भादगौड़ की जिंदगी में किडनी रोगियों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। कम उम्र में ही किडनी खराब होने की शिकायत होने लगी है। हालांकि, इससे ज्यादा परेशान होने की जरूरत नहीं है अन्यथा परेशानी और भी बढ़ सकती है। किडनी मरीजों को खान-पान पर विशेष ध्यान देने की जरूरत होती है। खान-पान के माध्यम से किडनी को काफी हद तक बचा सकते है। किडनी शरीर का एक महत्वपूर्ण अंग होता है। इसका मुख्य काम शरीर से वेस्ट मटेरियल को फिल्टर कर बाहर निकालना है और शरीर में कैमिकल फ्री और हेल्दी ब्लड की सप्लाई को बैलेंस करना है।
-जरूरत से ज्यादा एक्सरसाइज भी किडनियों के लिए तकलीफदायक हो सकती है। विशेषज्ञ मानते हैं कि एक्सरसाइज, रीनल हीमोडायनामिक्स और इलेक्ट्रोलाइट व प्रोटीन के उत्सर्जन को प्रभावित करती है। सीधे शब्दों में कहें तो इससे किडनियों के काम काज पर असर पड़ता है। व्यायाम से यूरीन, पसीना और शरीर की हार्मोनल गतिविधियों आदि सभी पर असर पड़ता है। ऐसे में किडनियों पर भी बोझ बढ़ता है। इसलिए जरूरी है कि एक्सरसाइज नियंत्रित भी रहे और संतुलित भी। जो लोग पेशेवर एथलीट या स्पोर्ट्स से जुड़े होते हैं वे विशेषज्ञों की देखभाल में एक्सरसाइज करते हैं और उसके साथ अपनी डाइट और हाइड्रेशन पर भी पूरा कंट्रोल रखते हैं।
-डिहाइड्रेशन की स्थिति को भले ही लोग बहुत गम्भीरता से न लेते हों, लेकिन असल में ध्यान न देने पर यह जानलेवा भी साबित हो सकती है। शरीर में पानी की कमी दस्त, उल्टी और पसीने जैसे कई कारणों से हो सकती है। इसके अलावा डायबिटीज जैसी स्थिति पर नियंत्रण न रहने से भी पेशाब के साथ पानी की ज्यादा मात्रा शरीर से बाहर निकल सकती है।
-शुरुआती संकेतों में से एक है टखनों, पैरों या एड़ी के पास सूजन का दिखना है: ऐसी जगहों पर एडिमा दिखाई देने लगेगी, जो दबाव देने पर पिट करते हैं, और इन्हें पिटिंग एडिमा कहा जाता है। जैसे-जैसे गुर्दे अपने काम करने में गड़बड़ी करने लगते हैं, शरीर में नमक जमा होने लगता है, जिससे आपकी पिंडली और टखनों में सूजन आने लगती है। संक्षेप में, अगर किसी भी व्यक्ति में इस तरह के लक्षण दिखें तो उसे नेफ्रोलॉजिस्ट से मिलकर अपने गुर्दे की कार्यप्रणाली का तत्काल मूल्यांकन करवाना चाहिए।
-पेरिऑर्बिटल एडिमा: इसमें आंखों के आसपास सूजन दिखने लगता है जो कोशिकाओं या ऊतकों में तरल पदार्थ के संचय के कारण होता है। यह गुर्दे की बीमारी के शुरुआती लक्षणों में से एक है। यह उन व्यक्तियों में विशेष रूप से होता है जिनमें गुर्दे के माध्यम से काफी मात्रा में प्रोटीन का रिसाव होता है। शरीर से प्रोटीन का नाश इंट्रावस्कुलर ऑन्कोटिक दबाव को कम करता है और आंखों के आसपास के विभिन्न जगहों पर तरल पदार्थ का अतिरिक्त संचय होने लगता है।
