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Baba Sambhav Ram: जीवन, परिवार, संस्कार, शक्ति और मृत्यु को सही मायने में आप समझना चाहते हैं तो अघोरेश्वर बाबा संभवरामजी के आशीर्वचन पढ़ना चाहिए…

Baba Sambhav Ram: वाराणसी। गंगा नदी के तट पर स्थित अघोरेश्वर महाविभूति स्थल पर आज मां महा मैत्रायणी योगिनीजी के निर्वाण दिवस मनाया गया। इस अवसर पर श्रद्धालुओं को आशीर्वचन देते हुए सर्वेश्वरी समूह के पूज्य पाद बाबा संभव रामजी ने जीवन, परिवार, संस्कार, शक्ति प्राप्त करने के बारे में कई गुढ़ बातें बताई। उन्होंने कहा कि अच्छे संस्कारों से शक्ति और ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है। वरना, पूजा-पाठ, अक्षत, अगरबत्ती जलाने का कोई मतलब नहीं।

पढिये जीवन से जुड़ी उनकी अमूल्य बातें…

बाबा संभव रामजी ने कहा कि बातें तो बहुत सी अच्छी होती हैं लेकिन उस पर चलना हमारे लिए कठिन हो जाता है। उसके पीछे कारण यही है कि हमलोग अपने दैनिक कार्यों में से समय निकालकर थोड़ा ध्यान-धारणा, जाप-पूजा, चिंतन-मनन नहीं कर पाते हैं। इससे हमारा भटकाव दूर होता है, स्थिरता हमको प्राप्त होती है और जिसके लिए हम इन स्थानों पर आते हैं उसकी सार्थकता भी सिद्ध होती है।

इसलिए हमारी चेतना नहीं जाग रही

आज के समय में लोगों को अनेक तरह के कष्ट और पीड़ाएँ हैं, परेशानियाँ हैं और इन समस्याओं से हमारा समाज ही नहीं, पूरा देश और पूरा विश्व प्रताड़ित है। मानवकृत ऐसे-ऐसे कृत्य समाज में हो रहे हैं, हमलोग विचलित और दिशाहीन हो गए हैं जिससके चलते प्रकृति भी कुपित हो जा रही है। क्योंकि कहा भी है कि जो पिंडे सो ब्रह्मांडे। प्रकृति जब कुपित होती है तो उसके कोप से कोई बचता नहीं। यह सब बातें हमलोग सैकड़ों-हजारों बार सुन चुके हैं फिर भी हमारी चेतना जागती नहीं। क्योंकि हमने कभी अपने-आप को स्थिर करने का स्थिर होने का प्रयत्न ही नहीं किया।

आगे बढ़ने की अंधी दौड़

एक तो आज मनुष्य इतने कष्ट, दुःख और प्रताड़नाएँ भोग रहा है, हम सभी भोग रहे हैं, फिर भी मानुष ही मनुष्य को छोड़ने के लिए तैयार नहीं है। वह आपको कुचलते हुए आगे बढ़ने की अंधी दौड़ में लगा हुआ है। धन के लिए लोग किसी भी स्तर पर लोग गिर जा रहे हैं। यहाँ तक कि भाई-बंधू रिश्तेदार अपने ही लोगों को प्रताड़ित करने से हिचक नहीं रहे हैं। जबकि पहले न इतनी चीजे सभी को उपलब्ध थीं, न कोई आधुनिकता थी, न आवागमन की सुविधाएँ थीं, थोड़े में ही लोग संतुष्ट रहते थे और एक-दूसरे के साथ प्रेम से रहते थे। सभी लोग अपने-अपने कार्यों में लगे रहते थे। पहले के परिवारों में आपस में एक नैतिकता थी, एक चरित्र था। सब लोग अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाते थे, महिलाएँ अपना घर संभालती थीं।

