संसार में व्याप्त विपरीत स्थिति और कठिन परिस्थिति से मुक्ति हेतु शिवजी ने माता गंगा को धरती पर लाया. कहा जाता है कि पृथ्वी का उद्धार करने के उदेश्य से भागीरथ ने भगवान शिव की घोर तपस्या की और शिव को खुश करके माता की आज्ञा प्राप्त करने के बाद ही पृथ्वी पर ला पाए थे. कहते हैं माता की जल धारा बहुत ही तीव्र थी तो भागीरथ ने भगवान् शिव से प्रार्थना की वह माता को अपनी जटाओं से बहुत ही घीमी गति से छोड़े ताकि माता गंगा को पृथ्वी पर ले जाते हुए किसी भी प्रकार का नुकसान ना हो सके और भक्त की मन की इच्छा को जान का प्रभु ने ऐसा ही किया और भागीरथ माता को पृथ्वी पर लेकर आ गए, गंगा को पृथ्वी पर लाकर पृथ्वीवासियों की मुक्ति का रास्ता सुलभ करने का ही उद्देश्य था. इस कठिन समय में माता गंगा को प्रसन्न करने का एक आसान तरीका हैं गंगा स्त्रोत का पाठ.
मां गंगा की पूजा और आदि शंकाराचार्य कृत्य गंगा स्त्रोत का पाठ माता गंगा को प्रसन्न करने का एक आसान तरीका हैं. कहा जाता है कि मां गंगा स्त्रोत का पाठ करने से दस तरह के दोषों का नाश होता है. इस स्तोत्र का श्रद्धापूर्वक पढ़ना-सुनना, मन वाणी और शरीर द्वारा होने वाले पूर्वोक्त दस प्रकार के पापों से मुक्त कर देता है. यह स्तोत्र जिसके घर लिखकर रखा हुआ होता है, उसे कभी अग्नि, चोर, सर्प आदि का भय नहीं रहता. इस समय गंगा स्नान और गंगा दर्शन संभव नहीं है इसलिए मां गंगा स्त्रोत का पाठ और गंगा माता का स्मरण करने से स्वयं एवं संसार के सभी कष्ट दूर हो सकते हैं. घर पर स्नान करते समय भी मां गंगा का स्मरण करें. शुद्ध मन से प्रातः काल में स्नान कर मां गंगा का सुमिरन करें.
इस प्रकार उपाय करने से नीचस्थ गुरू के दोष दूर होते हैं और गुरू शनि युति के कारण बन रहे विष योग से रोग की प्रवृत्ति में कमी कर स्वास्थ्य पाया जा सकता है.
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