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Chhattisgarh Tarkash 2025: सिंहदेव दो, हाथ की लकीरें एक

तरकश, 19 जनवरी 2024

संजय के. दीक्षित

सिंहदेव दो, हाथ की लकीरें एक

छत्तीसगढ़ की सियासत में सिंहदेवों का बहुत अच्छा नहीं चल रहा है। ज्योतिषियों का कहना है कि उनकी कुंडली के राजयोग वाले घर में राहू का वास हो गया है। जाहिर है, उत्तर छत्तीसगढ़ वाले सिंहदेव मुख्यमंत्री की कुर्सी के निकट पहुंचकर उस पर बैठने से वंचित हो गए। हाईकमान के सामने उनके जिह्वा पर राहू आकर बैठ गया और कुर्सी की डिलिंग के दौरान विनम्रतापूर्वक जी बोल बैठे।

नतीजा यह हुआ कि कुर्सी उनके सामने से खिसक गई। यदि थोड़ा सा टाईट होकर इतना भर बोल गए होते…उम्र मेरी ढलान पर है, पहले मैं ढाई साल…फिर दाउजी। तो वे आज मुख्यमंत्री होते या फिर पूर्व मुख्यमंत्री तो कहलाते ही।

अब बात दक्षिण वाले सिंहदेव की। ये भी नाम के सिंहदेव निकले। वे समझ नहीं पाए और संगठन के कुछ नेताओं ने उन्हें मोहरा बनाते हुए मंत्री के लिए प्रोजेक्ट कर दिया। 15 दिन से उनके घर बधाइयों का तांता लगा रहा…। मगर राहू-केतु की प्रभाव कहें कि सिंहदेव के सामने से मंत्री का सजा थाल निकल गया। वे फिर से प्रदेश अध्यक्ष बना दिए गए…जो उन्हें गवारा नहीं था। दोनों सिंहदेवों को डॉ0 रमन सिंह और विष्णुदेव साय के पंडितों का पता लगाकर कुछ पूजा-पाठ करा लेना चाहिए।

अय्याशी का ट्रांजिट हॉस्टल

ट्रांजिट हॉस्टल इसलिए बनवाया जाता है कि कामकाज के सिलसिले में कोई सरकारी अधिकारी जिला मुख्यालय में आए तो उसे होटल में न रहना पड़े। मगर छत्तीसगढ़ के मुंगेली का ट्रांजिट हॉस्टल अफसरशाही की बदनामी का कारण बनता जा रहा है। वहां के ट्रांजिट हॉस्टल की रातें इतनी रंगीन होने लगी है कि उसकी चर्चाएं अब मुंगेली से चलकर राजधानी रायपुर तक पहुंचने लगी हैं।

दरअसल, मुंगेली छोटी जगह है। वहां अगर बाहर से हनी गर्ल बुलाई जाए या फिर सिस्टम की कोई तलाकशुदा युवती रोज वहां पहुंच जाए, तो ये बात भला कैसे छुपेगी। वैसे भी इस तरह की बातों को पंख लगने में देरी नहीं होती। सिस्टम को इसे नोटिस में लेनी चाहिए। क्योंकि, कोई उंच-नीच हुआ तो बात सरकार पर आएगी।

हेल्थ सिकरेट्री की मेजर सर्जरी

मेडिकल कारपोरेशन बोलें तो छत्तीसगढ़ का इकलौता सरकारी कारपोरेशन…जिसे सिस्टम नहीं, सप्लायर चलाते हैं। रेणु पिल्ले के सिकरेट्री हेल्थ और कार्तिकेय गोयल के सीजीएमससी एमडी रहने के दौरान एक पावरफुल महतारी की वहां से छुट्टी कर दी गई थी। मगर जैसे ही रेणु और कार्तिकेय हेल्थ से हटे, उसके अगले महीने एक बड़े सप्लायर ने महतारी की फिर से सीजीएमससी में पोस्टिंग करा दी। यह 2022 की बात रही होगी।

बहरहाल, सीएम सचिवालय ने नए हेल्थ सिकरेट्री अमित कटारिया को इशारा किया। इसके बाद अमित ने सीजीएमससी की एमआरआई कराई। जांच में एक महतारी की अदम्य साहस और पावर का पता चला। इतना पावर कि बड़ी वाली महतारी छोटी वाली को दीदी बोलती थी, ताकि कुर्सी सुरक्षित रहे। पता चला है, हेल्थ सिकरेट्री ने फायनेंस सिकरेट्री के संज्ञान में यह बात लाई और अगले दिन महतारी का आदेश निकल गया। जाहिर है, अमित की एक सर्जरी से सीजीएमससी की 60 परसेंट बीमारी का निदान हो गया।

