दंतेवाड़ा : छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग में स्थित माँ दंतेश्वरी मंदिर जो लोगो के लिए आस्था का केंद्र है। हर साल लाखो के तादाद में भक्त माता के दर्शन के लिए आते है। दंतेश्वरी माता मंदिर को बस्तर की आराध्य देवी माना जाता है। वहीं करीब 6 महीने बाद मां दंतेश्वरी मंदिर की दान पति खोली गई, जिसमें 17 लाख 14 हजार 512 रुपए प्राप्त हुए हैं। इसके अलावा भक्तो के अलग-अलग भाषा में लिए पत्र भी मिले। जिसमें भक्तों ने अपनी बात माता के सामने राखी थी। किसी ने नौकरी के लिए तो किसी ने पारिवारिक कलह को दूर करने माता से मन्नत मांगी है। साथ ही कुछ भक्तों ने जॉब के लिए माता से मन्नत मांगी थी, जिनकी मुराद पूरी होने के बाद पहली सैलरी माता को समर्पित की है।
जानकारी के अनुसार 2023 में पहली बार दंतेश्वरी माता मंदिर की दान पति को खोला गया। जिसमें भक्तों के द्वारा चढ़ाये गए पैसे और चिठ्ठी मिली। हजारो चिठ्ठी के साथ 17 लाख 14 हजार 512 रूपए प्राप्त हुए। मंदिर के प्रधान पुजारी हरेंद्र नाथ जिया, सहायक पुजारी लोकेंद्र नाथ जिया, सेवादार एल आर दीवान समेत टेंपल कमेटी के अन्य सदस्यों की मौजूदगी में दान पेटियां खुली है। बताया जा रहा है कि, कोरोनाकाल के बाद अब तक की सबसे बड़ी रकम दान पेटी से प्राप्त हुई है। जिसे टेंपल कमेटी के खाते में जमा करवा दिया गया है।
माँ दंतेश्वरी मंदिर (Danteshwari Temple)
दंतेश्वरी मंदिर छत्तीसगढ़ के दंतेवाडा में डंकिनी और शंखिनी नदी के संगम के पास में स्थित है। मंदिर में स्थित माता की मूर्ति षटभुजी वाले काले ग्रेनाईट पत्थर से बनी हुई है। दंतेश्वरी माता की मूर्ति की 6 भुजाएँ है जिनमे से दाएँ हाथों में क्रमश शंख, खडग और त्रिशूल है बाएं हाथों में क्रमश घंटी, पद्म और राक्षस है। मूर्ति के उपर चाँदी का छत्र है वस्त्र आभूषण से अलंकृत है। माता जी का प्रतिदिन श्रंगार के साथ मंगल आरती किया जाता है। द्वार पर दोनों ओर द्वार पाल की मूर्ति है जो एक हाथ में सर्प और दूसरे में गदा लिए हुए खड़े हैं। मंदिर चार भागों में विभाजित है जैसे 01. गर्भग्रह 02. महामंडप 03. मुख्यमंडप 04. सभा मंडप
गर्भ ग्रह और महामंडप का निर्माण एक ही पत्थर से किया गया है। इन सभी के अलावा मंदिर में और भी कई भगवानों की मूर्तियां हैं जैसे गणेश जी, शिव जी, विष्णु, भैरव इत्यादि।
इस मंदिर के गर्भग्रह में सिले हुए कपड़े पहनकर जाना मना है यहाँ पुरुष धोती या लुंगी पहनकर ही मंदिर में जाते हैं इसलिए मंदिर जाने से पहले धोती पहनना जरुर सीख लें। दंतेश्वरी मंदिर के अलावा यहाँ और भी कई सारे मंदिर है जैसे माँ भुनेश्वरी का मंदिर, भैरव मंदिर इत्यादि। स्थानीय लोगो की मान्यता है की दंतेश्वरी देवी की पूजा अर्चना करने के बाद भैरव बाबा का दर्शन करना आवश्यक है अन्यथा पूजा पूर्ण नही माना जाता है।
दंतेश्वरी मंदिर का इतिहास ( Danteshwari Temple History In Hindi )
वारंगल राज्य के राजा अन्नम देव ने चौधरी शताब्दी में दंतेश्वरी मंदिर का निर्माण करवाया। इस मंदिर को 52वाँ शक्ति पीठ माना जाता है। इस मंदिर के निर्माण के बाद कई राजाओं ने मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया। सबसे पहले वारंगल के अर्जुन कुल के राजाओं ने करवाया उसके बाद वर्ष 1932-33 में महारानी प्रफुल्ल कुमारी देवी ने जीर्णोद्धार करवाया। इस मंदिर से संबंधित कई सारी किवदंतियां प्रचलित है जिनके बारे में नीचे बताया गया है।
ऐसा माना जाता है कि अन्नमदेव वारंगल से जब यहां आए तो उन्हें दंतेश्वरी माता का वरदान मिला था की जहां तक अन्नमदेव और उनके पीछे देवी आयेंगी जहाँ तक अन्नमदेव पैदल जायेंगे वहां तक उनका राज्य का विस्तार होगा लेकिन एक शर्त यह थी कि वो पीछे मुड़कर नहीं देख सकते हैं अगर पीछे मुड़कर देखते हैं तो वहां पर देवी को स्थापित करना होगा।
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