Vidhava Auratein Safed Rang Saree Kyu Pahanati hai
आखिर क्यों विधवा को पहनने पड़ते है सफ़ेद वस्त्र ?
हमारा देश परंपराओं का देश है, यहां हर चार कदम पर परंपराएं बदलती रहती हैं और कुछ परंपराएं अच्छी लगती है तो कुछ अपनी पेचीदगी छोड़ती हैं। आज हम बात कर रहे हैं विधवाओं के लिए बनाई परंपरा और नियम-कायदे कानून के बारे में। शादी के बाद हर महिला को सजने संवरने का काफी शौक होता है।
महिलाओं का ऐसा सजना संवरना जरूरी भी होता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि जिन महिलाओं के पति की मृत्यु हो जाती है वह महिलाएं सजना-संवरना छोड़ देती हैं। ऐसी महिला रंगीन साड़ी नहीं पहनती हैं।वैसे तो समय के साथ सबकी जिंदगी में बदलाव आते है पर औरत की जिंदगी में जो बदलाव आते है उसे ताउम्र झेलना पड़ता है। खासकर शादी के बाद। शादी के बाद एक औरत की लाइफ पूरी तरह बदल जाती है। पति उसके लिए परमेश्वर हो जाता है। पति के रहते हुए उसे सोलह श्रृंगार का हक है। पर पति के जाते ही एक औरत की दुनिया वीरान हो जाती है और परंपराओं के नाम पर उसे सादगीभरा जीवन जीना पड़ता है।
विधवा से जुड़ें नियम
हमारे समाज में सदियों से अजीब सी परंपरा चली आ रही है। अगर किसी महिला का पति चला जाए तो उस महिला की जिंदगी बेरंग हो जाती है। उसे वनवास की जिंदगी जीना पड़ता है। हालांकि वक्त बदल चुका है, आज देश में विधवाओं को सम्मान दिया जा रहा है, उन्हें आजादी मिल रही है और कई जगहों पर पुनर्विवाह भी हो रहा है लेकिन अभी भी पूरी तस्वीर बदलने में वक्त लगेगा।
शास्त्रों में विधवाओं की दोबारा शादी करने का प्रावधान नहीं है। इसलिए उनके लिए कुछ नियम बनाए गए हैं जिसके पीछे कई ठोस कारण हैं। शास्त्रों के मुताबिक पति को परमेश्वर कहा जाता है और ऐसे में अगर परमेश्वर का जीवन समाप्त हो जाता है तो महिलाओं को भी संसार की माया-मोह छोड़कर भगवान में मन लगाना चाहिए।
महिलाओं का ध्यान ना भटके इसलिए उन्हें सफेद कपड़े पहनने को कहा जाता है क्योंकि रंगीन कपड़े इंसान को भौतिक सुखों के बारे में बताते हैं ऐसे में महिला का पति साथ नहीं होने पर महिलाएं कैसे उन चीजों की भरपाई करेगी। इसी बात से बचने के लिए विधवाओं को सफेद कपड़े पहनने को कहा जाता है।
विधवाओं को साफ सात्विक भोजन करने को कहा जाता है, उनको तला-भूना, मांस-मछली खाने से रोका जाता है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इस तरह के भोजन इंसान की काम भावनाओं को बढ़ाते हैं ।इसलिए उन्हें इस तरह से भोजन करने नहीं दिया जाता है।
अब लोगों की सोच बदल रही है इसी कारण आज विधवाओं को भी समाज में बराबरी का सम्मान दिया जा रहा है। कोई जरूरी नहीं कि हर नियम कानून से लोगों का फायदा हो।आज समाज का स्वरुप बदल रहा है। विधवाएं रंगीन वस्त्र भी पहन रही है और शादी भी कर रही हैं।
विधवाओँ के जीवन को आसान बनाता सफेद रंग
जब किसी स्त्री के पति की मृत्यु हो जाती है तो उसे रंगीन वस्त्र पहनने के लिए मना किया जाता है और वह सफेद वस्त्र पहनकर अपना जीवन व्यतीत करती है। ज्योतिषशास्त्र में भी बताया गया है विधवा स्त्री को सफेद रंग ही पहनाया जाता है। क्योंकि सफेद रंग सर्वाधिक पवित्र और सात्विक रंग है।
सफेद रंग का लिबास उसे मनोबल और सात्विकता प्रदान करता है। सफेद रंग उसे जीवन की सभी जिम्मेदारियों और चुनौतियों का सफलता से सामना करने की प्रेरणा देता है। इसी कारण से जब किसी स्त्री के पति की मृत्यु हो जाती है तो उसे सफेद कपड़े पहनने के लिए कहा जाता है।
सफेद रंग आत्मविश्वास की अनुभूति करवाता है ।जब किसी स्त्री के पति की मौत हो जाती है ,तो वह मानसिक तौर पर बहुत अकेला महसूस करती है .ऐसे में यह ज़रूरी है कि उसका आत्मविश्वास उसके साथ रहे ।ऐसा माना जाता है कि सफेद रंग को धारण करने से आत्मविश्वास में कोई कमी नहीं हो सकती।
सफेद रंग धारण करने से उसे समाज में एक अलग ही पहचान हो जाती है ।कोई दूर से भी देख कर उसे कह सकता है कि वह एक विधवा स्त्री है।जिसके कारण लोगों का उसकी प्रति दृष्टिकोण अलग हो जाता है ।जिससे उसे सहानुभूति और संवेदनशीलता मिलती है। जो एक प्रकार से उसके लिए ज़रूरी भी है.
एक कारण यह भी है कि सफेद वस्त्र धारण करने से वह स्त्री सांसारिक मोह से छूट जाती है। उसे यह समझ आ जाता है, कि अब उसकी जिंदगी रंगहीन हो गई है और इस संसार का कोई रंग उसके काम का नहीं हैं.।