पढ़ने-लिखने वाले आईएएस, But

अमित कटारिया को सीजीएमससी में एक और सर्जरी करनी होगी…इसके बाद दावा है कि सीजीएमससी 80 परसेंट भ्रष्टाचार मुक्त हो जाएगा। दरअसल, टेक्निकल विंग सीजीएमससी में भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा जरिया़ है। मेडिकल उपकरणों की खरीदी में टेक्निल अधिकारियों द्वारा टेंडर में ऐसे क्लाज जोड़ दिए जाते हैं, जिससे दूसरा कोई सिर पटक ले, मिलेगा उसे ही जिसे अफसर चाहते हैं। और ये टेक्निल चीजें अधिकांश आईएएस समझ नहीं पाते।

ब्यूरोक्रेट्स के साथ दिक्कत यह है कि हार्ड परिश्रम से यूपीएससी में उनका सलेक्शन तो हो जाता है मगर आईएएस बनने के बाद पढ़ना-लिखना एकदम बंद। पीए या विभाग के खटराल कर्मचारी, अधिकारी जो बता दिया, उसे ही नियम समझ बैठते हैं। सीजीएमससी में यही हुआ। कार्तिकेय गोयल के अलावा कोई भी एमडी सिस्टम में घुस नहीं पाया।

उसका खामियाजा यह हुआ कि अफसरों ने सप्लायरों के साथ गठजोड़ कर पिछले एक दशक में 10 हजार करोड़ से ज्यादा का खेला कर डाला। गनीमत है, सरकार ने अब सीजीएमससी की सर्जरी शुरू कर दी है। लेकिन, इसके साथ सिस्टम पर भी ध्यान देना चाहिए। छत्तीसगढ़ के दो करोड़ गरीबों के लिए दवा और उपकरणों की सप्लाई करने वाले इस विभाग का आलम यह है कि 14 साल में एक भी निगम का अपना कोई अधिकारी, कर्मचारी नहीं है। आउटसोर्सिंग के भरोसे इसे खींचा जा रहा।

ईओडब्लू जांच पर ब्रेक?

सीजीएमससी के संगठित भ्रष्टाचार की खबरें मीडिया में सुर्खिया बनने पर सिस्टम ने ईओडब्लू जांच की बात कही थी। इसके लिए फाइल भी आगे बढ़ गई थी। मगर छह महीने हो गए…कहीं से प्रेशर आया और फाइल ठहर गई। उधर, मंत्रिमंडल की सर्जरी की खबरें वायरल होने के दौरान विधानसभा में सीजीएमससी पर ध्यानाकर्षण आया तो स्वास्थ्य मंत्री को ईओडब्लू जांच की घोषणा करनी पड़ी। मगर अभी भी इसका कोई अता-पता नहीं है।

सवाल उठता है कि 10 हजार करोड़ के करप्शन की जांच को कौन रोक रहा है। लोग भी जानना चाह रहे कि 10 साल पहले 50 लाख का धंधा करने वाले दवा और उपकरण सप्लायर का 500 करोड़ टर्न ओवर कैसे हो गया? कौन से वे भ्रष्ट हाथ हैं, जिन्होंने सप्लायर को आर्थिक मोक्ष प्राप्त करवाते हुए 50 लाख से 500 करोड़ का आसामी बना दिया?

एक मंत्री, एक सचिव बट…

सरकार एक मंत्री, एक सिकरेट्री के नाम पर कुंदन कुमार को डायरेक्टर अरबन एडमिनिस्ट्रेशन से हटाकर हाउसिंग बोर्ड कमिश्नर और आरडीए का सीईओ बना दिया। याने ओपी चौधरी अब उनके मंत्री होंगे। नगरीय निकाय में होने के नाते अभी तक वे दो मंत्रियों में बंटे हुए थे। ओपी चौधरी के साथ अरुण साव के बीच। सरकार के जिम्मेदार अधिकारियों का कहना है कि दो-तीन महीने में बाकी सचिवों का भी इसी तरह युक्तियुक्तकरण किया जाएगा।

याने एक मंत्री, एक सिकरेट्री। असल में, दो-दो, तीन-तीन मंत्री होने पर अफसरों को समन्वय बिठाने में कई बार दिक्कत होती है। मसलन, एक मंत्री की मीटिंग है और दूसरे ने कहीं बुला लिया तो फिर मामला गड़बड़ाता है। मगर इस खबर में महत्वपूर्ण यह है कि डायरेक्ट आईएएस को हटाकर प्रमोटी आईएएस रिमुजियेस एक्का को डायरेक्टर बनाया गया है।

