Earth Day 2023 : इंटरनेशनल अर्थ डे हर साल 22 अप्रैल यानि आज ही के दिन मनाया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य एनवायरनमेंट को नुकसान पहुंचाने वाली वैसी तमाम चीजों के बारे में लोगों के बीच जागरूकता पैदा करना है ताकि लोग पृथ्वी की महत्ता को समझें और उसे सुरक्षित रखने में एकजुट होकर काम करें। दरअसल, प्रदूषण और स्मॉग जैसी समस्याओं से निपटने के लिए अर्थ डे विश्व भर में मनाया जाता है। वहीं, लोगों को मैसेज देने के लिए सरकार द्वारा कुछ बेसिक थीम भी तय किए जाते हैं। आइए वर्ल्ड अर्थ डे से जुड़े इतिहास और थीम को जान लेते हैं। साथ ही इसे सबसे पहले किसने और क्यों सेलिब्रेट किया था इसकी भी जानकारी देंगे।
When is World Earth Day 2023
विश्व पृथ्वी दिवस हर साल 22 अप्रैल को मनाया जाता है। 2023 में अर्थ डे 22 अप्रैल, दिन शनिवार को है। पृथ्वी दिवस या अर्थ डे जैसे शब्द को दुनिया के सामने लाने वाले सबसे पहले व्यक्ति थे- जूलियन कोनिग। दरअसल, उनका जन्मदिन 22 अप्रैल को होता था। इसी वजह से पर्यावरण संरक्षण से जुड़े आंदोलन की शुरुआत भी उन्होंने इसी दिन की और इसे अर्थ डे का नाम दे दिया।
पृथ्वी दिवस का इतिहास
अर्थ डे को मनाने की शुरुआत 1970 में हुई थी। सबसे पहले अमेरिकी सीनेटर गेलॉर्ड नेल्सन ने पर्यावरण की शिक्षा के तौर पर इस दिन की शुरुआत की थी। एक साल पहले 1969 में कैलिफोर्निया के सांता बारबरा में तेल रिसाव की वजह से त्रासदी हो गई थी। इस हादसे में कई लोग आहत हुए और पर्यावरण संरक्षण की दिशा में काम करने का फैसला किया। इसके बाद नेल्सन के आह्वान पर 22 अप्रैल को लगभग दो करोड़ अमेरिकियों ने पृथ्वी दिवस के पहले आयोजन में हिस्सा लिया था।
पृथ्वी को प्लास्टिक मुक्त करना जरूरी
-माइक्रो प्लास्टिक की वजह से सभी तरह के जीवों में प्रजनन संबंधी विकृतियों से लेकर कैंसर तक बढ़ रहा है। 1907 से अबतक 9 अरब टन प्लास्टिक उत्पादित हुआ है। इसमें से सिर्फ 9 फीसदी रिसाइकल हुआ है।
-भारत में हर साल 34 लाख टन से ज्यादा प्लास्टिक कचरा पैदा हो रहा है। इसमें से महज 30 फीसदी ही रिसाइकल होता है।
-देश में प्लास्टिक का इस्तेमाल 9.7% सालाना की दर से बड़ रहा है। इस पर ध्यान नहीं दिया, तो समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र बर्बाद हो जाएगा।
टिकाऊ वस्तुओं का इस्तेमाल
एक अनुमान के मुताबिक, अगर दुनिया का हर व्यक्ति एक आम अमेरिकी जैसा जीवन जिये, तो हमें पांच पृथ्वियों जितने संसाधनों की जरूरत होगी। पृथ्वी के निर्माण से लेकर अबतक के इतिहास को एक कैलेंडर वर्ष मानकर चलें, तो इन्सानों के आधुनिक जीवन को महज 37 मिनट बीते हैं। इसमें से भी बीते 0.2 सैकेंड में हमने पृथ्वी के 33 फीसदी संसाधनों का शोषण कर डाला है। आने वाली पीढ़ियों को औसत जीवनस्तर देने के लिए हमें दो पृथ्वियों जितने संसाधनों की जरूरत होगी। ऐसे में मौजूदा संसाधनों के अधिकतम उपयोग के लिए टिकाऊ वस्तुओं के उपयोग पर जोर देना होगा।
ज्यादा से ज्यादा बढ़े हरित क्षेत्र
पेड़-पौधे जलवायु परिवर्तन के खिलाफ प्रथम पंक्ति के योद्धा हैं। ये वैश्विक उत्सर्जन के 33 फीसदी से ज्यादा हिस्से का अवशोषण करते हैं। इसके साथ ही पशु-पक्षी और कीट-पतंगों को प्राकृतिक आवास भी मुहैया कराते हैं। ये सभी पृथ्वी की खाद्य शृंखलाओं और पारिस्थितिकी तंत्रों के अहम हिस्से हैं, जो इस ग्रह पर जीवन को बनाए रखने के लिए जरूरी हैं। पेड़ बाढ़, सूखे से भी बचाते हैं व जल प्रदूषण को कम करते हैं।
वायु प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए भारत को अगले पांच वर्ष में 4 अरब पेड़ लगाने की जरूरत है। वहीं, भारत ने 2030 तक वन क्षेत्र को 33% तक बढ़ाने का लक्ष्य रखा है। इसके लिए सरकार ने 2015 से 2030 के बीच 6.2 अरब पेड़ लगाने का लक्ष्य रखा है।
साल 2022 तक भारत 192 देशों में से 117वें स्थान पर रहा
खेतों में पराली जलाने से लेकर, प्रदूषित पानी को बिना उपचार के जल स्रोतों में छोड़ना, रास्ते में प्लास्टिक कचरा फेंकना ऐसी तमाम आदतें हैं, जिन्हें पर्यावरण के प्रति व्यक्तिगत सक्रियता के जरिये ही बदला जा सकता है।
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