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CG के दीपक किंगरानी ने लिखी ‘सिर्फ एक बंदा काफी है’ की पटकथा, इंजीनियरिंग छोड़ पकड़ी बॉलीवुड की राह, बाबा का रोल खामोश क्यों? बताई ये वजह…

Sirf Ek Banda Kafi Hai

रायपुर. ओटीटी पर एक फिल्म की काफी चर्चा है, नाम है – सिर्फ एक बंदा काफी है. फिल्म आसाराम बापू के केस पर आधारित है. इसमें मुख्य भूमिका मनोज वाजपेयी की है. वाजपेयी वकील पीसी सोलंकी की भूमिका में हैं, जिन्होंने पीड़िता की ओर से केस में पैरवी की थी और आसाराम को जेल भिजवाया था. यदि आपने फिल्म नहीं देखी है तो ZEE 5 में देख सकते हैं. खैर, हम मूवी की कहानी नहीं बताने जा रहे, बल्कि हम तो इसकी कहानी लिखने वाले के बारे में बताने जा रहे हैं, जो छत्तीसगढ़ के भाटापारा से हैं, नाम है दीपक किंगरानी. जो लोग भाटापारा से हैं, उन्हें तो पता ही होगा, लेकिन आप सबकी जानकारी के लिए बता दें कि दीपक के पिता का नाम लक्ष्मण दास किंगरानी है. वैसे तो उनका कारोबार है, लेकिन वे पत्रकार भी रहे हैं. नागपुर से प्रकाशित एक अखबार के वे भाटापारा के संवाददाता थे. 

दीपक ने 11वीं तक की पढ़ाई भाटापारा में की, फिर रायपुर के सेंट पॉल स्कूल से बारहवीं तक पढ़ाई की. इसके बाद इंजीनियरिंग की और यूएसए में नौकरी करने चले गए. पांच साल तक आईटी कंपनी में जॉब करने के बाद उनके भीतर का लेखक जागा और आईटी के मकड़जाल से धकेलकर मुंबई ले आया. आपने यदि स्पेशल ऑप्स देखी है तो उसमें भी दीपक ने पटकथा लिखी है और अक्षय कुमार की एक मूवी आ रही है कैप्सूल गिल द ग्रेट इंडियन रेस्क्यू… इसमें भी दीपक ने काम किया है. सिर्फ एक बंदा काफी है, में उनके काम को काफी सराहा जा रहा है. कोर्ट रूम में मनोज वाजपेयी के डायलॉग आपके रौंगटे खड़े कर देंगे तो पीड़िता से जिस तरह के सवाल किए गए उसे सुनकर खून खौल उठेगा. बाबा का रोल खामोश है, लेकिन किरदार को देखकर गुस्सा आएगा. बस यही क्रिएटिविटी दीपक किंगरानी की है.

इंजीनियरिंग से अचानक कलम थामने के सवाल पर दीपक का कहना है कि पिता लेखन से जुड़े रहे, इसलिए उनका प्रभाव तो था ही. आईटी जॉब के दौरान ही मन में यह बात रह-रहकर आती रही कि लिखने का मन है, उसे पूरा करें. हालांकि यह सोचते-सोचते पांच साल लग गए. आखिरकार यह तय किया कि अब और देर नहीं करनी चाहिए और मुंबई की फ्लाइट पकड़ ली. सिर्फ एक बंदा काफी है को लेकर हमने उनसे बात की, आप भी पढ़ें क्या कहते हैं दीपक…

हर अपराधी को सजा मिलेगी

“फिल्म बनाने से पहले ही हमने तय कर लिया था कि हम पॉजिटिव संदेश पर काम करेंगे. नेगेटिविटी के बारे में तो पहले ही लोग जानते हैं. मुझे यह बताने की जरूरत नहीं है कि िहटकर कौन है. अपराध के बारे में बताने के बजाय हमने उस संदेश पर जोर दिया कि अपराधी कोई भी हो, उसे सजा मिलेगी.

हमने रामायण, गीता और अन्य ग्रंथों का अध्ययन किया. आखिरकार हमें वह मिल गया, जिसकी तलाश थी. फिल्म के अंत में मनोज वाजपेयी का किरदार शिव-पार्वती संवाद का प्रसंग सुनाकर वही तर्क रखता है कि बाबा रावण है.

धर्म की आड़ में विश्वासघात न हो

हमने इस बात का ख्याल रखा कि फिल्म का समापन ऐसे हो कि लोगों के भीतर हलचल हो. हम वह पैदा करने में कामयाब रहे. धर्म की आड़ में विश्वासघात नहीं होना चाहिए. हम सब सनातन धर्म के मानने वाले हैं. हमारे आसपास संत होते हैं, जिन्हें हम पूजते हैं. चुनिंदा लोगों के कारण समाज में ऐसा कोई परसेप्शन नहीं बनना चाहिए. मुझे लगता है कि हम वह संदेश देने में कामयाब रहे.

मनोज वाजपेयी हर किरदार में छाप छोड़ते हैं

फिल्म में मनोज वाजपेयी ने वकील की भूमिका निभाई है. वे एक ईमानदार कलाकार हैं. उनकी अपनी स्टडी है. अपना तरीका है. उन्हें हम चार लाइनें बताते हैं और वे उसे चालीस लाइन बना लेते हैं. जब तक के फिल्म खत्म नहीं होती है, वह किरदार में रहते हैं. वे अपनी कला के प्रति बेहद ईमानदार हैं. वे हम पर कुछ नहीं थाेपते, बल्कि हमें समझने की ज्यादा कोशिश करते हैं, जिससे किरदार के साथ न्याय हो सके.

छत्तीसगढ़ी सिनेमा में ईमानदार कोशिश की जरूरत

मुझे लगता है कि छत्तीसगढ़ी सिनेमा में ईमानदार कोशिश की जरूरत है. छत्तीसगढ़ भौगोलिक और सांस्कृतिक रूप से काफी विभिन्नता समेटे हुए है. हम जड़ों की ओर जाएंगे तो ऐसी कहानियां मिलेंगी, जिसे लोग जानना चाहेंगे, देखना चाहेंगे. हमें किसी को कॉपी करने की जरूरत नहीं है, बल्कि नैचुरल कहानी पर काम करने की जरूरत है. अनुज शर्मा जैसे प्रभावशाली कलाकार हैं, लेकिन जरूरत ईमानदार फिल्म की है.

अक्षय कुमार के साथ दिखेंगे नत्था

अब अगली फिल्म कैप्सूल गिल यानी द ग्रेट इंडियन रेस्क्यू है. इसमें अक्षय कुमार मुख्य भूमिका में हैं. वे एक माइनिंग अफसर हैं, जिन्होंने अपनी सूझ-बूझ और साहस से लोगों की जान बचाई थी. इसमें पीपली लाइव के नत्था यानी ओंकार दास मानिकपुरी भी दिखेंगे. मानिकपुरी भी छत्तीसगढ़ के भिलाई के हैं और हबीब तनवीर के थिएटर ग्रुप के सदस्य रहे हैं.

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