द्वारका पीठ के जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का लखनऊ से गहरा नाता रहा है। रविवार को उनके निधन की खबर मिलते ही उनके शिष्य और अनुयायी स्तब्ध हो गए। 99 वर्षीय शंकराचार्य अयोध्या जाते समय कई बार लखनऊ आए थे। मनकामेश्वर मंदिर की महंत देव्या गिरि ने निधन पर शोक जताया है।
उन्होंने बताया कि 2010 में अयोध्या जाते समय शंकराचार्य मनकामेश्वर मंदिर में आए थे। उनका स्वागत किया गया था। साईं बाबा को मंदिर में स्थापित करने के विरोध को लेकर पूरे विश्व में चर्चा में रहे। उन्होंने मनकामेश्वर बाबा के दर्शन भी किए थे। गाय और गंगा को बचाने के आंदोलन में उनका कई बार लखनऊ आना हुआ। 2014 में जानकीपुरम के सहारा स्टेट के पास राज राजेश्वरी त्रिपुर सुंदरी मंदिर और दिव्यांगों की संस्था जयति भारतम की शुरुआत की थी।
उनकी शिष्या व अधिवक्ता रंजना अग्निहोत्री ने बताया कि स्वामी के कहने पर ही हमने उनकी ओर से अयोध्या के श्रीराम- बाबरी मस्जिद विवाद केस लड़ा था। 1980 में दीक्षा ली थी और 1989 से 2019 तक स्वामी जी की तरफ से केस लड़ती रही।
500 दिव्यांगों की होती है सेवा : शंकराचार्य द्वारा स्थापित जयति भारतम में 500 दिव्यांगों के निश्शुल्क रहने और पढ़ने की व्यवस्था की जाती है। रंजना अग्निहोत्री ने बताया कि शंकराचार्य ने धर्म के साथ ही देश की आजादी मेें भी अपना योगदान दिया था। 1942 में जेल भी गए गए थे। नौ साल की उम्र में घर त्याग दिया था। पिछले एक साल से अधिक समय से बीमार चल रहे थे। शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का जन्म दो सितंबर 1924 को मध्य प्रदेश के सिवनी जिले के दिघोरी गांव में हुआ था।