नई दिल्ली। जम्मू-कश्मीर के ईंट भट्ठों से छुड़ाए गए मजदूर बंधुआ मुक्ति प्रमाण पत्र, बकाया मजदूरी और उचित पुनर्वास की मांग को लेकर दिल्ली के जंतर-मंतर में धरने पर बैठ गए हैं। इनका आरोप है कि छत्तीसगढ़ और जम्मू-कश्मीर की सरकार उहें न्याय दिलाने की बजाय दमन का ठीक वही तरीका अपना रहे हैं, जो ईंट भट्ठे के मालिकों ने अपनाया है। मानवाधिकार आयोग ने उनकी शिकायत पर एक माह बीत जाने के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं की। अब वे सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने की तैयारी कर रहे हैं।
बीते सितंबर माह में जांजगीर-चांपा, सक्ती, बलौदाबाजार व सारंगढ़ जिले के 90 मजदूरों को बंधक बनाने का मामला सामने आया था। छत्तीसगढ़ सरकार ने उन्हें ईंट भट्ठों से लाकर उनके गांव में छोड़ दिया, पर उनका सामाजिक न्याय के लिए संघर्ष चल रहा है। मुख्यमंत्री से लेकर मानवाधिकार आयोग तक उन्होंने गुहार लगाई। एक माह बाद पुरुष मजदूर दिल्ली के जंतर-मंतर पहुंचे और आज से धरना शुरू कर दिया। वहीं महिला मजदूर अपने गांवों में भूख-हड़ताल पर हैं।
जंतर मंतर की सभा में मौजूद बंधुआ मजदूर अंबे लाल ने कहा कि जांजगीर-चांपा कलेक्टर से जब उसने अपनी गरीबी, मजदूरी, बंधक बनाने का जिक्र किया तो उन्होंने कह दिया कि तुम्हारे कर्म ऐसे ही लिखे हैं, मैं क्या करूं। बंधुआ मजदूर टेकराम ने कहा कि महिला बंधुआ मजदूरों के साथ ईंट भट्टे में हुए लैंगिक हमले को लेकर जम्मू एवं छत्तीसगढ़ सरकार पहल नहीं कर रही है जो शर्मनाक है। सुरेश ने कहा कि बड़गाम, जम्मू-कश्मीर के उपायुक्त ने बंधुआ मजदूरी प्रथा उन्मूलन कानून 1976 की प्रक्रिया नहीं अपनाई। छत्तीसगढ़ से गई टीम हमें डरा-धमका रही थी और बड़गाम प्रशासन की जी हुजूरी में लगी थी। छत्तीसगढ़ के अधिकारियों ने हमें पुनर्वास का आश्वासन दिया था पर छत्तीसगढ़ आने पर वे हमें रेलवे स्टेशन पर छोड़कर भाग गए।
नेशनल कैंपेन कमेटी फॉर इरेडिकेशन ऑफ़ बॉन्डेड लेबर के संयोजक निर्मल गोराना ने कहा कि बड़गाम के उपायुक्त रिलीज ऑर्डर देने से डर रहे हैं ताकि मजदूर कहीं किसी कोर्ट में ऑर्डर को चुनौती न दे दें। किंतु मजदूर अगला कदम सुप्रीम कोर्ट की तरफ बढ़ाएंगे। छत्तीसगढ सरकार मुक्त बंधुआ मजदूरों को कानूनी सहायता प्रदान करे ताकि जम्मू कश्मीर के बड़गाम प्रशासन से रिलीज आर्डर लिया जा सके। साथ ही 4 माह के वेतन का भुगतान सभी मजदूरों को दिया जाए। अगर बकाया वेतन मालिक नही दे पाता है तो सरकार उसका भुगतान करे।
निर्मल गोराना ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग पर इस मामले में तत्परता न दिखाने को लेकर नाराजगी व्यक्त की। उन्होंने आयोग से यह जवाब मांगा है कि वो कौन-कौन से साक्ष्य हैं जिसके आधार पर प्रशासन से लेकर छत्तीसगढ़ सरकार प्रवासी बंधुआ मजदूरों के मामले में मौन हैं। बंधुआ मजदूरों के पुनर्वास को लेकर छत्तीसगढ सरकार पोर्टल पर कोई आंकड़ा पेश नहीं कर रही है। गोराना ने बताया कि आज एक मेमोरेंडम भी प्रधानमंत्री कार्यालय एवं श्रम मंत्री को दिया गया। संगठन इस लड़ाई को जब तक न्याय नही मिलेगा तब तक जारी रखेगा।
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