रायपुर | संवाददाता: छत्तीसगढ़ में अपशिष्ट जल के पुन: उपयोग के लिए सिवेज ट्रीटमेंट प्लांट की सारी योजनाएं फाइलों में धरी रह गई हैं. हालत ये है कि सीवेज के पानी के उपचार की व्यवस्था को बढ़ाने और उपचारित पानी के पुनः उपयोग करने को लेकर सरकार ने किसी नई योजना पर काम ही नहीं शुरु किया है.
यह तब है, जब राज्य में एक के बाद एक विकासखंड में पानी का संकट गहरा रहा है. ड्राई ज़ोन यानी सूखा इलाका बढ़ता जा रहा है. अनियमित वर्षा राज्य में आम है.
अपशिष्ट जल के पुन: उपयोग को लेकर कई राज्यों ने नीतियां भी बनाई हैं. कई राज्यों ने अपशिष्ट जल का पुनः उपयोग करके अपनी खेती का विस्तार भी किया है.
कर्नाटक के कोलार जैसे ज़िलों में अपशिष्ट जल के उपयोग से भूजल में भी सुधार हुआ है और कृषि की उत्पादकता भी बढ़ी है. खेती की ज़मीन की क़ीमत में पिछले कुछ सालों में 118 फ़ीसदी तक की वृद्धि हुई है.
भारत सरकार के आंकड़े बताते हैं कि राज्य के शहरी इलाकों में घरेलू उपयोग मसलन कपड़ा धोने, बरतन धोने, नहाने, शौच में उपयोग होने वाले पानी यानी सिवेज के पुनः उपयोग करने की अपार संभावना है.
छत्तीसगढ़ में हर दिन 1203 मिलियन लीटर सिवेज निकलता है. लेकिन राज्य में कुल जमा 3 सिवेज ट्रिटमेंट प्लांट हैं. इन 3 सिवेज ट्रिटमेंट प्लांट में केवल 73 मिलियन लीटर सिवेज के ही उपचार और उसे पुनः उपयोग लायक बनाने की स्थापित क्षमता है.
बड़ा संकट ये है कि स्थापित क्षमता का भी पूरा उपयोग राज्य में नहीं हो पाता. केंद्र सरकार के आंकड़ों के अनुसार राज्य में केवल 8 फ़ीसदी सिवेज ही पुनः उपयोग के लायक उपचारित हो पाता है.
देश में सिवेज ट्रिटमेंट प्लांट की क्षमता के मामले में हम 20वें नंबर पर हैं. देश में पहले नंबर पर महाराष्ट्र है, जहां 154 सिवेज ट्रिटमेंट प्लांट है. जहां हर दिन 6890 मिलियन लीटर पानी उपचारित हो कर निकलता है.
छत्तीसगढ़ में सिवेज पानी के उपचार को लेकर सरकार की गंभीरता का अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि राजधानी रायपुर में भी अब तक सिवेज ट्रिटमेंट प्लांट स्थापित नहीं किया गया.
बिलासपुर में 2013 में चिल्हाटी में और 2018 में दोमुहानी में स्थापित किया गया. जिनकी उपचार क्षमता क्रमशः 17 और 54 मिलियन लीटर प्रतिदिन है.
तीसरा सिवेज प्लांट 2013 में कवर्धा के मिनी माता चौक के पास बनाया गया, जिसकी कुल क्षमता 2.1 मिलियन लीटर प्रतिदिन है.
वैज्ञानिकों का कहना है कि अपशिष्ट जल में पाए जाने वाले मूल्यवान पोषक तत्वों – जैसे नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम के पुनर्चक्रण से भी लाभ प्राप्त किए जा सकते हैं.
यदि इन्हें पुनः प्राप्त कर लिया जाए तो उनका उपयोग सिंथेटिक उर्वरकों पर निर्भरता कम करने के लिए किया जा सकता है.
लेकिन फिलहाल अपशिष्ट जल के उपचार की बात छत्तीसगढ़ में दूर की कौड़ी है और इस मुद्दे पर कम से कम राजनेता तो बिल्कुल भी बात नहीं करना चाहते.
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