एनपीजी डेस्क. गुरु पूर्णिमा के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में पूज्यपाद औघड़ बाबा गुरुपद संभव राम जी ने कहा, बंधुओं! गुरु कोई हाड़-मांस का शरीर नहीं होते हैं| गुरु वह पीठ है, जहां से ज्ञान दिया जाता है, उसी को गुरुपीठ कहते हैं| हम लोग बहुत आसानी से गुरु की तुलना ब्रह्मा, विष्णु और महेश से कर देते हैं| एक बार एक पत्रकार ने अघोरेश्वर महाप्रभु से पूछा कि बाबा आप किसको भजते हैं? तो उन्होंने कहा कि ब्रह्मा, विष्णु, महेश जिनको भजते हैं हम उन्हीं को भजते हैं|हमारी समझ सीमित नहीं होनी चाहिए, वह असीम होनी चाहिए| क्योंकि हम जिसको बार-बार पूज रहे हैं देख रहे हैं वह हमें भौतिकता की तरफ प्रेरित भी कर सकता है| जब हम आत्मभाव में अपने-आपको ले आते हैं तो हमसे कुछ गलत होता ही नहीं है हमलोग जो देवी-देवताओं की प्राण-प्रतिष्ठा करते हैं उसमें आत्मा की प्रतिष्ठा नहीं होती है| यदि हम आत्मभाव में रहेंगे या पराप्राकृति माँ भगवती का या परमपूज्य अघोरेश्वर के मुद्राओं का ध्यान हम इसलिए करते हैं कि हममें भी वह आत्मभाव आये| उस ईश्वर में कुछ होता नहीं है, उसका न कोई रूप है, न रंग है, न आकृति है| हमारी जो सोच है, हमारी जो ध्यान-धारणा है, हम उसको सही ढंग से कर नहीं पा रहे हैं, आगे बढ़ नहीं पा रहे हैं| हम आगंतुक विचारों को अपने में समाहित करते रहते हैं तो उस कचरे के चलते हम उन संकेतों को समझ नहीं पाते हैं| आत्मभाव से ही मुक्ति संभव है| जो आत्मभाव में रहता है वह किसी से घृणा, ईर्ष्या, द्वेष नहीं रखता है| देहबुद्धि वाले को ही यह सब होता है| ऐसे लोग जिनका मन-मस्तिष्क मलिन है, जो परा-प्रकृति में विश्वास नहीं करते हैं, जो ऐसे माहौल में नहीं रहे हैं, जो लोग महापुरुषों के विचारों को सुने नहीं हैं, मनन नहीं किये हैं. मंथन नहीं किये हैं, ऐसे मनुष्यों में वह चीज आती ही नहीं, वह विपरीत दिशा में चला जाता है, वह अपना ही दुश्मन हो जाता है| जब अपना ही दुश्मन हो जायेगा तो वह दूसरों के लिए क्या कर सकता है? हमें तो अपने ऊपर दया करनी है, अपनी पूजा करनी है ताकि हमसे कोई गलत कार्य न हो| प्रेम-भाईचारा शब्द मात्र नहीं हैं, इसमें बहुत अपार शक्ति है| लेकिन समय-काल-परिस्थिति को देखते हुए हमें अपना व्यवहार करना है| यह नहीं कि कोई हमें मारने आ रहा है, कोई हम पर चढ़ाई कर रहा है तो उस समय हमलोग प्रेम करें| क्योंकि हमें अपने संस्कृति की, अपने राष्ट्र की रक्षा करनी है| हमारे पास जो भी होगा हम उससे उसका प्रतिकार करेंगे| हमें साधू और सैनिक दोनों का आचरण अपनाना होगा| हमें दोनों चीजें सिखाई जाती हैं कि आप साधू भी है और आप सैनिक भी हैं| तभी इस संसार में आप आगे बढ़ते हैं| हमारे जो सैनिक होते हैं या हमारे पहले जो बलिदानी लोग थे, पता नहीं उन पर हमारा ध्यान जाता है की नहीं?
