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Tarkash: न सूत, न कपास…

संजय के. दीक्षित

तरकश, 5 मार्च 2023

न सूत, न कपास…

छत्तीसगढ़ में और एम्स खुले, इससे बड़ी खुशी की बात क्या हो सकती है। मगर बात धरातल की होनी चाहिए। स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव शरीफ और सहज मंत्री हैं…सो एम्स पर उनका पहला जवाब यही था कि नए एम्स के लिए कोई प्रयास नहीं किया जा रहा। फिर जिस दिन प्रश्नकाल में एम्स खुलने पर बात हुई, संशोधित जवाब आ गया…केंद्र सरकार को पत्र लिखा गया है। समझदार समझ गए…मजरा क्या है। बहरहाल, सदन में स्वास्थ्य मंत्री बार-बार यह कहते रहे कि कई राज्यों में एम्स आज भी नहीं है। मगर चुनावी साल है…कोई कहां सुनने वाला था…पक्ष-विपक्ष में होड़ मच गई…सदन में एक बार ऐसा लगा कि जैसे एम्स नहीं, हाईस्कूल खोलने की बात हो रही हो। बता दें, एम्स कहां खुलेगा, यह राज्य नहीं बल्कि केंद्र तय करता है…लोकसभा में पारित किया जाता है। देश के सिर्फ 19 राज्यों में एम्स है। नौ राज्य अभी भी वेटिंग में हैं। रायपुर भी वेटिंग में ही होता। मगर तब की स्वास्थ्य मंत्री सुषमा स्वराज की नजदीकियों का फायदा उठाकर तत्कालीन केंद्रीय मंत्री रमेश बैस ने 6 एम्स में रायपुर का नाम जोड़वा लिया। ये अलग बात है कि उस समय सोशल मीडिया नहीं था और न ही बैसजी के पास ब्रांडिंग की वैसी टीम थी…लिहाजा, उन्हें इसका कोई क्रेडिट नहीं मिल पाया।

एम्स का जाप क्यों?

स्वास्थ्य सुविधाओं में साउथ के राज्यों का जवाब नहीं है। यूपी के पीजीआई लखनउ और बिहार के पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल का इतना नाम है कि वहां जल्दी नंबर नहीं लगता। चंडीगढ़ के पीजीआई का नाम आपने सुना ही होगा। अलबत्ता, छत्तीसगढ़ के बनें 22 साल हो गए। 15 साल बीजेपी की सरकार रही। सात साल कांग्रेस की। सवाल उठता है कि सरकारों ने क्या किया। रायपुर में जब केंद्र सरकार का एम्स इतना बढ़िया बन सकता है और रन कर सकता है तो राज्य सरकार अदद एक अस्पताल को तो मुकम्मल कर सकती है। भले ही वो एम्स के बराबर न हो, लेकिन उस पर प्रदेश के लोगों का भरोसा तो हो। पुराने लोगों को भिलाई का सेक्टर-9 हॉस्पिटल याद होगा। बलरामपुर से लेकर बीजापुर तक के लोगों का वो आशा का केंद्र होता था। 22 बरस पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने सिम्स के उद्घाटन समारोह में कहा था, प्रदेश का यह उत्कृष्ठ संस्थान बनेगा। लेकिन, सिस्टम ने सिम्स का कबाड़ा कर दिया। बिलासपुर में सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल कई साल से बन ही रहा है। सरकार, अफसर और जनप्रतिनिधि अगर ठान लें तो क्या नहीं हो सकता। मध्यप्रदेश के समय बिलासपुर के कलेक्टर रहे शैलेंद्र सिंह ने प्रशासनिक व्यवस्था को अपने हाथ में लेकर तब के जिला अस्पताल को ऐसा ठीक किया था कि लोग आज भी याद करते हैं। सरकार और स्वास्थ्य विभाग को इसे संज्ञान में लेना चाहिए।

