संजय के. दीक्षित
Chhattisgarh Tarkash:
आईपीएस की रिकार्ड पारी
किसी भी राज्य के आईपीएस कैडर में अफसरों की संख्या तो बड़ी होती हैं मगर उनमें चर्चित चेहरे गिने-चुने ही होते हैं। छत्तीसगढ़ के आईपीएस कैडर में ऐसा ही एक नाम दुर्गेश माधव अवस्थी याने डीएम अवस्थी का था। डीएम कल 31 मार्च को 37 साल की इनिंग खेलकर रिटायर हो गए। बता दें, छत्तीसगढ़ में अभी तक किसी आईपीएस ने इतनी लंबी सर्विस नहीं की है। देश में भी अब तक सिर्फ 14 आईपीएस ही ऐसे रहे, जिनकी 37 बरस की सर्विस रही। छत्तीसगढ़ में आईएएस की बात करें तो, 92 बैच के आईएएस सुब्रत साहू 2028 में रिटायर होंगे। उनका सर्विस 36 होगी। चीफ सिकरेट्री अमिताभ जैन भी आईएएस में जल्दी सलेक्ट हो गए थे। 89 बैच के अमिताभ 2025 में रिटायर होंगे। याने 36 साल। 72 बैच के बीकेएस रे भी 36 साल की सर्विस कर 2008 में रिटायर हुए। 83 बैच के अजय सिंह एकमात्र आईएएस हैं, जो 37 साल की सेवा के बाद 2020 में रिटायर हुए। बहरहाल, 1986 बैच के कानपुर के इस ब्राम्हण अफसर डीएम अवस्थी की किस्मत भी गजब की रही। दिसंबर 2018 में जब सत्ता बदली तो नए डीजीपी के लिए सरकार के फर्स्ट च्वाइस गिरधारी नायक थे। मगर सुप्रीम कोर्ट का गाइडलाइन आड़े आ गया कि रिटायरमेंट में जिसका छह महीने से कम बचा हो, वह पुलिस का प्रमुख नहीं बन सकता। नायक का पांच महीने बचा था रिटायरमेंट में। ऐसे में सीनियरिटी में सिर्फ डीएम का नाम बचता था। डीएम की पुलिस प्रमुख के तौर पर जैसे ही ताजपोशी हुई, उसके महीने भर के भीतर सुप्रीम कोर्ट ने छह महीने वाला गाइडलाइन हटा दिया। याने एक महीने पहले अगर वह गाइडलाइन चेंज हो गया होता तो डीएम की जगह नायक डीजीपी होते। यही नहीं, तमाम इधर-उधर की बातों के बावजूद वे तीन साल तक डीजीपी बने रहे। 2021 के लास्ट में सरकार ने डीजीपी से हटाकर पुलिस एकेडमी में डायरेक्टर बनाया तब लगा कि एकेडमी से ही डीएम रिटायर हो जाएंगे। मगर उनकी किस्मत ने उनको भी चौंका दिया। सरकार ने रिटायरमेंट के चार महीने पहले ईओडब्लू और एसीबी की कमान सौंपकर प्रतिष्ठापूर्ण बिदाई का इंतजाम कर दिया।
संविदा पोस्टिंग
बड़े पद से कोई भी अफसर रिटायर होता है तो ब्यूरोक्रेसी में उसकी पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग की चर्चा ट्रेंड करने लगती हैं। डीएम अवस्थी के रिटायर होने से पखवाड़े भर पहले से उनकी पोस्टिंग की अटकलें शुरू हो गई थीं। हालांकि, वास्तविकता यह भी है कि पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग में आईपीएस का नंबर कम लगता है। इस समय सिर्फ गिरधारी नायक मानवाधिकार आयोग में हैं। चीफ सिकरेट्री में तो अमूमन सबको रिटायर होने के बाद पोस्टिंग मिल जाती है। आरपी मंडल, सुनील कुजूर, अजय सिंह, विवेक ढांड, सुनिल कुमार, शिवराज सिंह, एसके मिश्रा को रिटायरमेंट के बाद पोस्टिंग मिली। सिर्फ पी जॉय उम्मेन और आरपी बगाई का हार्ड लक रहा। इन दोनों मुख्य सचिवों से रमन सरकार काफी नाराज हो गई थी। डीजीपी की बात करें तो आरएलएस यादव को तत्कालीन मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने अपना सलाहकार बनाया था। इसके बाद रमन सिंह ने अशोक दरबारी को डीजीपी से हटाकर पीएससी का चेयरमैन बनाया। उनके बाद सिर्फ डीजीपी अनिल नवानी को पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग मिली। वो भी अल्पज्ञात पुलिस जवाबदेही प्राधिकरण में बतौर मेम्बर। ऐसे में, डीएम अवस्थी के बारे में लोगों की उत्सुकता लाजिमी है।
शक्तिमान डीएफओ
