सक्त्ती। जिले के प्रमुख धार्मिक नगर चंद्रपुर की नगर पंचायत में अध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव बहुमत से पारित हो गया। यहां के पार्षदों द्वारा भाजपा समर्थित अध्यक्ष अनिल अग्रवाल के खिलाफ बीते 20 मार्च को कलेक्टर के समक्ष अविश्वास प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया था।
चंद्रपुर नगर पंचायत में आज हुई वोटिंग के बाद निर्वाचन अधिकारी SDM दिव्या अग्रवाल ने बताया कि वोटिंग में अध्यक्ष के खिलाफ 12 मत पड़े, वही पक्ष में दो मत और इसके अलावा एक वोट रिजेक्ट भी हुआ।
विकास कार्य पड़ गए ठप्प : आयुष
अविश्वास प्रस्ताव को लेकर मीडिया से चर्चा करते हुए चंद्रपुर नगर पंचायत के एल्डरमैन आयुष अग्रवाल का कहना था कि नगर में विकास कार्य नहीं हो पा रहा था, साथ ही पार्षदों को विश्वास में नहीं लिया जा रहा था। नगर में आम लोगों को सुविधाएं मिलने की बजाय समस्याएं बढ़ गईं। इससे नाराज पार्षदों ने एकमत होकर अविश्वास प्रस्ताव पेश किया था।
पूर्व में CEO ने कर दिया था बर्खास्त
बताते चलें कि अविश्वास प्रस्ताव के चलते हटाए गए अध्यक्ष अनिल अग्रवाल को पूर्व में नगर पंचायत चंद्रपुर के CEO ने भ्रष्टाचार के किसी मामले में पद से बर्खास्त कर दिया था, मगर तब अनिल अग्रवाल हाईकोर्ट से स्टे ले आये और अपनी कुर्सी बचा ली, मगर इस बार पार्षदों की नाराजगी की वजह से उन्हें अपनी कुर्सी गंवानी पद गई। उम्मीद की जा रही है कि जल्द ही इस नगर पंचायत में नए अध्यक्ष का चुनाव कर लिया जायेगा।
यहां खतरे में रहता है अध्यक्ष का पद..!
गौर करने वाली बात यह है कि नगर पंचायत चंद्रपुर में अध्यक्ष का पद पहले भी खतरे में रहा है। यहां पूर्व के पंचवर्षीय कार्यकाल में पदस्थ अध्यक्ष श्रीमती अमृता देवांगन को हटाने के लिए वापस बुलाने की प्रक्रिया अपनायी गयी थी। बात सन 2014 की है। तब चंद्रपुर नगर पंचायत अध्यक्ष अमृता देवांगन को वापस बुलाने के लिए पार्षदों ने विहित अधिकारी को आवेदन दिया था। जिसे नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग द्वारा राज्य निर्वाचन आयोग भेजा गया। राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा अध्यक्ष को वापस बुलाए जाने के लिए मतदान की तिथि 23 जनवरी निर्धारित की और 23 जनवरी को अध्यक्ष को वापस बुलाए जाने के लिए नगर पंचायत के 15 बूथों में मतदान हुआ। उस दौरान मत पत्र में खाली कुर्सी और भरी कुर्सी का चिन्ह था। मतदान में खाली कुर्सी के पक्ष में 1350 और भरी कुर्सी के पक्ष में 1085 मत पड़े। इस तरह अध्यक्ष की कुर्सी चली गई। जनप्रतिनिधि को वापस बुलाए जाने का जिले में यह पहला मामला था।
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