-कमजोरी: गुर्दे की बीमारी का एक सामान्य लक्षण है शुरुआत में थकावट का होना। जैसे-जैसे गुर्दे की खराबी बढती जाती है यह लक्षण और अधिक स्पष्ट होता जाता है। सामान्य दिनों की तुलना में वह व्यक्ति अधिक थका हुआ महसूस कर सकता है और ज्यादा गतिविधियों को करने में असमर्थ होता है, तथा उसे बार-बार आराम की आवश्यकता होती है। ऐसा काफी हद तक रक्त में विषाक्त पदार्थों और अशुद्धियों के संचय के कारण होता है, जिसके परिणामस्वरूप गुर्दे खराब होते जाते हैं। गैर-विशिष्ट लक्षण होने के नाते इसे अक्सर अधिकांश लोगों द्वारा अनदेखा किया जाता है और इसकी पूरी तरह से जांच नहीं की जाती है।
-भूख में कमी: यूरिया, क्रिएटिनिन, एसिड जैसे विषाक्त पदार्थों के जमा होने से व्यक्ति की भूख कम होने लगती है। इसके अलावा, जैसे-जैसे गुर्दे की बीमारी बढती जाती है, रोगी के स्वाद में बदलाव होता जाता है, जिसे अक्सर रोगियों द्वारा धातु के रूप में बताया जाता है। यदि किसी को दिन में बिना कुछ खाए भी पेट भरे का अहसास होता हो, तो दिमाग में खतरे की घंटी बजनी चाहिए और उसके गुर्दे की जांच करवानी चाहिए।
किडनी का कैसे रखे ध्यान
खूब पानी पिएं: यह आपके किडनी को स्वस्थ रखने का सबसे आम और सरल तरीका है। भरपूर पानी, विशेष रूप से गर्म पानी का सेवन करने से गुर्दे को शरीर से सोडियम, यूरिया और विषाक्त पदार्थों को साफ करने में मदद करता है।
कम सोडियम / नमक वाले आहार: अपने काने में सोडियम या नमक का सेवन नियंत्रण में रखें। इसका मतलब है कि आपको पैकेज्ड / रेस्टोरेंट के खाद्य पदार्थों से भी परहेज करना होगा। इसके अलावा, अपने खाने में अतिरिक्त नमक न डालें। कम नमक का आहार गुर्दे पर भार को कम करता है और उच्च रक्तचाप, उच्च रक्तचाप से संबंधित विकारों के विकास को रोकता है और गुर्दे की बीमारी की प्रगति को भी रोकता है।
शरीर का वजन उचित बनाए रखें: स्वस्थ भोजन करें और अपना वजन नियंत्रित रखें। अपने गुर्दे की धमनियों में कोलेस्ट्रॉल के जमाव को रोकने के लिए अपने शरीर के कोलेस्ट्रॉल के स्तर की नियमित जाँच करवाएँ। इसके अलावा, आहार से संतृप्त वसा / वसायुक्त तले हुए खाद्य पदार्थों को दूर रखें और रोजाना ढेर सारे फल और सब्जियां खाने पर जोर दें। किसी व्यक्ति का वजन बढ़ने से गुर्दे पर भार बढ़ता है। विशेष रूप से भारतीय परिदृश्य में 24 या उससे कम के बीएमआई के लिए लक्ष्य बनाने का प्रयास करें।
नियमित रूप से रक्त शर्करा के स्तर की जाँच करें और उन्हें इष्टतम स्तरों के तहत रखें: मधुमेह के रोगियों में गुर्दे की खराबी बहुत आम बात है और अगर जल्दी पता चल जाए तो इसे रोका जा सकता है। इसलिए, अपने रक्त शर्करा के स्तर पर नियमित जांच रखने, मीठे खाद्य उत्पादों से बचने और एक चिकित्सक से आपको मिलने की सलाह दी जाती है यदि रक्त शर्करा (उपवास या पोस्टप्रैंडियल) स्तर या एचबीए 1सी से ज्यादा हो। एचबीए 1सी का स्तर 6.0 से कम रखें।
नियमित रूप से रक्तचाप पर नजर रखें और इसे नियंत्रण में रखें: यदि आपको उच्च रक्तचाप है, तो अपने चिकित्सक द्वारा सलाह के अनुसार एंटीहाइपरटेन्सिव लें, और स्वस्थ जीवन शैली बनाए रखें तथा आहार में आवश्यक परिवर्तन करें। सामान्य रक्तचाप का स्तर <120/80 होता है। हाई ब्लड प्रेशर से गुर्दे में गड़बड़ी के अलावा स्ट्रोक या दिल का दौरा भी पड़ सकता है।