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छत्तीसगढ़ में मिट्टी के वाटर बॉटल की है अच्छी डिमांड… कुकर, तवा और कढ़ाई भी उपलब्ध

रायगढ़। मिट्टी के बर्तन सेहत के लिए काफी फायदेमंद माने जाते हैं। खाना पकाने के दौरान धातु के बने बर्तनों के मुकाबले मिट्टी के बर्तन में कहीं ज्यादा मात्रा में पौष्टिक तत्व बरकरार रहते हैं। गर्मी के दिनों में मिट्टी के मटके के पानी के स्वाद और शीतलता के आगे सब फीका होता है। पीढिय़ों से मिट्टी के बर्तन हमारे खान-पान और जीवन शैली का हिस्सा रहा है। पहले गांवों में दही भी मिट्टी के बर्तन में ही जमाई जाती थी। कुल्हड़ की चाय का अपना स्वाद है। गर्मियों में पक्षियों की प्यास बुझाने घरों के बाहर मिट्टी के सकोरे रखने का चलन आज भी है। वक्त के साथ साथ मिट्टी से बने ये बर्तन चलन से बाहर होते चले गए और इनका प्रयोग सीमित हो गया।

किंतु रायगढ़ में आज महिलाएं भी ये मिट्टी के बर्तन बना रही हैं। जिन्हें सी-मार्ट के जरिए एक अच्छा बाजार मिल रहा है। लैलूंगा की राधारानी स्व-सहायता समूह की महिलाएं मिट्टी के बॉटल, कुकर, कढ़ाई, बर्तन बना रही हैं। समूह की हेमकुंवर कुराल बताती हैं कि वे मिट्टी के बॉटल बनाती हैं। जिनकी गर्मियों में खासी डिमांड रहती है। इसमें पानी ठंडा रहता हैए और इसको कहीं लाना ले जाना भी आसान है। इसके साथ ही वे मिट्टी की बनी कढ़ाई और कुकर भी बना रही है। लोकल लेवल पर विक्रय के साथ ही सी-मार्ट में भी उनके उत्पाद विक्रय के लिए रखा जा रहा है। वे बताती हैं कि उनका समूह राजपुर के गौठान से जुड़ा है। मिट्टी के बर्तन बनाने के साथ ही वे वर्मी कंपोस्ट निर्माण और सब्जी उगाने का कार्य भी करती रही हैं। अभी कोडासिया के रीपा से भी जुड़ी हुई हैं। उनके बनाए बर्तनों की स्थानीय स्तर के अलावा सी मार्ट में अच्छी मांग रहती है।

गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ शासन की गोधन न्याय योजना के तहत गौठानों में वर्मी कम्पोस्ट निर्माण के साथ महिला समूहों को विभिन्न आजीविका गतिविधियों में जोड़ा जा रहा है। जिससे महिलाएं आज आर्थिक रूप से स्वावलंबी हो रही हैं। घर खर्च में हाथ बंटा रही हैं। आजीविका संवर्धन को एक व्यवस्थित स्वरूप देने के लिए शासन ने ग्रामीण औद्योगिक पार्कों की स्थापना की शुरुआत भी की है। जिससे अब लोग गांवों में खेती-किसानी के साथ ही उद्यमिता की ओर बढ़ते हुए विभिन्न प्रकार की उत्पादक गतिविधियों का संचालन कर रहे हैं।

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