इस विभाग में पहले निरंजन दास कमाल कर चुके हैं और अब उस अधिकारी को कमान सौंपी गई है, जो 35 परसेंट वाले युग में लंबे समय तक स्पेशल सिकरेट्री अरबन एडमिनिस्ट्रेशन रहे। हम किसी पर आरोप नहीं लगा रहे, जो हुआ, उसकी बात कर रहे…बाकी सरकार समझें।

5 को पीएम अवार्ड

छत्तीसगढ़ के पांच कलेक्टरों को अभी तक पीएम अवार्ड मिल चुका है। सबसे पहला अवार्ड सरगुजा कलेक्टर आर. प्रसन्ना को मिला था। उनके बाद फिर सरगुजा जिले की ही कलेक्टर रीतू सेन को। 2015 में दंतेवाड़ा कलेक्टर ओपी चौधरी को यह अवार्ड मिला। उनके बाद फिर दंतेवाड़ा के ही कलेक्टर सौरव कुमार को…और अब धमतरी कलेक्टर नम्रता गांधी को। पीएम अवार्ड ब्यूरोक्रेसी का सबसे प्रतिष्ठित सम्मान माना जाता है। प्रधानमंत्री यह पुरस्कार प्रदान करते हैं।

कलेक्टर और भूमाफिया

जिस तरह कहा जाता है कि दरोगा और एसपी अगर चाह ले तो जिला अपराध मुक्त हो सकता है, उसी तरह सच्चाई यह है कि कलेक्टर अगर चाह ले तो भूमाफिया अवैध प्लाटिंग का खेल नहीं कर सकते। दरअसल, कलेक्टर ही रेवेन्यू का मुखिया होता है। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने अपने पहले ही कलेक्टर कांफ्रेंस में कलेक्टरों से भूमाफियाओं के खिलाफ कड़ा से कड़ा एक्शन लेने कहा था। मुख्यमंत्री के निर्देश पर कुछ कलेक्टरों ने जांच-पडताल आगे बढ़ाई। जमीनों की जब्ती की कार्रवाई के साथ ही पुलिस में मुकदमा दर्ज कराया गया।

मगर मुश्किल से दो-तीन जिले में ही…बाकी जिलों के हाल नहीं बदले। सीधी सी बात है कि कलेक्टर जब तक हिम्मत नहीं दिखाएंगे, तब तक भूमाफियाओं पर अंकुश नहीं लगाया जा सकता। गूगल में सर्च करने पर पता चला कि सिर्फ जांजगीर में एक बार कलेक्टर तारनप्रकाश सिनहा ने सरकारी जमीन पर कब्जा करने वाले पांच भूमाफियाओं को एसपी विजय अग्रवाल से गिरफ्तारी करा जेल भेज दिया था।

दरअसल, अधिकांश कलेक्टरों के साथ दिक्कत यह है कि उनमें सबसे प्रतिष्ठित सर्विस के साथ ईमानदारी से न्याय करने का अब माद्दा नहीं बचा। वे गुडी-गुडी बन चाहते हैं कि दो-चार जिले की कलेक्टरी कर लें। इसलिए, अबके कलेक्टर जोखिम वाले कामों में हाथ नहीं डालना चाहते। पोस्टिंग उनकी सबसे बड़ी कमजोरी बन गई है। जाहिर तौर पर भूमाफियाओं को ठिकाने लगाने का काम वही कलेक्टर कर सकता है, जो ट्रांसफर आदेश जेब में लेकर घूमता हो।

हालांकि, इसका दूसरा पहलू यह भी है कि छोटे राज्य में पॉलीटिकल हस्तक्षेप काफी बढ़ गया है। दमदारी से काम करने वाले कलेक्टरों को प्रोटेक्शन नहीं मिल रहा। 70 परसेंट कलेक्टर सिर्फ नौकरी कर रहे हैं…30 फीसदी जो अच्छे वाले हैं, वे भी ज्यादा उत्साह नहीं दिखाना चाहते। वजह…? यह कि छोटी-मोटी चूक में अब कोई बचाने वाला नहीं।

