भोपाल। मध्यप्रदेश के सीहोर में धोखाधड़ी के मामले में न्यायालय ने आरोपियों को अलग-अलग मामलों में अलग-अलग सजा देते हुए 250 साल के कारावास की सजा सुनाई है। यह ऐसा अनूठा मामला है जिसमें न्यायालय ने आरोपियों को अलग-अलग मामलों में साढ़े 6 लाख रूपये का जुर्माना भी लगाया है।
मिली जानकारी के मुताबिक न्यायाधीश संजय कुमार शाही, विशेष न्याायालय ने निर्णय पारित करते हुए सांई प्रसाद कंपनी के चेयरमेन के बाला साहब भापकर के साथ-साथ कंपनी के सीहोर शाखा के कर्मचारी दीपसिंह वर्मा पिता गंगाधर वर्मा नि. ग्राम लसूडिय़ा परिहार, लखनलाल वर्मा पिता देवीलाल वर्मा नि. ग्राम खैरी, जितेन्द्रि कुमार पिता रामचरण वर्मा नि. ग्राम काकडखेड़ा, राजेश पिता भगवत परमार, बाला साहब भापकर पिता केशवराव भापकर निवासी पुणे महाराष्ट्र को दोष सिद्ध किया।
अभियुक्त दीप सिंह वर्मा, राजेश उर्फ चेतनारायण परमार, लखन लाल वर्मा, जितेन्द्र कुमार वर्मा एवं बाला साहब भापकर ने 17 नवम्बर 2009 से लेकर 13 मार्च 2016 की अवधि में आपस में मिलीभगत करके एवं षडयंत्र करके सांई प्रसाद प्रापर्टी क0 लि0 का अपने आपको चेयरमेन / डायरेक्टर / सी. एम.डी./ ऐजेन्ट बताकर सीहोर जिले के आस पास केगांव के निवेशकों को साई प्रसाद कंपनी में पैसा 5 साल में दुगना हो जाने आश्वासन देते हुए एवं भरोसा दिलाते हुए निवेशकों से पैसा जमा कराया, लेकिन जब निवेशकों द्वारा पॉलिसी परिपक्वता पूर्ण होने पर साई प्रसाद कंपनी के सीहोर स्थित कार्यालय में संपर्क किया गया, तब पाया कि कम्पनी के कार्यालय पर ताले लगे हैं।
निवेशकों द्वारा आरोपी से संपर्क करने उनके द्वारा आश्वासन दिया किया उनका पैसा मिल जाएगा। जब निवेशको को उनका पैसा नहीं प्राप्त हुआ तो थाना कोतवाली में प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराई, जिस पर आरोपी दीपसिंह, जितेन्द्र कुमार, लखनलाल वर्मा, राजेश उर्फ चेतनारायण परमार के विरूद्ध धारा 420 के अंतर्गत पंजीबद्ध कर विवेचना में लिया गया।
जांच के दौरान कंपनी के डायरेक्टर बाला साहब भापकर के खिलाफ विवेचना अधिकारी सउनि. सी.एल. रायकवार एवं सउनि महताब के द्वारा प्रकरण का अनुसंधान किया गया। सम्पूर्ण अनुसंधान उपरांत समस्त आरोपी के विरूद्ध धारा 420, 409, 120-बी भादिव, धारा 6 म.प्र. निक्षेपकों के हितों का संरक्षण अधिनियम 2000 के अंतर्गत अभियोग-पत्र न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया गया।
न्यायलय ने मामले की सुनवाई करते हुए साईं प्रसाद कंपनी के चेयरमैन और अन्य आरोपियों को ने 250 साल के कारावास की सजा सुनाई, साथ ही 6 लाख 50 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया।
बता दें कि चिटफंड कंपनी सांई प्रसाद सहित दर्जनों ऐसी कंपनियां हैं जिन्होंने छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश सहित कई अन्य राज्यों में अपना कारोबार किया और आम लोगों की गाढ़े पसीने की कमाई का अपने फर्म में निवेश कराया। शुरुआत में कुछ निवेशकों के मैच्युरिटी के पैसे भी दिए गए, मगर जब बड़ी संख्या में लोगों ने लाभ के फेर में रकम जमा कराये तब ऐसी कंपनियां सारा माल समेट कर गायब हो गईं। इन सभी के खिलाफ छत्तीसगढ़ के विभिन्न जिलों में फिर दर्ज कराया गया, अधिकांश की गिरफ़्तारी हुई और विभिन्न अदालतों में इनके खिलाफ सुनवाई चल रही है।
साईं प्रसाद कंपनी के संचालक बाला साहब भापकर के अलावा उसकी पत्नी वंदना भापकर तथा पुत्र शशांक भापकर, निवासी साईं दरबार लिंक रोड, सुखवानी उद्यान, चिचवाड़ा, जिला पुणे (महाराष्ट्र) के विरूद्ध छत्तीसगढ़ राज्य के जिला कोरबा में थाना बालको, जांजगीर-चांपा में थाना चांपा, रायगढ़ में कोतवाली, धमतरी में थाना धमतरी, कोरिया में थाना पटना, दुर्ग में थाना पुलगांव, बलौदाबाजार में थाना बिलाईगढ़, कसडोल, सरसींवा, कांकेर में थाना चारामा, सरगुजा में थाना लुण्ड्रा, जगदलपुर में थाना कोतवाली, दंतेवाड़ा में थाना कोतवाली, रायपुर में थाना राजेन्द्र नगर, बलरामपुर में त्रिकुण्डा, रामानुजगंज एवं कई अन्य राज्यों के थानों में पूर्व से अपराध दर्ज है।
भापकर ने लोगों के गाढ़े पसीने की कमाई को समेटकर बहुत बड़ा एम्पायर तैयार किया था। साथ ही न्यूज़ चैनल “न्यूज़ एक्सप्रेस” भी शुरू किया, जिसे बाद में उसे बेचना पड़ा। अपने कार्यक्रमों में फ़िल्मी सितारों को बुलाकर लाखों रूपये लुटाने वाले भापकर की हालत ये है कि उसका पूरा परिवार कभी इस जेल में तो कभी उस जेल में धक्के खा रहा है।
छत्तीसगढ़ में जी चिटफंड कंपनियों के खिलाफ अदालतों में सुनवाई चल रही है, उनमे से कई के डायरेक्टर बरी भी हो चुके हैं। वहीं कुछ अभी जेल में बंद हैं तो कई जमानत पर छूटे हुए हैं। बताया जा रहा है कि पुलिस की ओर पुख्ता प्रमाण के साथ अपना पक्ष नहीं रखे जाने के चलते लोग बाइज्जत बरी हो रहे हैं। पहली बार ऐसा मामला सामने आया है जिसमें किसी चिटफंड कंपनी के डायरेक्टरों को सजा हुई और वह भी सैकड़ों वर्षों की।
वर्तमान में जिन चिटफंड कंपनियों ने छत्तीसगढ़ में जमीन-जायदाद खरीदी उसे कुर्क कर राज्य सरकार द्वारा उनकी नीलामी की जा रही है और बिक्री की गई रकम को संबंधित जिलों के निवेशकों में आबंटन किया जा रहा है। हालांकि यह रकम ऊंट के मुंह में जीरा के सामान ही है।
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