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Jagargunda of Sukma: जगरगुंडा कभी बस्तर के तीन जिलों का जंक्शन और बड़ा बाजार होता था, अब नक्सलियों का गढ़ बन गया..

Jagargunda of Sukma: सुकमा। बस्तर संभाग के सुकमा जिले के जगरगुंडा से कोई अनजान नही होगा। नक्सलियां का गढ़ कहा जाने वाले जगरगुंडा में आज सुबह सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में तीन जवान शहीद हो गए। हमले में दो जवान जख्मी हुए। डीआरजी के जवान आज सुबह सर्चिंग में निकले थे, तभी एंबुश लगाकर बैठे माओवादियों ने ताबड़तोड़ फायरिंग कर दी।

जगरगुंडा कुछ साल पहले तक दंतेवाड़ा जिले का उप तहसील होता था। मगर नक्सली घटनाएं बढ़ने पर रमन सिंह सरकार ने प्रशासनिक कसावट के लिए दंतेवाड़ा का विभाजन कर सुकमा जिला बनाया। इसके बाद जगरगुंडा सुकमा जिले का हिस्सा हो गया। जगरगुंडा की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि कई जिलों के लिए यहां से होकर रास्ता गुजरता है। खासकर, दंतेवाड़ा, सुकमा और बीजापुर का यह जंक्शन प्वाइंट है। 1995 से पहले यह कई गावों के लोगों के लिए बड़ा बाजार था। मगर नक्सलियों ने जगरगुंडा के कनेक्टिविटी को देखते यहां की सारी सड़कों को काट दिया या फिर बारुदी सुरंगों से उड़ा दिया। जगरगुंडा, एर्राबोर, ताड़मेटला, चिंतलनार को नक्सलियों ने अपना सुरिक्षत ठिकाना बना लिया। 2015 तक जगरगुंडा जाना इतना जोखिम भरा काम हो गया था कि फोर्स को हेलिकाप्टर से भेजा जाता था। जवानों के लिए राशन के लिए फोर्स का काफिला तैयार कर तीन महीने का रसद एक साथ भेजा जाता था। क्योंकि, रास्ते में नक्सलियों ने बारुदी सुरंगे बिछा दी थी।

जगदलपुर जिला मुख्यालय से करीब 200 किमी दूर यह गांव दंतेवाड़ा, सुकमा और बीजापुर जिले की सीमा पर स्थित है। पहले इस गांव को वनोपज संग्रहण का केंद्र माना जाता था। यह आदिवासियों का प्राथमिक व्यापारिक केंद्र भी था। इसे खासकर इमली खरीदी का मुख्य केंद्र माना जाता था। गांव में बिजली,स्कूल और ग्रामीण बैंक भी था।

नक्सलियों ने छीना सुकून

1985-86 के दरमियान माओवादी नेता जगन्ना ने यहां कदम रखा। उसके आने के साथ ही जगरगुंडा के लोगों की ज़िन्दगी से सुकून जाता रहा। उसने नक्सलियों के सारे पैंतरे अपनाए और अपना खौफ कायम कर लिया। उसके बाद पापा राव और रघू का दौर चला। अब यहां पर हिड़मा का राज चलता है। यहाँ माओवादियों की गुरिल्ला आर्मी प्लाटून, स्थानीय और गुरिल्ला स्क्वाड भी सक्रिय है। 2005 में ‘सलवा जुडूम’ आंदोलन ने गति पकड़ी। उस दौर की शुरुआत में इसे अपेक्षाकृत रूप से सुरक्षित गांव माना जाता था। तब इस गांव में आसपास के 5-6 गांवों के लोगों को लाकर कैंपों में रखा गया था। लेकिन 2006 में नक्सलियों ने यहां भारी उत्पात मचाया। पूरा गांव, स्कूल, बाजार सब कुछ तहस-नहस कर दिया। गांव वालों के लिए चैन की सांस भी मयस्सर न थी। कभी भी किसी को घर से निकालते। मारते-पीटते, अत्याचार करते। जन अदालत लगा कर सजा देते।

हालांकि, अब जगरगुंडा के लिए सड़कें बन गई है। कनेक्टिविटी भी बढ़ गई है। काफी दिनों से इस इलाके मे कोई नक्सली वारदात नहीं हुई। आज फिर एंबुश के जरिये खूनखराबा कर नक्सलियों ने सुरक्षा बलों को चौंका दिया।

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