विशेष संवादाता
रायपुर। बीजेपी से विधायक, सांसद और संगठन में कई आला पदों में रहे सबसे पढ़े-लिखे आदिवासी नेता नंदकुमार साय को कांग्रेस जाने से रोकने में बुरी तरह नाकाम रहे हैं प्रदेश संगठन के आला पार्टी नेता। नंदकुमार साय जैसे एक दबंग आदिवासी नेता का यूं पार्टी से चला जाना और इसकी भनक भी प्रदेश प्रभारी ओम माथुर व प्रदेश संगठन अध्यक्ष अरुण साव को नहीं लगना चौंकाने वाली बात है। ओबीसी वर्ग को रिझाने में मशगूल बीजेपी नेताओं के लिए ऐन चुनावी साल में आदिवासी नेता के जाने से सियासी संकेत ठीक नहीं हैं।
प्रदेश प्रभारी ओम माथुर 6 दिन के प्रदेश प्रवास में रहे और अरुण माथुर उनके साथ बैठकों में व्यस्त थे। ऐसा नहीं की नंदकुमार का यह औचक फैसला था पार्टी छोड़ने का। सियासी गलियारे में साय की अनदेखी यूं तो रमन शासनकाल के वक्त से की जा रही थी और यह सिलसिला बदस्तूर जारी था। हालांकि नंदकुमार ने कई मौकों पर नाराज़गी, अनदेखी और आदिवासी हितों के लिए सामाजिक नेताओं को एक मंच में लेकर आ गए थे। फिर भी भूपेश सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलने वाले बीजेपी नेता ओम माथुर और अरुण साव समझाइश की बजाये इस नुकसान को नज़रअंदाज़ कर गए।
रविवार की सुबह से कांग्रेसी गलियारे में हल्ला था। बीजेपी भी बाख़बर थी पर आत्ममुग्ध वरिष्ठ नेता आंकलन नहीं कर पाए। देर शाम तक बीजेपी नेताओं में चर्चा शुरू हुई उस वक्त भी वर्तमान पार्टी नेता नंदकुमार को समझने के लिए खुद जाने की बजाय वरिष्ठ भाजपा नेता एवं पूर्व भाजपा प्रदेश अध्यक्ष विष्णु देव साय एवं संगठन महामंत्री पवन साय ने नंदकुमार साय के निवास पर जाकर भेंट करने का प्रयास किया वहां जानकारी दी गई कि वह दिल्ली में है उनसे दूरभाष से संपर्क करवाने का निवेदन किया गया , उन्हे सूचना दे दी गई परंतु उनकी कोई प्रतिक्रिया नही आई। निवास पर नंद कुमार साय के सुपुत्र से मुलाकात हुई , लगभग 2 घंटे उनके निवास पर रहकर दूरभाष से कुछ संदेश उन तक और पहुंचे परंतु कोई प्रतिक्रिया नही आई। सोमवार को मेफेयर से श्री साय निकले।
पी आर खूंटे और साय का प्रकरण एक ही तरफ का, दोनो ने जल्दबाजी में पार्टी छोडी दोनो के कारण एक ही तरह के रहे। श्री खूंटे के फैसले का उतना नुकसान बीजेपी को महसूस नहीं हुआ था जितना छत्तीसगढ़ में भूपेश सरकार के खिलाफ सक्रिय बीजेपी के कथित नेताओं को नंदकुमार साय के जाने से हो सकता है। सियासतदां तो यह भी कहने लगे हैं कि बीजेपी से आदिवासी नेताओं का पलायन चुनाव अचार संहिता लगने से पूर्व और पश्चात् तेज होगा।