परमेश्वर राजपूत@गरियाबंद। देश को आजाद हुए आज 75 वर्षों से भी ज्यादा समय बीत चुका है। लेकिन आज भी इस गांव के ग्रामीण मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं और कठिन परिस्थितियों में जीवन यापन करने मजबूर नजर आते हैं।
जी हां हम बात कर रहे हैं गरियाबंद जिले के छुरा विकास खंड के सुदूर वनांचल में बसे ग्राम पंचायत केंवटीझर के ग्राम मातरबाहरा का, जहां पूर्णतः आदिवासी समुदाय के लोग निवासरत हैं। और यह गांव छत्तीसगढ़ और उड़ीसा सीमा से लगा हुआ है।इस गांव तक पहुंचने के लिए आज भी कच्ची सड़क और नदी नाले पार कर जाना पड़ता है ये गांव तक पहुंचने के लिए आज तक पक्की सड़कें नहीं बन पाया है और तो और छोटे स्कुली बच्चों को एक मुहल्ले से दुसरे मुहल्ले में बने स्कुल में पढ़ाई करने के लिए रोज नदी पार कर पहुंचना पड़ता है और बारिश के दिनों में नदी में अधिक बाढ़ आ जाने से स्कुल नहीं जा पाने की मजबूरी होती है।
प्राथमिक शाला भवन जर्जर हो चुका है और मरम्मत कार्य के लिए पैसा शासन से मिला भी किंतु यह कार्य अधुरा पड़ा है और एक से पांच कक्षाएं एक छोटे से ब्राम्दा में संचालित होता है। वहीं आंगनबाड़ी भवन जर्जर होकर टूट जाने के बाद आंगनबाड़ी उसी प्राथमिक विद्यालय के एक छोटा-सा आफिस रूम में संचालित होता है। साथ ही प्राथमिक विद्यालय के सामने आहर्ता नहीं होने के चलते बच्चों को हमेशा जंगली जानवरों का खतरा बना रहता है। बता दें कि यहां कुछ वर्ष पहले जंगली हाथी पहुंचकर एक ग्रामीण को कुचलकर मौत के घाट उतार दिया था और स्कुल जंगल से लगा होने कारण आज भी स्कुली बच्चों को खतरा बना रहता है। हालांकि ये गांव पंचायत मुख्यालय केंवटीझर के समीप लगा हुआ है।
ऐसा नहीं है कि यहां के ग्राम वासियों ने प्रशासन और जनप्रतिनिधियों तक ये बात नहीं पहुंचाई , जिले के कलेक्टर से लेकर कई जनप्रतिनिधियों तक अपने गांव की समस्याओं से अवगत कराया लेकिन बड़ी विडंबना है कि यहां के ग्रामीणों की समस्या अभी तक दुर नहीं हो पाई है। और हर पांच साल बाद चुनाव में कोई जनप्रतिनिधि इनके बीच पहुंचे और इनकी समस्या दूर हो जाये इसी आस में इस वर्ष होने वाले चुनाव में अपनी मांगों को लेकर फिर किसी जनप्रतिनिधि की आस में इंतजार करने में लगे हुए हैं।