…सरकार रचि राखा

ताजा कैडर रिव्यू में आईएएस के 9 पद बढ़े हैं, उनमें अगर दीगर विभाग वाले तगड़ा जैक लगा दिए तो हो सकता है एक पोस्ट उन्हें मिल जाए। अभी एलायड सर्विस से तीन आईएएस हैं। अनुराग पाण्डेय, शारदा वर्मा और गोपाल वर्मा। अनुराग और शारदा अगले साल रिटायर हो जाएंगे। दो पद वो खाली होंगे। जानकारों का कहना है कि 202 के कैडर में चार पद एलायड वालों के लिए हो सकता है। ऐसा अगर कहीं हो गया तो अगले साल एलायड वालों की लाटरी निकल जाएगी। एक साथ तीन पद की वैकेंसी हो जाएगी। हालांकि, इनमें नंबर उन्हीं का लगता है, जिसे सरकारें चाहती हैं। पिछली सरकार में और इस सरकार में भी अप्लाई तो कइयों ने किया…फील्डिंग सभी ने की। लेकिन, बात वही…होइहि सोई…जो सरकार रचि राखा। हालांकि, ये भी सही है कि एलायड कोटे से आईएएस बनने वालों की अब वो बात नहीं रही। छत्तीसगढ़ बनने के बाद डॉ0 सुशील त्रिवेदी मध्यप्रदेश से आए थे। वे न केवल बिलासपुर जैसे जिले के कलेक्टर रहे, बल्कि राजभवन में सिकरेट्री, कई विभागों के सिकरेट्री और रिटायरमेंट के बाद राज्य निर्वाचन आयुक्त बनें। आरएस विश्वकर्मा का प्रोफाइल तो और तगड़ा रहा। उन्होंने कोरबा, रायगढ़, राजनांदगांव को मिलाकर चार जिले की कलेक्टरी की। सिकरेट्री प्रमोट होने के बाद माईनिंग और वाणिज्यिक कर जैसे क्रीम पोस्ट भी होल्ड किया। उनके बाद जनसंपर्क अधिकारी आलोक अवस्थी को आईएएस अवार्ड हुआ। वे जांजगीर और कोरिया के कलेक्टर रहे। मगर उनके बाद जो आईएएस बनें, उन्हें वो मौका नहीं मिला। अनुराग पाण्डेय संघ पृष्ठभूमि के होने और बीजेपी की सरकार होने के बाद भी जिला पंचायत सीईओ से उपर नहीं पहुंच सकें। आईएएस लॉबी ने बड़ी चतुराई से उन्हें किनारे लगा दिया। शारदा वर्मा को कलेक्टर तो दूर की बात है, फील्ड की कोई पोस्टिंग नहीं मिली है, अगले साल वे रिटायर हो जाएंगी।

7 हजार करोड़ से शुरूआत

छत्तीसगढ़ का पहला बजट वित्त मंत्री रामचंद्र सिंहदेव ने सात हजार करोड़ का पेश किया था। इसमें अनुपूरक के 1300 करोड़ भी शामिल है। इसके बाद बजट का आकार लगातार बढ़ता गया। राज्य निर्माण के 22वें साल में ये बढ़कर एक लाख करोड़ को क्रॉस कर गया। बता दें, जोगी सरकार में तीन बजट सिंहदेव ने प्रस्तुत किए थे। उसके बाद बनी भाजपा सरकार के पहले वित्त मंत्री की कमान अमर अग्रवाल को मिली। अमर ने तीन बजट पेश किया। अमर की एक छोटी सी सियासी चूक की वजह से वित्त मंत्रालय हमेशा के लिए मुख्यमंत्री के पास चला गया। वित्त की अहमियत को समझते हुए मुख्यमंत्री रमन सिंह ने अमर के इस्तीफे के बाद इस विभाग को अपने पास रख लिया। उसके बाद सबको समझ में आ गई कि फायनेंस का क्या महत्व है। दरअसल, विभागों का सारा दारोमदार वित्त पर टिका होता है। विभागीय बजट को छोड़ भी दें नए पद से लेकर गाड़ी-घोड़ा खरीदने की फाइल पर भी वित्त से परमिशन लगता है। लिहाजा, अधिकारी से लेकर नेता, मंत्री तक वित्त विभाग के लोगों को खुश रखने की कोशिश करते हैं। सिंहदेव के बाद अमर ने इस विभाक को रेपो काफी बढ़ा दिया था। बहरहाल, अमर के बाद रमन सिंह ने पहली पारी का चौथा बजट पेश किया। इसके बाद उन्होंने 2108 तक लगातार 12 बजट प्रस्तुत कर देश में रिकार्ड बना दिया। इससे पहले किसी राज्य के वित्त मंत्री के 12 बार बजट पेश करने के दृष्टांत नहीं हैं। केंद्र में मोरारजी देसाई ने 10 बार और चिदंबरम ने 8 बार बजट पेश किया है। राज्यों में छह-सात बार से ज्यादा किसी वित्त मंत्री ने बजट पेश नहीं किया है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का लगातार यह पांचवा बजट होगा।

