सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग करने वाली याचिकाओं पर हो रही सुनवाई के बीच केंद्रीय विधि मंत्री किरण रिजिजू ने बुधवार को कहा कि विवाह की संस्था जैसा महत्वपूर्ण मामला देश के लोगों को तय करना है और अदालतें ऐसे मुद्दों को निपटाने का मंच नहीं हैं।
उन्होंने स्पष्ट किया कि वह इस मामले को सरकार बनाम न्यायपालिका का मुद्दा नहीं बनाना चाहते।एक टीवी चैनल के कान्क्लेव में कानून मंत्री ने एक सवाल के जवाब में कहा, ‘यह भारत के हर नागरिक से जुड़ा मामला है। यह लोगों की इच्छा का सवाल है। लोगों की इच्छा संसद या विधायिका या विधानसभाओं में परिलक्षित होती है।’
मामले की सुनवाई कर रही संविधान पीठ का जिक्र करते हुए रिजिजू ने कहा, ‘अगर पांच बुद्धिमान व्यक्ति किसी चीज पर फैसला लेते हैं, जो उनके मुताबिक सही है, तो मैं उनके विरुद्ध किसी प्रकार की प्रतिकूल टिप्पणी नहीं कर सकता, लेकिन अगर लोग इसे नहीं चाहते तो आप उन चीजों को लोगों पर नहीं थोप सकते।’
कानून मंत्री ने आगे कहा कि सुप्रीम कोर्ट को कुछ निर्देश जारी करने का अधिकार है। अनुच्छेद-142 के तहत वह कानून भी बना सकता है। अगर उसे लगता है कि किसी खाली जगह को भरना चाहिए तो वह कुछ प्रविधानों के साथ ऐसा कर सकता है।
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