तरकशः 4 जून 2023
संजय के. दीक्षित
DGP पोस्टिंग की पेंच
डीजीपी अशोक जुनेजा की पोस्टिंग को लेकर इस समय कई तरह की बातें हो रही हैं….हर आदमी अपने हिसाब से ओपिनियन दे रहा…। दरअसल, जुनेजा डीजी पुलिस नहीं होते तो इस महीने 30 को रिटायर हो जाते। जून 63 का उनका बर्थ है। यानी ये महीना उनका लास्ट होता। मगर सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के मुताबिक डीजीपी समेत कुछ पोस्टिंग को दो साल के लिए निर्धारित किया गया है। नियमानुसार राज्य सरकार ने केंद्र को डीजीपी के लिए पैनल भेजा था। जुनेजा के नाम पर केंद्र की सहमति मिलने के बाद छत्तीसगढ़ सरकार ने 5 अगस्त 2022 को डीजीपी पोस्ट किया। दो साल की पोस्टिंग के अनुसार वे 5 अगस्त 2024 को रिटायर होंगे। हालांकि, जुनेजा इससे पहिले अक्टूबर 2021 में डीएम अवस्थी को रिप्लेस कर डीजीपी बन गए थे। केंद्र से उनके नाम की मंजूरी अगस्त 2022 में मिली। इस वजह से उन्हें 11 महीने बोनस में एक्सट्रा मिल गया। अगर अक्टूबर 2021 में ही राज्य सरकार के पेनल को मिनिस्ट्री ऑफ होम से अनुमोदन मिल गया होता तो अक्टूबर 2023 में वे रिटायर हो जाते। यानी विधानसभा चुनाव के जस्ट पहले। लेट में पैनल के अनुमोदन से 11 महीने का कार्यकाल उनका बढ़ गया। मगर अभी भी नियमों की व्याख्या करने वाले चूक नहीं रहे हैं। अलबत्ता, जानकारों का कहना है, भारत सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के बिहाफ में एक बार क्रायटेरिया तय कर दिया है तो सर्विस का एक्सटेंशन अंडरस्टूड है। सेवावृद्धि की कोई समस्या नहीं आएगी। ये जरूर होगा कि राज्य सरकार ने जुनेजा को जून में रिटायर करने का जनवरी में जो आदेश निकाला था, राज्य सरकार को उसे विड्रॉ करना होगा। और, सरकार के लिए ये मामूली काम है। दो लाइन का एक नोटशीट ही तो चलाना है।
पुलिस के देव
विधानसभा, लोकसभा चुनाव कराने के बाद अशोक जुनेजा अगले साल अगस्त में रिटायर होंगे तो कोई देव छत्तीसगढ़ पुलिस का मुखिया बनेगा। वो या तो पवनदेव होंगे या फिर अरुण देव। दरअसल, जुनेजा के बाद सीनियरिटी में 90 बैच के आईपीएस राजेश मिश्रा आते हैं। मगर अगले साल यानी जनवरी 2024 में वे रिटायर हो जाएंगे। 91 बैच के लांग कुमेर नागालैंड जाकर वहां रिटायर हो चुके हैं। कुमेर के बाद 92 बैच में पवन देव और अरुण देव का नंबर आता है। ऐसे में, सरकार के पास ये दो ही विकल्प होंगे। सरकार को इन्हीं में से किसी एक को पुलिस का देव बनाना होगा। बता दें, दोनों का टेन्योर भी ठीक-ठाक होगा। पवन देव का रिटायरमेंट जुलाई 2028 है तो अरुण देव का जुलाई 2027। डीजीपी बनने पर पवन का चार साल और अरुण का तीन साल का कार्यकाल रहेगा।
जीपी की किस्मत
एडीजीपी लेवल के आईपीएस जीपी सिंह का कैरियर अगर डिरेल नहीं हुआ होता तो पवनदेव और अरुण देव से दो साल जूनियर होने के बाद भी डीजीपी के लिए वे दोनों को कड़ी टक्कर देते। क्योंकि डीजीपी को जिस तरह प्रैक्टिकल होना चाहिए, वे सारी खूबियां जीपी में थीं। मगर वक्त का क्या कहा जा सकता है। आदमी न तो बलवान होता है और न कमजोर। वक्त बलवान होता है, और कमजोर भी। आखिर, हम अपने आसपास लोगों को फर्श से अर्श पर जाते देखते ही हैं और अर्श से फर्श पर।
वेटिंग एसीएस
आमतौर पर सीट वैकेंट है तो ब्यूरोक्रेसी में टाईम से पहले प्रमोशन हो जाते हैं। ये सभी राज्यों में होता है और छत्तीसगढ़ में भी अनेक बार ऐसा हो चुका है। इसी सरकार में 91 बैच की रेणु पिल्ले और 92 बैच के सुब्रत साहू टाईम से काफी पहले एसीएस प्रमोट हो गए थे। मगर 1994 बैच का इस मामले में बैड लक है। एसीएस के चार पद खाली होने के बाद भी जून आ गया मगर डीपीसी की कोई कवायद नहीं है। जबकि, इस बैच के आईएएस मनोज पिंगुआ खुद आईएएस एसोसियेशन के प्रेसिडेंट हैं। इस बैच के बाकी तीन अफसर ऋचा शर्मा, निधि छिब्बर और विकास शील डेपुटेशन पर हैं। और दिक्कत यही है कि छत्तीसगढ़ में सिर्फ मनोज पिंगुआ हैं। अगर बाकी तीन भी यहीं होते तो चारों मिलकर प्रेशर बना लेते। छत्तीसगढ़ में इस समय एसीएस लेवल के तीन अफसर हैं। इनमें से अमिताभ जैन चीफ सिकरेट्री हैं। उनके अलावा रेणु पिल्ले और सुब्रत साहू। किसी समय एसीएस के छह-छह, सात-सात अफसर होते थे। पोस्ट से ज्यादा भी। डीओपीटी से स्पेशल केस में अनुमति ले ली जाती थी। मगर अब शीर्ष स्तर पर अधिकारी ही नहीं हैं। 2002 बैच तक ऐसा ही चलेगा। 2003 बैच से अफसरों की संख्या बढ़नी शरू होगी। यानी 2033 के बाद राज्य में सारे लेवल पर पर्याप्त अफसर हो जाएंगे।