तो आप परेशानियों से मुक्त होंगे

बाबा ने आशीर्वचन में कहा कि बिना महापुरुषों के सान्निध्य के, बिना उनकी वाणियों का अवलंबन लिए, अगर हमलोग नहीं वैसा आचरण-व्यवहार करेंगे, उस पर चलेंगे नहीं, करेंगे नहीं, तो कष्ट तो आना ही है। क्योंकि संसार में कष्ट-ही-कष्ट है, दुःख-ही-दुःख है, परेशानियाँ-ही-परेशानियाँ हैं, चाहे वह मानसिक हो, शारीरिक हो। इसका एक मात्र उपाय है कि गुरुजनों ने जो रास्ता बताया है, जो वह कहते हैं, उस पर आप चलेंगे और उनकी छाया को, उनके एक कण को आप प्राप्त कर लेंगे तो इस दुनिया के दुःख पर परेशानियाँ हमको बिल्कुल परेशान नहीं करेंगी। लेकिन चलना हमको है, संस्कार हमको अपने बनाने हैं। कोई हमारा कितना ही सगा हो, लेकिन अपने कर्मों को स्वयं अपने ही भोगना होगा।

परिवार में चुप्पी का महत्व

बाबा ने कहा कि एक परिवार में भी कई तरह के विचार उत्पन्न होते हैं जिससे एक-दूसरे में अहंकार पैदा होता है, लड़ाई-झगड़ा होता रहता है, इसका आपलोग भी अनुभव करते होंगे- समाज में, परिवार में। उस परिस्थिति को भी किस तरह से हमोको टालना है, उससे बाहर निकलना है? वह चुप रहकर भी हम उसको टाल सकते हैं। क्योंकि कहा भी गया है कि एक चुप्पी हजार कलह का नाश करती है। और यदि हम चुप रहकर, समझदारी से, बुद्धिमानी से, अपने विवेक से, उन संत-महात्माओं की वाणियों को लेकर चलते हैं अपने परिवार में तो हम बहुत-सी चीजों को टाल सकते हैं। लेकिन इस आर्थिक युग में कोई किसी को छोड़ने वाला भी नहीं है।

अत्यधिक चालाकी से नुकसान

हमें स्वयं सतर्क रहना होगा। क्योंकि जबतक हमलोग अपने आपसे सतर्क नहीं रहेंगे, अपने-आप को धोखा में रखेंगे, अपने-आप से चालाकी करेंगे तब तक तो हम प्रताड़ित होते रहेंगे। हमें यह भी समझना होगा कि अपने-आप से चालाकी क्या हमको अपने संस्कारों से दूर ले जाता है, हमारे कर्मों को गिरा देता है, हमारे इस जीवन या आनेवाले जीवन या आनेवाला समय को भी गलत दिशा में ले जाता है, हमको समूल नाश कर देता है। हम अपनी आत्मा को अपने ही पद्दलित कर देते हैं।

अपना कर्म हमें भोगना होगा

जो भी इन अवसरों पर आश्रमों में हमलोग इकट्ठा होते हैं, विहारों में इकट्ठा होते हैं, तो आप-हम सभी को वह महापुरुष लोग यही प्रेरणा देते हैं और हमारी इस पारिवारिक गोष्ठी में भी अभी जो वक्ताओं ने कहा, अपना परिवार समझ कर बातें की तो मैं भी आपलोग को अपना परिवार समझ कर कह रहा हूँ कि हमलोग अभी से भी तो जाग जायँ। नहीं, तो अपना कर्म तो हमें भोगना ही होगा।

अच्छे संस्कार बिना शक्ति की अराधना नहीं

हमलोग अपने-आप को, अपने शरीर को स्वस्थ रख सकते हैं अपनी मानसिकता को ठीक कर सकते हैं। लेकिन उसके लिए हमको वह आत्मबल चाहिए, वह शक्ति चाहिए। क्योंकि शिव भी बिना शक्ति के शव के समान होते हैं। शक्ति का साथ होता है तो सबकुछ करने में समर्थ होते हैं। अगर हममें शक्ति का अभाव है तो उसकी जो हम आराधना-पूजा-प्रार्थना करना चाहते हैं वह सही मायने में हमलोग कर नहीं रहे हैं। फूल चढ़ाकर या अक्षत चढ़ाकर या मीठा चढ़ाकर, फल चढ़ाकर, पैसा फेंककर चाहते हैं कि हो जाए वैसा तो वह नहीं हो पा रहा है। शक्ति का अर्जन तब होगा जब हमारे आचरण-व्यवहार, ध्यान-धारणा, अपने संस्कार-संस्कृति, चरित्र को बनाए रखेंगे और उन महापुरुषों की वाणियों का अवलंबन लेंगे। बगैर शक्ति का संग्रह किए हमलोग कुछ नहीं कर पाएंगे।