हमारे सैनिक जो राष्ट्र का रक्षण करते हैं उनका भी परिवार होता है, पहले के राजा स्वयं भी मैदान में जाकर लड़ते थे, उनके पास भी ऐशो-आराम की हर चीज रहा करती थी, लेकिन फिर भी राष्ट्र की रक्षा के लिए वह बहुत आसानी से अपने प्राणों की आहुति दे दिया करते थे| लड़ते-लड़ते वीरगति को प्राप्त हो जाते थे| तो हमें भी सोचना होगा कि एक तरफ तो वह लोग हैं जो राष्ट्र की रक्षा में अपने प्राणों की आहुति दे दे रहे हैं और दूसरी तरफ हम हैं कि एक दूसरे से ईर्ष्या, घृणा, द्वेष करते हैं, लड़ाई-झगड़ा, मार-काट और लूट-पाट कर रहे हैं राष्ट्र की रक्षा में वह भी मारते हैं और एक हमलोग समाज में किसी को मार देते हैं तो हमको सजा हो जाती है फांसी दे दी जाती है लेकिन उनको माला-फूल से स्वागत किया जाता है|तो हमारी मानसिकता और हमारी सोच बहुत ही संकीर्ण हो गयी है| वह ऐसी क्या प्रेरणा है जिसके लिए वह अपने शरीर का भी उत्सर्ग कर देते हैं| मृत्यु तो वही है कि जैसे हम रोज कपडा बदल देते हैं, वैसे ही हमारा यह शरीर छूट जाता है लेकिन हमारी आत्मा नहीं मरती है| यह शरीर बहुत कम समय के लिए हमें मिला है लेकिन इसका लाभ हम नहीं ले पा रहे हैं| इसलिए नहीं ले पा रहे हैं कि हम उन महापुरुषों की पगडंडियों से गुजरने को तैयार नहीं हैं| और उससे नहीं गुजरने से हम अपने जीवन के लक्ष्य को भी नहीं प्राप्त कर पाते हैं| क्योंकि उन महापुरुषों की, उनके स्थानों की, उनके वाणियों की, उनके बताये मार्गों की हम जितनी अनदेखी करेंगे, तो हम भ्रमित होगे ही|
उक्त विचार पूज्यपाद औघड़ बाबा गुरुपद संभव राम जी ने गुरुपूर्णिमा के पावन पर्व पर श्री सर्वेश्वरी समूह, पड़ाव वाराणसी में अपने शिष्यों एवं श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए अपने आशीर्वचन में व्यक्त कीं|
गुरुपूर्णिमा के अवसर पर आयोजित सायंकालीन गोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे केरल राज्य के पूर्व राज्यपाल निखिल कुमार तथा उत्तर प्रदेश के पूर्व अपर स्वास्थ्य निदेशक डॉ. वी.पी. सिंह, डॉ. उदय प्रताप सिंह, उदय नारायण पाण्डे, राजीव कुमार रानू एवं भोलानाथ त्रिपाठी ने भी अपने विचार व्यक किये| सञ्चालन डॉ. बामदेव पाण्डेय तथा धन्यवाद ज्ञापन संस्था के व्यवस्थापक हरिहर यादव ने किया| मंगलाचरण श्री यशवंत नाथ शाहदेव जी ने किया|
इससे पूर्व आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा तदनुसार सोमवार, 3 जुलाई, 2023 को वाराणसी के पड़ाव स्थित अघोर पीठ, श्री सर्वेश्वरी समूह संस्थान देवस्थानम्, अवधूत भगवान राम कुष्ठ सेवा आश्रम में गुरुपूर्णिमा पर्व श्रद्धा एवं भक्तिमय वातावरण में सोल्लास मनाया गया। मनाने के क्रम में सर्वप्रथम लगभग 4:30 बजे सैकड़ों श्रद्दालुओं द्वारा अघोरेश्वर महाविभूति स्थल गंगातट तक एक प्रभातफेरी निकाली गई | प्रातःकालीन साफ-सफाई व श्रमदान के पश्चात् लगभग 7 बजे से परमपूज्य अघोरेश्वर भगवान राम जी के चिरकालिक आसन का पूजन पूज्यपाद औघड़ गुरुपद संभव राम जी ने प्रारंभ किया। बाबा भगवान राम ट्रस्ट की ट्रस्टी श्रीमती मीरा सिंह जी ने सर्वेश्वरी ध्वजोत्तोलन किया। तदुपरांत सफलयोनि का पाठ रांची के उदयनारायण पाण्डेय ने किया। लगभग 7:30 बजे पूज्यपाद बाबा अपने शिष्यों एवं अनुयायियों के दर्शनार्थ आसन पर विराजमान हुए। हर-हर महादेव के जयघोष के साथ श्रद्धालुओं ने गुरु दर्शन-पूजन प्रारंभ किया जो लगभग 11:30 बजे तक अनवरत चलता रहा। गुरु पूजन व दर्शन हेतु स्वनुशासित कतारबद्ध खड़े श्रद्धालुओं के लिए गर्मी को देखते हुए संस्था की तरफ से शरबत व शीतल जल तथा ओ.आर.एस. की व्यवस्था की गयी थी। दोपहर 12:30 बजे से प्रसाद प्रारंभ हुआ जो अनवरत 3 बजे तक चलता रहा।