डीएफओ का कमाल

22 हजार करोड़ की लागत से बन रहे रायपुर-विशाखापटनम सिक्स लेन ग्रीन कारिडोर का निर्माण धमतरी डीएफओ ने क्यों रोक दिया है, ये बात केंद्रीय सड़क मंत्रालय से लेकर नेशनल हाईवे अथॉरिटी तक किसी को समझ में नहीं आ रहा है। दरअसल, जिस इलाके से एनएच गुजरना है, वहां कुछ पेड़ थे। एनएच ने किसानों को उसका मुआवजा दे दिया। कलेक्टर ने भी दो महीने पहले पेड़ काटने की अनुमति दे दी थी। मगर डीएफओ ने कम पेड़ का हवाला देकर निर्माण पर रोक नहीं लगाया बल्कि जेसीबी वगैरह जब्त कर लिया है। नेशनल हाईवे के अधिकारियों का कहना है कि पेड़ कम है, तो उससे डीएफओ को क्या परेशानी। दिक्कत यह है कि अगर प्रोजेक्ट लेट हुआ, तो निर्माण एजेंसी को प्रतिदिन के हिसाब से 20 लाख रुपए जुर्माना देना पड़ेगा। तभी एनएचए के प्रोजेक्ट डायरेक्टर ने धमतरी कलेक्टर को पत्र लिख कहा है कि ग्रीन कॉरिडोर भारत सरकार की महत्वपूर्ण परियोजना है…उच्च स्तर से इसकी मानिटरिंग हो रही है…इसे समय पर पूरा करने के निर्देश दिए गए हैं। वन विभाग जब्त मशीनों को तत्काल लौटा दे। ग्रीन कॉरिडोर के बन जाने से रायपुर-विशाखापटनम की दूरी पांच घंटे कम हो जाएगी। इस ग्रीन कारिडोर के दोनों तरफ ग्रील लगाए जाएंगे ताकि कोई मवेशी या व्हीकल अचानक बीच में न आ जाए। तभी सात घंटे में आदमी विशाखापटनम पहुंच जाएगा। अब ऐसी सड़क को डीएफओ साब ब्रेक लगा दे रहे हैं तो समझा जा सकता है, वन विभाग के अफसर क्या कर रहे हैं। हालांकि, जेसीबी जब्त कर डीएफओ फंस गए हैं। रेवेन्यू लैंड में परिवहन गाड़ियों के अलावा किसी और वाहन पर फॉरेस्ट अफसर कार्रवाई नहीं कर सकते। लेकिन, अब उनसे न निगलते बन रहा और न उगलते। सवाल उठता है, ऐसा करने के पीछे डीएफओ साब की आखिर मंशा क्या थी…इसे पता करना पड़ेगा।

अंत में दो सवाल आपसे

1. डीएम अवस्थी के इस महीने रिटायर होने के बाद एसीबी का अगला चीफ कौन बनेगा?

2. बस्तर के नारायणपुर के बाद अब कवर्धा में हिंसा…पुलिस पर हमला….इससे क्या मायने निकलते हैं?

https://npg.news/bureaucrats/tarkash-1238593