नई दिल्ली। टेक्नोलॉजी के इस जमाने में अब लगभग सभी कंपनियां वर्चुअल मीटिंग करने लगी हैं। कोरोना के दौरान जब सब लोग घर से काम कर रहे थे तो पूरे दिन वर्चुअल मीटिंग्स होती रहती थीं। इसके बाद से जूम और गूगल मीट जैसे वर्चुअल मीटिंग प्लेटफॉर्म का प्रयोग जीवन का एक हिस्सा बन गए।
अब ज्यादातर मीटिंग वर्चुअल होने लगी है। लेकिन वैज्ञानिकों ने इनके उपयोग को लेकर चेतावनी दी है। वैज्ञानिकों ने शोध के बाद दावा किया है कि डिजिटल बैठकें दिमाग और हृदय पर अतिरिक्त तनाव और दबाव डालती हैं। यह शोध पिछले दिनों नेचर नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।
बढ़ जाती है थकान
यूनिवर्सिटी ऑफ एप्लाइड साइंसेज अपर ऑस्ट्रिया के शोधकर्ताओं के मुताबिक वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग, आमने-सामने होने वाली बैठकों की तुलना में अधिक थका देने वाली होती हैं। शोधकर्ताओं ने स्टडी के दौरान 35 विश्वविद्यालयों के छात्रों को सिर और सीने पर इलेक्ट्रोड जोड़कर उनके मस्तिष्क और हृदय की गतिविधियों को मापकर देखा गया।
मस्तिष्क और हृदय में तनाव
शोध में शामिल उपकरणों को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग थकान (वीसीएफ) की जांच करने के लिए डिजाइन किया गया था। छात्रों के दिमाग और हृदय को स्कैन करने के बाद पता चला कि 50 मिनट के वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग सत्र में भाग लेने वाले छात्रों ने तंत्रिका तंत्र में परिवर्तन महसूस किया। इससे छात्रों को अत्यधिक थकान हो रही थी और वे चीजों पर कम ध्यान दे पा रहे थे। इसके साथ ही मस्तिष्क और हृदय में तनाव पैदा हो रहा था।
यह हैं उपाय