रायपुर | संवाददाता: माओवादियों ने कहा है कि वे सरकार के साथ शांति वार्ता के लिए तैयार हैं लेकिन सरकार शर्त रख रही है. माओवादियों ने आत्मसमर्पण और बातचीत की सरकार की पेशकश पर कहा कि कोई क्रांतिकारी सरकार के सामने घुटने टेककर वार्ता के लिए नहीं आएगा.
गौरतलब है कि सत्ता में आते ही राज्य के गृहमंत्री विजय शर्मा ने माओवादियों के ख़िलाफ़ अभियान तेज़ करने की बात कही थी. लेकिन कुछ ही दिनों के भीतर उन्होंने माओवादियों को शांति वार्ता का प्रस्ताव दिया.
उन्होंने कहा कि सरकार किसी भी तरह से माओवादियों से बातचीत करने के लिए तैयार है. माओवादी अगर चाहें तो वे वीडियो कॉल से भी बात करने के लिए राजी हैं.
इसके बाद से माओवादियों के दो पत्र आ चुके हैं.
अब सीपीआई माओवादी की सेंट्रल कमेटी के सदस्य प्रताप ने एक पत्र लिख कर सरकार पर बातचीत के लिए अगंभीर होने का आरोप लगाया है.
सीपीआई माओवादी की सेंट्रल कमेटी के सदस्य प्रताप ने एक पत्र में कहा कि “बस्तर में हो रहे खून खराबा को रोकने के लिए हम वार्ता के लिए तैयार हैं, लेकिन इससे पहले कुछ बातें हैं जिसे स्पष्ट करना है. दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी के प्रवक्ता विकल्प दो बार वार्ता के लिए अपनी राय दे चुके हैं. लेकिन उस पर सरकार की ओर से ईमानदारी के साथ कुछ भी रिस्पांस नहीं आया है.”
माओवादी नेता ने कहा-“अब ऐसे में यह कहा जा रहा है कि हम वार्ता के लिए तैयार नहीं हैं. माहौल ऐसा बना है कि हमने कुछ शर्त रखी हैं, लेकिन यह गलत है. हम एक जनवादी माहौल में वार्ता चाहते हैं, शांतिपूर्ण माहौल को कायम रखने के लिए वार्ता चाहते हैं. खून खराबा को रोकने के लिए वार्ता को स्वीकारते हैं.”
प्रताप के अनुसार-“इसके विपरीत में छत्तीसगढ़ के गृहमंत्री विजय शर्मा वार्ता के लिए पहले कुछ शर्त रखे हैं. उन्होंने रोड काम बंद न करने की शर्त रखे हैं, लेकिन हर कोई जानता है कि अपने जल-जंगल-जमीन के लिए और अनमोल प्राकृतिक संसाधनों को बचाने के लिए हम लड़ रहे हैं. वहीं विजय शर्मा संसाधनों का दोहन चाहते हैं. इसका मतलब है कि वार्ता के लिए शर्त माओवादी नहीं बल्कि सरकार रख रही है.”
माओवादी नेता ने कहा- “इससे यह जाहिर होता है कि सरकार ईमानदारी से और बिना शर्त वार्ता के लिए कभी तैयार नहीं है. आप ने किसी माध्यम से हमसे प्रश्न किया था कि हिंसा के माहौल में वार्ता के लिए तैयार हैं? जिसका उत्तर है कि सरकार की चाल है कि नरसंहार बढ़ने से और दमन दहशत, हत्या, अत्याचार और खून खराबा के माहौल को बढ़ाने से माओवादियों पर प्रेशर बढ़ेगा. वे लोग वार्ता के लिए मजबूर हो जाएंगे.”
प्रताप ने सरकार की नीति पर हमला बोलते हुए कहा-“इसका मतलब यह होता है कि माओवादियों से आत्मसमर्पण करवाने के अलावा सरकार के विचारों में और कुछ नहीं है. यही बात केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह बार-बार दोहरा रहे हैं. वे कह रहे हैं कि नक्सली हथियार छोड़कर वार्ता के लिए आएं, सरकार उन लोगों से वार्ता करेगी. लेकिन यह संभव नहीं है. कोई क्रांतिकारी सरकार के सामने घुटने टेककर वार्ता के लिए नहीं आएगा.”
माओवादियों के सेंट्रल कमेटी के नेता ने साफ शब्दों में कहा है कि यदि सरकार ईमानदारी के साथ एक शांतिपूर्ण जनवादी माहौल बनाएगी तो वार्ता के लिए तैयार हैं. उसमें आदिवासी समाज की भूमिका रहेगी.
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