मृत्यु से डरिये, भागिये मत

अपने बच्चों में संस्कार देने के लिए जो आपलोगों ने अभी सुना उस पर भी अवश्य ध्यान दें कि हमलोग केवल जन्म के बाद ही नहीं जन्म के पहले से भी उन पर ध्यान दें। जैसा कि हमारे यहाँ एक पुस्तिका है- “मृत्यु अंत्येष्टि क्रिया” उसमे वह सब अच्छे से वर्णित है। कई लोग तो उसका नाम सुनते ही घबराते हैं, क्योंकि मरने से बहुत डरते हैं, भागते हैं उसको पढ़ने से। मृत्यु से ऐसा डरते हैं लोग जबकि मृत्यु आनी सुनिश्चित है। वह होकर ही रहेगा हमलोगों के साथ। हमलोग अपना-अपना कार्य करके, अपने-अपने संस्कारों को बनाकर यहाँ से चले जायेंगे।

ईश्वर को प्राप्त करने कोई बंधन नहीं

जो ईश्वर को प्राप्त करना चाहता है वह उसकी तरफ झुकता है और अपने सारे कार्यों को करते हुए भी उसको प्राप्त करता है। हमारे इतिहास में भी है, हमारे महापुरुष भी ऐसे हुए हैं, गृहस्थ भी हुए हैं, विरक्त भी हुए हैं, बहुत बड़े लोग भी हुए हैं और बिल्कुल जो अनपढ़ हैं जिनके पास कुछ नहीं है उन्होंने भी प्राप्त किया है। उसको प्राप्त करने में कोई जाति, धर्म, मजहब, अमीर, गरीब की कोई बाध्यता नहीं है। बस हमको थोड़ा विवेक चाहिए, बुद्धि चाहिए कि हम सारे अच्छे कर्मों को करते हुए उसको प्राप्त करने की ओर हमलोग अग्रसर हों। हमारे जीवन के आवागमन से छुटकारा उसी से मिलेगा। नहीं तो अनेक योनियों में जन्म लेकर अनेक दुखों को सहकर हमलोग वही करते रहेंगे।

मनुष्य अपनी शक्ति को पहचाने

बाबा ने कहा कि अपनी मानसिकता शुद्ध रखें और अपने मन को वहाँ रखें जहाँ पर गुरुजनों की आप पर कृपा है। उनके विचारों का अनुसरण करते रहें अपने हर कार्यों को करते हुए जीवन में आगे बढ़ते रहें। जैसा कि वह डॉक्टर साहब कह रही थीं कि आप आधुनिक चीजों का, टेक्नोलॉजी का पूरा आप लोग इस्तेमाल करिए, लेकिन अपने को गर्त में जाने से बचाने के लिए आपको वही रास्ता अपनाना होगा। अपने कर्मों से हमारे लिए जो भोग है वह तो भोगना सुनिश्चित है, लेकिन उससे भी हमलोग अपने को निजात दिला सकते हैं। लेकिन हममें न उतना विश्वास है, न श्रद्धा है, न भक्ति है। इससे भी हो सकता है, क्योंकि कहा भी गया है कि “मंत्र महामणि विषय व्याल के, मेटत कठिन कुअंक भाल के”। जो हमारे लिए खराब लिखा है आने वाले समय के लिए, उसको भी हमलोग टाल सकते हैं। मनुष्य के पास इतनी शक्ति होती है, लेकिन वह पहचानता नहीं। जब तक उस शक्ति को नहीं प्राप्त करेगा उसका आवाहन नहीं करेगा तबतक हमलोग बहुत कमजोर हुए रहेंगे। मरने से भी डरते रहेंगे तो भी कुछ नहीं कर सकते। जो व्यक्ति मृत्यु से नहीं डरता है, वह कुछ भी कर सकता है। उसके पास तो शक्ति आनी-ही-आनी है। शक्ति उसी को कहा जाता है जो निर्भय होकर, बलवान होकर, समझदार होकर, वीर्यवान होकर अपने कर्तव्य पथ पर चलता है, उसी के पास शक्ति आती है।

