Maa Katyayani Worship sixth Day Chaitra Navratri: रायपुर I कात्यायनी नवदुर्गा या देवी पार्वती (शक्ति) के नौ रूपों में छठी हैं। ‘कात्यायनी’ अमरकोष में पार्वती के लिए दूसरा नाम है। संस्कृत शब्दकोश में उमा, कात्यायनी, गौरी, काली, हेमावती व ईश्वरी नामों से इन्हें जाना जाता है। भद्रकाली और चंडिका नाम से भी ये प्रचलित हैं। माता रानी के छठे रूप कात्यायनी के देशभर में कई मंदिर हैं, जिनमें शक्तिपीठ भी हैं। उनमें से कुछ की चर्चा आज हम करेंगे।
मां कात्यायनी का स्वरूप
मां दुर्गा के कात्यायिनी रूप को फलदायिनी भी कहा जाता है। महर्षि कात्यायन के यहां पुत्री के रूप में आश्विन कृष्ण चतुर्दशी को जन्म लेकर माता ने महिषासुर का वध किया था। इन्होंने शुक्ल सप्तमी, अष्टमी और नवमी तक तीन दिन कात्यायन ऋषि की पूजा ग्रहण कर दशमी को महिषासुर का वध किया था। नवरात्रि के छठे दिन इनके स्वरूप की पूजा की जाती है।
इस दिन साधक का मन आज्ञा चक्र में स्थित रहता है। ये सिंह पर सवार, चार भुजाओं वाली और सुसज्जित आभा मंडल वाली देवी हैं। इनके बाएं हाथ में कमल और तलवार और दाएं हाथ में स्वस्तिक और आशीर्वाद की मुद्रा है।मां कात्यायनी की भक्ति और उपासना द्वारा मनुष्य को बड़ी सरलता से अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति हो जाती है। वह इस लोक में स्थित रहकर भी अलौकिक तेज और प्रभाव से युक्त हो जाता है।
मां कात्यायनी की पूजा से हर बाधा होगी दूर
माता कात्यायनी की साधना गोधूली बेला ने की जाती है। पूजा के समय धूप, दीप, गुग्गुल अदि से मां की पूजा करनी चाहिए। इससे सभी प्रकार की बाधाएं दूर होती हैं। मान्यता है कि जो भक्त माता कात्यायनी को पांच तरह की मिठाइयों का भोग लगाता है और कुंवारी कन्याओं में प्रसाद बांटता है, माता उनकी आय में आने वाली बाधा को दूर करती हैं। व्यक्ति अपनी मेहनत और योग्यता के अनुसार धन अर्जित करने में सफल होता है। गोधूलि काल में पीले अथवा लाल वस्त्र धारण कर माता कात्यायनी की पूजा करनी चाहिए। भक्त को माता को पीले फूल और पीला नैवेद्य अर्पित करना चाहिए। माता को शहद अर्पित करना बेहद शुभ होता है।
मां कात्यायिनी की कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, कात्यायन ऋषि ने मां भगवती की तपस्या की। ऋषि के तप से प्रसन्न होकर माता दुर्गा ने उन्हें वरदान मांगने को कहा। ऋषि कात्यायन ने मां दुर्गा के उनके घर जन्म लेने की इच्छा जतायी। ऋषि बोले, मुझे आपका पिता बनने की इच्छा है। इस पर माता ने प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया और ऋषि के घर जन्म लिया। कहते हैं कात्यायन ऋषि के घर जन्म लेने की वजह से उनका नाम कात्यायनी पड़ा।
मां कात्यायनी का शक्तिपीठ
