रायपुर। इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय में प्राध्यापकों को गलत तरीके से एरियर्स बांटे जाने का मामला एक बार फिर प्रकाश में आने के बाद चर्चा इस बात की हो रही है कि आखिर नियम कायदों की जानकारी होने के बावजूद प्राध्यापकों को किसकी अनुमति से तय समय से पहले का एरियर्स बांट दिया गया और इस मामले में क्या जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई भी होगी या फिर प्राध्यापकों से अतिरिक्त रकम की वसूली करके खानापूर्ति कर ली जाएगी।
छत्तीसगढ़ के एकमात्र कृषि विश्वविद्यालय में नियम कायदों का पालन किस तरह हो रहा है, उसका एक नमूना हाल ही में सामने आया है। यहां सालों से विश्वविद्यालय द्वारा बनाये गए अपने ही कानून का उल्लंघन होता रहा, मगर किसी को इसकी सुध नहीं रही। खुद विश्वविद्यालय के कुलपति और उनके अधीनस्थ नियम कायदों को तोड़ते रहे और उसकी अनदेखी करते रहे। और अब कहा जा रहा है कि मामले में कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
हाल ही में इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर के लेखा नियंत्रक उमेश अग्रवाल ने परिवीक्षा अवधि ख़त्म होने के बावजूद सहायक प्राध्यापकों को नहीं हटाए जाने और नियम विरुद्ध तरीके से एरियर्स दिए जाने को लेकर विभिन्न विभागों को पत्र लिखा, तब यह मामला प्रकाश में आया और संबंधितों के बीच अफरा-तफरी का माहौल निर्मित हो गया। सहायक प्राध्यापक के पद पर भर्ती के बाद 2 वर्ष की परिवीक्षा अवधि होती है और इस बीच नेट की परीक्षा क्लियर करना जरुरी होता है। इस अवधि में भी अगर परीक्षा पास नहीं हुए तो कुलपति को परिवीक्षा अवधि को 1 वर्ष तक बढ़ाने का अधिकार होता है। सच तो यह है कि इंदिरा गांधी कृषि विश्व विद्यालय में अनेक सहायक प्राध्यापकों ने नेट क्लियर करने में 8 से 9 साल लगा दिए और इस बीच उनकी परिवीक्षा अवधि को बढ़ाया जाता रहा। जबकि नियम के मुताबिक परिवीक्षा अवधि समाप्त होने के बावजूद नेट की परीक्षा पास नहीं होने पर सहायक प्राध्यापक की नौकरी स्वयं समाप्त मानी जाएगी। बताया जा रहा है कि कुछ प्राध्यापकों ने तो अब तक नेट क्लियर नहीं किया है, और वे बड़े पदों पर भी जा पहुंचे हैं।
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय में हुए इस घटनाक्रम में एक नहीं बल्कि कई गड़बड़ियां की गई हैं। कायदे से परिवीक्षा अवधि के दौरान जब नेट की परीक्षा पास की जाय तभी से संबंधित सहायक प्राध्यापक को एरियर्स दिया जाना है मगर 8 से 9 साल की परिवीक्षा अवधि के बाद नेट क्लियर करने वाले सहायक प्राध्यापकों को भी पुरानी अवधि याने नौकरी पाने के 2 साल बाद से लेकर अब तक की अवधि का भी एरियर्स बांट दिया गया। ऐसा कुलपति और कुलसचिव की जानकारी के बिना संभव ही नहीं है।
TRP न्यूज़ संवाददाता से चर्चा में विश्वविद्यालय के एक बड़े अधिकारी ने कहा है कि अगर गड़बड़ी हुई, है तो कार्रवाई भी होगी, किसी को छोड़ा नहीं जायेगा। बता दें लगभग 2 साल पहले भी यह मामला उठाया गया था, मगर तब फाइल दबा दी गई, अब भी यह मामला उठा है, तो इसके पीछे एक समूह विशेष की भूमिका बताई जा रही है, जो दबाव की रणनीति के तहत अपने स्वार्थ की सिद्धि करना चाहता है।
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर ऐसे नियम विरुद्ध कार्यों के लिए शुरू से ही चर्चा में रहा है। पहले भी यहां की गई कई गड़बड़ियां उजागर हो चुकी हैं, हालांकि अधिकांश मामलो को दबाने में संबंधित पक्ष सफल हो गए हैं। इस मामले में भी कहीं ऐसा न हो, यह आशंका बलवती हो रही है, क्योंकि कई सालों से चल रही इस गड़बड़ी के दौरान पूर्व कुलपति एस के पाटिल और अन्य कई वरिष्ठ अधिकारी पदस्थ रह चुके हैं, ऐसे में जिम्मेदारी किसके ऊपर थोपी जाएगी। फिर कहीं ऐसा न हो कि सहायक प्राध्यापकों से अतिरिक्त एरियर्स की वसूली कर ली जाये और जिम्मेदारों को छोड़ दिया जाये। एक महत्वपूर्ण सवाल यह भी उठता है कि जिन सहायक प्राध्यापकों ने अब तक नेट क्लियर नहीं किया है, उनके बारे में प्रबंधन क्या फैसला लेगा?
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