संस्कार ही साथ में जाएगा

बंधुओं! आज के इस विचार गोष्ठी में आपलोगों के उज्जवल भविष्य की कामना करता हूँ। और हमारे जो महापुरुषों ने महामैत्रायणी योगिनी जी ने भी हमलोग को जो सीख दी है, उस पर हमलोग जरूर चलें और अपने संस्कारों को बचाए रहें। यही प्रार्थना करता हूँ। क्योंकि यही हमारे साथ जाएगा भी, और जितना दिखाई दे रहा है, सुनाई पड़ रहा है, जिसको हम भोग रहे हैं, उपभोग कर रहे हैं, वह कुछ नहीं रहेगा, कोई साथ नहीं जाएगा। हमारा संस्कार, हमारे कर्म हमको भोगना ही होगा। अच्छा, अच्छा रहेगा। बुरा, बुरा होगा। इसी के साथ मैं आपलोगों के उज्जवल भविष्य की कामना करता हूं और अपनी वाणी को विराम देता हूँ। आप सभी में बैठे उसका अज्ञात को प्रणाम करता हूँ।

पूज्यपाद बाबा गुरुपद संभव राम जी ने अपने आशीर्वचन में निम्नलिखित बातों पर बल दियाः

अच्छे संस्कारों का महत्व

1. अच्छे संस्कारों को अपनाकर शक्ति प्राप्त करना आवश्यक है।

2. संस्कारों का महत्व हमारे जीवन में बहुत अधिक है, और हमें उन्हें बनाए रखना आवश्यक है।

आत्म-चेतना और स्थिरता

1. अपने आप को स्थिर करने और आत्म-चेतना को बढ़ाने के लिए ध्यान-धारणा, जाप-पूजा, और चिंतन-मनन करना आवश्यक है।

2. आत्म-विश्वास और शक्ति के साथ हम अपने जीवन को सुधार सकते हैं।

परिवार में संस्कार

1. अपने बच्चों में अच्छे संस्कार डालने के लिए जन्म से पहले और बाद में भी ध्यान देना आवश्यक है।

2. परिवार में आपस में एक नैतिकता होनी चाहिए, एक चरित्र होना चाहिए।

शक्ति का अर्जन

1. शक्ति का अर्जन करने के लिए अपने आचरण-व्यवहार, ध्यान-धारणा और संस्कारों को बनाए रखना आवश्यक है।

2. शक्ति उसी को कहा जाता है जो निर्भय होकर, बलवान होकर, समझदार होकर, वीर्यवान होकर अपने कर्तव्य पथ पर चलता है।

मृत्यु की अनिवार्यता और आत्म-ज्ञान

1. मृत्यु आनी सुनिश्चित है, लेकिन हम अपने कर्मों से उसे टाल सकते हैं।

2. आत्म-ज्ञान और आत्म-चेतना के बिना हम अपने जीवन को सुधार नहीं सकते।

इससे पहले गंगा के पावन तट पर स्थित अघोरेश्वर महाविभूति स्थल के पुनीत प्रांगण में परमपूज्य अघोरेश्वर भगवान राम जी की जननी “माँ महा मैत्रायणी योगिनी जी” का 33वाँ निर्वाण दिवस बड़ी ही श्रद्धा एवं भक्तिमय वातावरण में मनाया गया। मनाने के क्रम में प्रातः आश्रम परिसर की साफ-सफाई की गई। 8ः30 बजे से पूज्यपाद बाबा गुरुपद संभव राम जी ने परमपूज्य अघोरेश्वर महाप्रभु एवं माताजी की समाधि पर माल्यार्पण, पूजन एवं आरती किया। इसके बाद पृथ्वीपाल जी ने सफलयोनि का पाठ किया।

मध्याह्न 11ः45 बजे से एक पारिवारिक विचार गोष्ठी आयोजित की गयी जिसमें वक्ताओं ने माँ महा मैत्रायणी योगिनी जी को याद करते हुए उनसे प्रेरणा लेने की बात कही। वक्ताओं में डॉ० दिव्या सिंह, किरण द्विवेदी, पूनम सिंह (पड़ाव), अल्का सिंह, पूनम सिंह (डीआईजी कालोनी) और छोटी बच्ची शुभदा पाण्डेय ने अपने विचार व्यक्त किये। आकृति कुमारी, जया दूबे, कुमारी वैष्णवी ने भजन गाया। कुमारी राशि ने मंगलाचरण किया। गोष्ठी का सत्र संचालन अवधूत भगवन राम नर्सरी विद्यालय की अध्यापिका सुष्मिता ने किया तथा धन्यवाद ज्ञापन संस्था के उपाध्यक्ष सुरेश सिंह ने किया।

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