ट करने के 90 दिनों तक नेहा उनकी देखरेख भी करती है।
भिलाई-तीन पदुमनगर निवासी 30 वर्षीय नेहा बंसोड़ बताती हैं, ‘बात सन 2019-20 की है। पदुमनगर में ही सड़क का चौड़ीकरण प्रस्तावित था।
इसके लिए 36 पेड़ों को काटने के लिए चिह्नित किया गया। मुझे इसकी जानकारी मिली तो इन पेड़ों को बचाने का ठाना। मोहल्लेवालों को एकजुट किया।
निगम आयुक्त, कलेक्टर और सभांगायुक्त तक गुहार लगाई। फिर पेड़ शिफ्ट करवाए गए। नेहा ने वानिकी एवं वन्य जीव पर स्नातकोत्तर बस्तर विवि से किया है।
वहीं, वृक्ष संवर्धन यानी आर्बोरिकल्चर की पढ़ाई विदेश से की है। इसमें ही पेड़ों की शिफ्टिंग से जुड़ी तकनीकी सहित अहम जानकारी मिली।
नेहा के पिता प्रमोद बंसोड़ बीएसपी कर्मी हैं। वहीं मां नंदा गृहिणी हैं। छोटा भाई अभिजीत पढ़ाई कर रहा है। नेहा बताती हैं कि उसके स्वजन उन्हें इस कार्य के लिए प्रोत्साहित करते हैं।
नेहा बताती हैं कि पदुमनगर में जो पहला पेड़ शिफ्ट कराया, वह मजूदरों की लापरवाही के कारण नहीं लग पाया। इस घटना ने नेहा को झकझोर दिया।
इसके बाद नेहा ने स्वयं ही एक फर्म बनाकर पेड़ों की शिफ्टिंग का काम करने का संकल्प लिया। पदुमनगर में शिफ्ट किए गए 36 में से 30 पेड़ जीवित हैं।
नेहा ने मध्यप्रदेश के कान्हा राष्ट्रीय उद्यान के बाहर रिसॉर्ट क्षेत्र में 70 पेड़ों, भिलाई व दुर्ग में अलग-अलग स्थानों पर शासकीय योजनाओं के प्रभावित 50 पेड़ों एवं निजी फार्म हाउस आदि में 140 करीब पेड़ों को शिफ्ट किया। इसमें कई स्थानों पर मुफ्त सेवाएं भी दीं।
नेहा बताती हैं कि पेड़ों के शिफ्टिंग से 15 दिनों से पहले ही ट्रीटमेंट शुरू हो जाता है। जैसे-जैसे पेड़ों की जड़ों को कमजोर किया जाता है, वैसे ही आवश्यक पोषक तत्व देने के लिए 22 तरह की औषधियों का उपयोग शुरू कर किया जाता है।
पेड़ बड़ा है तो मुख्य तने को छोड़ अन्य शाखाओं को काट दिया जाता है। इसके बाद ही क्रेन व जेसीबी के माध्यम से उसे अन्य स्थान पर न्यूनतम पांच फीट गहरे गड्ढे में शिफ्ट करते हैं।
नेहा के अनुसार, अब तक उन्होंने करंज, सप्तपर्णी, पीपल, बरगद, सेमल, गुलमोहर, नीम, सिरिस व शीशम के पेड़ों को शिफ्ट किया है।
इसमें 90 साल के पीपल के पेड़ को शिफ्ट करना, उनके लिए चैलेंजिंग था। सुपेला रेलवे फाटक के पास बन रहे अंडरब्रिज में प्रभावित इस पेड़ को निकालने में ही उनकी टीम को छह दिन लग गए थे।
आज उस पेड़ से पत्तियां उग आई हैं। नेहा ने बताया कि सामान्य पेड़ की शिफ्टिंग में 10 से 12 हजार का खर्च आता है।
वहीं, भारी-भरकम पेड़ जो 50 वर्ष से अधिक आयु के होते हैं, उन्हें शिफ्ट करने में 35 से 50 हजार रुपये तक का खर्च आता है।
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