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सूरजपुर के ‘बाबू परमानंद’….जिन्हें 83 साल बाद भी नहीं मिला शहीद का दर्जा…. जानिए इनके बारे में

अंकित सोनी@सूरजपुर। जब भी जहन में देश की आजादी से पहले की परिस्थिति का ख्याल आता है रोम रोम सिहर जाता है। तमाम यातनाओं के बीच क्रांतिकारी वीर सपूतों ने अपने प्राणों की आहुति देकर इस देश को गुलामी की जंजीरों से आज़ाद किया तो वहीं कई वीर सपूत ऐसे भी थे जो शहादत के बाद गुमनामी के अंधेरे में कहीं खो गए,,, इन्हीं क्रांतिकारीयों में एक नाम है सूरजपुर के बाबू परमानंद का जो देश की आजादी के लिए शहीद हो गये थे ,,, लेकिन उन्हें शहीद का दर्जा आज 83 साल बाद भी नही मिल सका है ,,और शहीद की तीसरी पीढ़ी आज भी अपने पूर्वज को शहीद का दर्जा दिलाने के लिए लम्बे समय से सिस्टम से लड़ाई लड़ते आ रही है,,

भारत देश को आजाद कराने के लिए लाखों आंदोलनकारियों ने देश की आजादी के लिए अपना बलिदान दिया,, ऐसा ही एक क्रांतिकारी था सूरजपुर का बाबू परमानन्द , जो सन 1936 के दौरान महज 15- 16 साल की उम्र में घर से पढ़ाई करने के नाम पर रायपुर चला गया,,जहा आर्य समाज के आंदोलन में शामिल हो गया,, और सन 1938 के हैदराबाद आर्य समाज प्रजामण्डल आंदोलन में शामिल होकर उन्होने देश की आजादी के लिए लड़ाई लड़ी ,,, इस आंदोलन के दौरान अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया जहां वह शहीद हो गए,,

बाबू परमानंद सन 1939 में देश के लिए शहीद हो गए,, और उस दौरान उनकी मौत से लेकर डॉक्टर के पोस्टमार्टम रिपोर्ट समेत कई दस्तावेज आज भी मौजूद है,, ऐसे में सन 1939 के दौरान शहीद बाबू परमानन्द के स्मारक और एक बागवानी के लिए सरगुजा स्टेट के राजा के द्वारा जमीन भी परिजनों को दी गई थी,, लेकिन सन 1955 के दौरान शहीदों की सूची से बाबू परमानन्द का नाम गुम हो गया और शहीद की याद में दी गयी जमीन भी ले ली गयी,, और फिर मुफलिसी के दौर से गुजरते हुए पहले शहीद के पिता, फिर भाई और अब तीसरी पीढ़ी के उनके भतीजे अपने पूर्वज को शहीद का दर्जा दिलाने की लड़ाई सरकार से लड़ते आ रहे है,,

राज्यपाल पुरस्कृत शोधकर्ता अजय चतुर्वेदी ने जब अपने शोध में बाबू परमानन्द के शहीद की कहानी लिखी तब सरगुजा वासियों को बाबू परमानन्द के बलिदान की जानकारी लगी,, शोधकर्ता अजय चतुर्वेदी भी मानते हैं कि शासन प्रशासन स्तर पर वीरगति को प्राप्त हुए बाबू परमानंद का कोई रिकॉर्ड मौजूद नही है,,, लेकिन उनके परिजनों के पास आजादी के पहले के कई ऐसे दस्तावेज मौजूद है जो यह दर्शाते हैं कि बाबू परमानंद ने आजादी की लड़ाई में शामिल होकर स्वतंत्रता सेनानी के रूप में लड़ाई लड़ी और वह जेल में शहीद हो गए थे,,,

कई वर्षों से जारी इस सम्मान की लड़ाई में एक बार फिर से बापू परमानंद के परिजनों ने जिला कलेक्टर कार्यालय पहुंचकर कलेक्टर रोहित व्यास से स्वतंत्रता सेनानी की सूची में नाम शामिल करने को लेकर आवेदन दिया है,,जिस पर रोहित व्यास ने बाबू परमानन्द के दस्तावेजों के आधार पर जांच करा कर भारत सरकार को रिपोर्ट भेजने की बात कही है ,,, आज भी कई ऐसे स्वतंत्रता सेनानियों की कहानी देश में मौजूद है जो गुमनामी के अंधेरे में कहीं खोई हुई है,,,जरूरत है ऐसी वीरगाथाओं को सामने लाने की जो देश की आने वाली पीढ़ियों के मन में देश के प्रति प्रेम भाव जागृत करें,,, वहीं देश को आजाद हुए 76 साल के बाद भी दस्तावेजों के आधार पर 18 साल के आयु में शहीद हुए बाबू परमानन्द को शहीद का दर्जा कैसे मिलेगा और कब तक इनकी पीढ़ी आजाद देश मे भी सम्मान की लड़ाई लड़ने को मजबूर रहेंगे यह भी देखने वाली बात होगी।

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