वन विभाग ने पांच करोड़ रुपए से अधिक की हेराफेरी करने वाले डीएफओ के खिलाफ जांच बिठाई थी। डीएफओ पर आरोप था कि फर्जी वन समिति बनाकर उन्होंने बड़ी रकम का वारा-न्यारा कर दिया। वन मुख्यालय ने इस प्रभावशाली डीएफओ के खिलाफ बड़ी हिम्मत दिखाई…सीसीएफ की कमेटी ने मामले की जांच की। जांच रिपोर्ट में डीएफओ, एसीएफ, रेंजर समेत सात दोषी पाए गए। रिपोर्ट मिलने पर वन मुख्यालय ने कार्रवाई करने में देर नहीं लगाई। पीसीसीएफ ने रेंजर को सस्पेंड कर दिया। चूकि, अधिकारियों पर कार्रवाई करने का अधिकार वन मुख्यालय को नहीं है। सो, फाइल उपर भेजी गई, वो उपर में ही अटक गई है। वन विभाग में इस शक्तिमान डीएफओ की शक्ति की बड़ी चर्चा है।
दो सीएम, ओपिनियन एक
पिछली सरकार के मुखिया डॉ0 रमन सिंह वन विभाग की समीक्षा बैठक में अधिकारियों पर एकाधिक बार तंज कस चुके थे कि हर साल करोड़ों पौधे लगाए जाते हैं…पौधों को जमीन खा जाती है या अफसर। इस सरकार में सीएम भूपेश बघेल भी पिछले साल रिव्यू मीटिंग में इस पर नाराज हुए थे कि अभी तक कागजों में जितने पौधे लगाए गए हैं, पूरा छत्तीसगढ़ जंगलों से पट गया होता…उल्टे वनों का रकबा घटता जा रहा है। ऐसे में लगता है, अफसरों की नाकामियों को देखते ही सरकार ने किसान वन संपदा योजना प्रारंभ किया है। इसमें किसानों को प्रोत्साहित किया जा रहा कि पौधे लगाएं, सरकार उन्हें मदद करेगी। वाकई, वन विभाग के लिए यह शर्मनाक है। राज्य बनने के बाद 23 साल में कई सौ करोड़ पौघारोपण पर फूंक दिए गए। मगर रिजल्ट…? इतना भारी-भरकम विभाग…जिसमें सौ से अधिक आईएफएस अधिकारी…हजारों का मैदानी अमला और जंगलों की ये दुर्गति। दरअसल, वन विभाग का उद्देश्य अब जंगलों को बचाना नहीं रहा। प्रायरिटी क्लियर है। डिवीजनों को किसी तरह अधिक-से-अधिक बजट अलाट हो जाए। फिर कागजों में काम कर पैसा डकारने का खेल।
तरकश का अंदेशा
आईएएस कुणाल दुदावत ने जब बिलासपुर नगर निगम कमिश्नर का पदभार संभाला था, तब तरकश स्तंभ में हमने अंदेशा व्यक्त किया था कि पिछले दो कुंआरे कमिश्नर की बिलासपुर में पोस्टिंग के दौरान शादी हुई थी, सो कुणाल के साथ ये संयोग दुहरा सकता है। और ऐसा ही हुआ। खबर है, कुणाल की शादी तय हो गई है। अगले महीने वे सात फेरे लेंगे। उनसे पहिले डॉ0 एसके राजू और अवनीश शरण की शादी नगर निगम कमिश्नर रहते हुई थी। राजू बाद में कैडर चेंज कराकर पंजाब चले गए। बहरहाल बता दें, कुणाल 2017 बैच के आईएएस हैं। यह कलेक्टर का वेटिंग बैच है। अब सरकार पर निर्भर करेगा कि उनकी बारात म्यूनिसिपल कमिश्नर के रूप में निकलती है या कलेक्टर के रूप में। जाहिर है, कलेक्टर की बारात की बात ही कुछ और होती है। छत्तीसगढ़ में अभी सिर्फ ओपी चौधरी को यह मौका मिला है।
कलेक्टरों की चुनौती
अप्रैल महीना कलेक्टरों के लिए किसी चुनौती से कम नहीं रहेगा। आज से आर्थिक-सामाजिक सर्वे प्रारंभ हो गया है…इसे इसी महीने कंप्लीट करना है। बेरोजगारी भत्ता की प्रक्रिया भी शुरू हो गई है। राजीव गांधी भूमिहीन न्याय योजना को शहरों में लागू करने आज से आवेदन भी लेना है। एक तो अप्रैल में छुट्टियां-ही-छुट्टियां हैं। गरमी भी बढ़ रही है। उपर से प्रमुख सचिव डॉ0 आलोक शुक्ला का डीओ लेटर। जांजगीर दौरे से लौटने के बाद स्कूलों की स्थिति पर वे जमकर बिफरे। कलेक्टरों के व्हाट्सएप ग्रुप में सबकी क्लास ली। बड़े मियां तो बड़े मियां….आर्थिक सामाजिक सर्वेक्षण के प्रभारी गौरव सिंह भी कलेक्टरों को लगातार निर्देश भेज रहे हैं। कुल मिलाकर कलेक्टरों का अप्रैल महीने काफी टफ रहने वाला है। दरअसल, कई कलेक्टरों ने डीएमएफ के पैसे को दोनों हाथों से बटोरने के अलावा और कुछ किया नहीं। ऐसे कलेक्टरों की हालत अब खराब हो रही है।
अंत में दो सवाल आपसे
1. एक जिले के एसपी का नाम बताएं, जो लोकप्रियता में कलेक्टर को काफी पीछे छोड़ दिए हैं?
2. रिटायर आईपीएस के लिए संविदा में ओएसडी का पद क्रियेट हुआ है, वह किसे मिलेगा?