बेमेतरा की आईएएस एसडीएम की पिछले सरकार में इसलिए छुट्टी कर दी गई थी कि उन्होंने भूमाफियाओं के खिलाफ वहां मुहिम छेड़ दी थी। तो इस सरकार में भी सूरजपुर के एसडीएम लक्ष्मण तिवारी को रेत माफियाओं के खिलाफ कड़ाई से पेश आने की कीमत यह चुकानी पड़ी कि एक मंत्री ने उन्हें सूरजपुर से 700 किलोमीटर दूर सुकमा भिजवा दिया। लक्ष्मण छत्तीसगढ़ कैडर छोड़कर बिहार चले गए। छत्तीसगढ़ में जरूरत है कि एक अच्छे प्रशासनिक वातावरण तैयार करने की। क्योंकि, सरकार की नीतियों का क्रियान्वयन अफसर करते हैं और वही अगर भ्रष्ट सिस्टम के पार्ट बन जाएंगे या फिर असुरक्षित महसूस करेंगे, तो यह छत्तीसगढ़ के हित में नहीं है।

रोमांचक मुकाबला

छत्तीसगढ़ में मुख्य सूचना आयुक्त के एक पद के लिए इस बार भारत-पाकिस्तान जैसे मुकाबले की स्थिति निर्मित हो सकती है। इस पद के लिए 58 आवेदन आए हैं, उनमें वर्तमान मुख्य सचिव अमिताभ जैन, वर्तमान डीजीपी अशोक जुनेजा, पूर्व मुख्य सचिव आरपी मंडल और पूर्व डीजीपी डीएम अवस्थी जैसे प्रतिभागी हैं। अलबत्ता, रिसेंट सीएस के नाते अमिताभ जैन का पलड़ा इनमें भारी रहेगा। मगर सवाल यह है कि अशोक जुनेजा, आरपी मंडल और डीएम अवस्थी को कम कैसे आंका जा सकता है।

मंडल क्रिकेट के बड़े शौकीन हैं। उन्हें मालूम है कि किस बॉल को कैसे प्लेस करने पर बाउंड्री पार हो जाती है। वे जोगी सरकार में प्रभावशाली रहे। रमन सरकार में सिकरेट्री होने के बाद भी उन्हें रायपुर का कलेक्टर बनाया गया था। और भूपेश सरकार में मुख्य सचिव। फिर जुनेजा का तो आउटस्टैंडिंग पोस्टिंग का रिकार्ड रहा है। वे जो चाहते हैं, उनके हाथों में वैसी लकीरें बन जाती हैं।

डीएम अवस्थी महाकाल के पक्के भक्त हैं। दिसंबर 2018 में बीजेपी की सरकार पलटने पर गिरधारी नायक को भूपेश बघेल डीजी बनाना चाहते थे मगर महाकाल की ऐसी चकरी चली कि डीएम अवस्थी को डीजीपी बनाना पड़ा बल्कि ना-ना करके उन्हें पौने तीन साल तक इस पद पर रखना पड़ा। अब ऐसे-ऐसे हाई प्रोफाइल प्लेयरों ने इस पद के लिए दावेदारी की है तो फिर मुकाबला दिलचस्प रहेगा ही। लोगों की निगाहें अब सीएम विष्णुदेव साय पर टिकी है कि वे इन चारों हरफनमौला खिलाड़ियों से किसे चैंपियन घोषित करते हैं।

तड़फड़ रिलीविंग

ट्रांसफर के बाद अब उसे रुकवाने की धंधेबाजी नहीं चलेगी। जीएडी इसको लेकर सख्त हो चुका है। 17 जनवरी की देर शाम सरकार ने 60 राप्रसे अधिकारियों के ट्रांसफर किए और अगले दिन शाम तक सभी को रिलीव कर दिया गया। जीएडी अपने यहां के लोगों को रिलीव किया ही, कलेक्टरों को रात में ही जीएडी सिकरेट्री ने मैसेज कर दिया था…एनी हाउ कल तक रिलीव कर देना है। 18 शनिवार अवकाश का दिन होने के बाद भी कलेक्टरों ने शाम तक धड़ाधड़ रिलीविंग आर्डर मुख्यमंत्री सचिवालय को भेज दिया था।

अंत में दो सवाल आपसे

1. ऐसा क्यों हो रहा कि अमर अग्रवाल के मंत्री बनाने के नाम से बीजेपी के अंदरखाने का टेम्परेचर बढ़ जा रहा और क्या सिर्फ इसी वजह से मंत्रिमंडल का विस्तार टल जा रहा?

2. 4 फरवरी के दोपहर तक अशोक जुनेजा का अगर एक्सटेंशन नहीं हुआ तो फिर सरकार किस आईपीएस को प्रभारी डीजीपी अपाइंट करेगी?

https://npg.news/bureaucrats/chhattisgarh-tarkash-2025-singhdeo-do-hath-ki-lakiren-ek-chhattisgarh-ki-bureaucracy-aur-rajniti-par-kendrit-patrakar-sanjay-k-dixit-ka-lokpriye-saptahik-astambh-tarkash-1282338