Chanakya Niti : आचार्य चाणक्य के लिखे श्लोकों को पढ़कर जीवन पथ पर सही रीति से चलने की शिक्षा मिलती है। भूलवश होने वाली गलतियों से वे पहले ही आगाह करते हैं। इस श्लोक में वे चार स्थितियों को जीवित के लिए विष समान बता रहे हैं यानी इनसे नुकसान तय है। चाणक्य लिखते हैं-
अधूरा ज्ञान
आचार्य चाणक्य कहते हैं कि यदि इंसान को शास्त्र का ज्ञान प्राप्त करना है( मौजूदा समय के संदर्भ में किसी भी विषय में प्रवीण होना) तो उसे निरंतर अभ्यास करना चाहिए। निरंतर अभ्यास के बिना प्राप्त किया गया ज्ञान अधकचरा होता है और विष समान होता है। उससे किसी भी उद्देश्य की पूर्ति नहीं हो सकती। न ही सफलता मिल सकती है।
पचने से पहले दोबारा भोजन
इसी तरह अगर पहले किया हुआ भोजन नहीं पचा है और आप स्वादिष्ट भोजन के मोह में और खाना खा लेते हैं तो उसे भी शरीर के लिए विष का ही काम करना है। वे कहते हैं अजीर्ण की स्थिति में कभी नहीं खाना चाहिए।
दरिद्रता
आगे आचार्य कहते हैं कि दरिद्र व्यक्ति के लिए समाज में रहना भी विष समान है। वह जिस भी समाज,सभा या संगठन में जाएगा वहां उसकी पूछ नहीं होगी और उससे अपमानित होकर लौटना पड़ेगा क्योंकि यही समाज का चरित्र है।
वृद्ध का युवती संग विवाह
इसी तरह यदि कोई वद्ध किसी तरुणि यानी युवती से विवाह कर लेता है तो उसका जीवन अत्यधिक कष्टमय हो सकता है। आयु में यह अंतर भी जीवन को विषमय बनाता है। प्रथम तो दोनों के बीच सिर्फ आयु का ही अंतर नहीं होता बल्कि वैचारिक विकास में भी जमीन-आसमान का अंतर होता है। इसलिए आपसी समझ विकसित नहीं हो पाती जो विवाह संबंध के सुचारु संचालन के लिए बेहद जरूरी है। यही नहीं शारीरिक रूप से भी वद्ध तरुणि को संतुष्ट नहीं कर सकता। इसलिए युवती के पथभ्रष्ट होने का भय है। यह स्थिति भी सम्मानित बुजुर्ग के लिए विष समान है।