नेताजी की परेशानी
सियासत में कार्यकर्ताओं और समर्थकों की बड़ी भूमिका होती है। इसी से सियासी नेताओं का वजन और प्रभाव आंका जाता है। मगर कई बार वही समर्थक मुसीबत भी खड़ी कर देते हैं। बड़बोले समर्थकों की वजह से एक नेताजी ट्रेक से लगभग बाहर हो गए। नेताजी के अधिकांश समर्थकों में ये बताने की होड़ मची थी कि बस…अच्छे दिन आने ही वाले हैं। इसी तरह के बड़बोले समर्थक से एक नेताजी और परेशान हैं। समर्थकों ने व्हाट्सएप ग्रुपों में खुशी का इजहार भी शुरू कर दिया है। एक समर्थक ने ब्रॉडकास्ट ग्रुप में लिख दिया, बात हो गई है, बस कुछ दिनों की ही बात है…। एक समर्थक को नेताजी ने हाल ही में हड़काया भी। मगर चापलूस समर्थकों को इससे क्या वास्ता कि नौ मन तेल होगा कि नहीं…उन्हें अपनी दुकान चमकानी है।
अनुज या शिवरतन?
छत्तीसगढ़ी फिल्मों के सुपर स्टार अनुज शर्मा, रिटायर आईएएस आरपीएस त्यागी और राधेश्याम बारले ने बीजेपी ज्वाईन किया है। अनुज के भाजपा प्रवेश से भाटापारा विधायक शिवरतन शर्मा की धड़कनें बढ़ गई होंगी। असल में, अनुज 2018 के विधानसभा चुनाव में भी भाटापारा सीट से चुनाव लड़ने का मूड बना चुके थे। उन्होंने अपने स्तर पर प्रयास भी किया, मगर कामयबी मिल नहीं पाई। अब चुनाव से पहले इस बार उन्होंने विधिवत बीजेपी प्रवेश कर लिया है तो जाहिर है वहां के पार्टी के विधायक शिवरतन का तनाव तो बढ़ेगा। हालांकि, शिवरतन बीजेपी के काफी एक्टिव विधायक हैं। लिहाजा, उनका टिकिट काटना आसान नहीं होगा। मगर अनुज की लोकप्रियता कैश करने के लिए बीजेपी जब तक उन्हें मैदान में नहीं उतारेगी तब तक पूरा फायदा मिलेगा नहीं। इसलिए, अनुज चुनाव लड़ेंगे मगर सीट भाटापारा होगी या कोई और, यह वक्त बताएगा। उधर, आरपीएस त्यागी पिछले चुनाव के दौरान न केवल कांग्रेस में शामिल हुए थे बल्कि कोरबा या कटघोरा से टिकिट के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी थी। उन्होंने वहां दौरे भी प्रारंभ कर दिए थे। मगर टिकिट को लेकर बात बन नहीं पाई। अब वे बीजेपी में शामिल हो गए हैं तो टिकिट मिले न मिले, चुनाव लड़ने की उनकी दबी हुई इच्छा बाहर आएगी ही। इनमें से बारले का अहिवारा से टिकिट मिलने का दावा जरूर मजबूत प्रतीत हो रहा है। क्योंकि, अहिवारा में बीजेपी के पास कोई मजबूत विकल्प नहीं है। ऐसे में, बारले को पार्टी चुनाव में आजमा सकती है।
ब्राम्हण दावेदार!
सियासी तौर पर बिलासपुर बाकी जिलों से ज्यादा संजीदा है। खासतौर पर कांग्रेस के लिए। यहां पहले से ही टिकिट के दावेदारों की फौज रही है। अब तो रुलिंग पाटी है। कांग्रेस के सबसे अधिक ब्राम्हण दावेदार यहीं से हैं। बिलासपुर से शैलेष पाण्डेय सीटिंग एमएलए हैं। कांग्रेस के भीतरघात के चलते राजेंद्र शुक्ला बिल्हा से पिछला चुनाव हार गए थे। लिहाजा, इस बार उनकी दावेदारी मजबूत समझी जा रही। बेलतरा से एडवाइजर टू सीएम प्रदीप शर्मा का नाम प्रमुखता से चल रहा है। तखतपुर से रश्मि सिंह कांग्रेस पार्टी की विधायक हैं। ब्राम्हण बिरादरी से उनका जुड़ाव जाहिर है। यानी बिलासपुर जिले की छह में से चार सीटों पर ब्राम्हण दावेदार। जनरल में सिर्फ कोटा बचा है। मस्तूरी अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व है। बहरहाल, टिकिट तय करते समय कांग्रेस के सामने बड़ी उलझन रहेगी कि एक ही जिले में चार-चार ब्राम्हणों को टिकिट कैसे दिया जाए।
अंत में दो सवाल आपसे
1. एक ऐसे मंत्रीजी का नाम बताइये, जो पिछले तीन साल में एक बार भी मंत्रालय नहीं गए?
2. सोशल मीडिया के आरोपों को लेकर दुर्ग एसपी को हटाया गया तो क्या इसके लिए पीएचक्यू के अफसर जिम्मेदार नहीं हैं…एज ए सीनियर उन्हें टोका क्यों नहीं?