बिहार के खगड़िया-सहरसा रेलखंड के मध्य में धमारा स्टेशन पड़ता है। इसी स्टेशन के निकट प्रसिद्ध शक्तिपीठ मां कात्यायनी स्थान है। नवरात्र के दौरान भक्त यहां दूध व गांजे का चढ़ावा चढ़ाते हैं। बता दें कि वैसे, यहां साल भर हर सोमवार और शुक्रवार को दूध चढ़ाने की परंपरा रही है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, मां पार्वती की बाईं भुजा यहीं कटकर गिरी थी। माता पार्वती के पिता राजा दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया था। इस यज्ञ में आमंत्रित होने के लिए उन्होंने सभी को न्यौता दिया था, सिवाय भगवान भोले के। ऐसे में जब माता पार्वती यज्ञ में शामिल होने जा रहीं थी, तब भी भगवान भोले ने उन्हें रोका था। इसके बावजूद, माता पार्वती यज्ञ के लिए पहुंच गईं। बिना निमंत्रण के यज्ञ में मां पार्वती को देख कई लोगों ने तंज कसने शुरू किए। इसे सुन मां पार्वती को आत्मग्लानि हुई और यज्ञ कुंड में कूद गईं। जब भगवान शिव को माता पार्वती के यज्ञ कुंड में कूदने की जानकारी मिली, तो वो वहां पहुंचकर माता के जले शरीर को लेकर तांडव करने लगे। इसी तांडव में मां पार्वती का बायां हाथ कटकर इसी स्थल पर गिरा था। खगड़िया के इस शक्तिपीठ मे नवरात्र के दौरान भक्तों का तांता लगता है।
दिल्ली स्थित मां कात्यायनी के मंदिर की खासियत
वैसे ही दिल्ली स्थित छतरपुर में आद्या कात्यायनी शक्तिपीठ है। देवी के छठे रूप को समर्पित यह देश का दूसरा सबसे बड़ा और खूबसूरत मंदिर है। इस मंदिर को सफ़ेद संगमरमर से बनाया गया है। मंदिर की नक्काशी दक्षिण भारतीय वास्तुकला में किया गया है। इस मंदिर को स्वामी नागपाल ने बनवाया था। यह मंदिर माता के छठे स्वरूप माता कात्यायनी को समर्पित है। इसलिए इसका नाम भी ‘कात्यायनी शक्तिपीठ’ रखा गया है।
यहां एक बात खास है। माता कात्यायनी के श्रृंगार के लिए यहां रोजाना दक्षिण भारत से हर तरह के खास रंगों के फूलों से बनी माला मंगवाई जाती है। यहां खास तौर पर माता का श्रृंगार किया जाता है, जो रोजाना अलग-अलग रूप में होता है। यहां माता कात्यायनी की प्रतिमा ‘रौद्र’ रूप में दिखाई देती है। माता के एक हाथ में चण्ड-मुण्ड का सिर और दूसरे में खड्ग है।तीसरे हाथ में तलवार तो चौथे हाथ से मां अपने भक्तों को अभय प्रदान करती दिखाई देती हैं।
मंदिर का संबंध में दक्षिण भारत से होने की वजह से यहां हर रोज उनके लिए माला दक्षिण भारतीय फूलों से बनी हुई ही आती है। जब भक्त मंदिर परिसर में प्रवेश करता है, तभी उसे एक बड़ा पेड़ दिखाई देता है। यह पेड़ चुनरियों से भरा पड़ा है। मान्यता के अनुसार, इसी पेड़ पर सभी भक्त माता कात्यायनी से मन्नत मांगने के बाद चुनरी बांधते हैं। चुनरी के अलावा धागा, चूड़ी आदि भी बांधा जाता है। कहते हैं ऐसा करने से मां प्रसन्न होकर भक्तों की मनोकामना पूरी करती हैं। यहां माता के श्रृंगार में इस्तेमाल वस्त्र, आभूषण और माला आदि को दोहराया नहीं जाता है। इस मंदिर की खास बात है कि यह ग्रहण में भी खुला रहता। है। साथ ही साथ, नवरात्र के दौरान 24 घंटे इस मंदिर के द्वार भक्तों के लिए खुले रहते हैं।