कूनो में चीतों के आने के बाद वैसे ही एशियाई शेरों को लाने की चर्चा लगभग खत्म हो गई है, लेकिन अब केंद्र सरकार ने भी सुप्रीम कोर्ट से एशियाई शेरों को कूनो में रखने के लिए अपने वर्ष 2012 के फैसले पर पुनर्विचार का अनुरोध किया है।
केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट को दिए गए आवेदन में फिलहाल जिन तर्कों के आधार पर यह अनुरोध किया है कि उनमें कहा है कि कूनो काफी छोटा है। ऐसे में वहां सिर्फ एक ही कोई बड़ा वन्यजीव रह सकता है। ऐसे में जब चीता को वहां बसा दिया गया है, तो एशियाई शेरों को कैसे रखा जा सकता है। वैसे इन दोनों को साथ-साथ रहने में कोई दिक्कत नहीं है। दक्षिण अफ्रीका में दोनों साथ साथ रहते है। ऐसे में अगले छह महीने के भीतर इसे लेकर एक विशेषज्ञ रिपोर्ट भी सौंपी जाएगी।
केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय और एनटीसीए (नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथारिटी) ने इस दौरान कोर्ट से यह भी अनुरोध किया है कि चीता प्रोजेक्ट को लेकर गठित विशेषज्ञ कमेटी की अब कोई जरूरत नहीं है। देश में चीता अब आ चुका है। इसकी देखरेख के लिए अलग-अलग स्तरों पर कमेटी बना दी गई है। ऐसे में इस फैसले पर कोर्ट फिर से विचार करें। सूत्रों की मानें तो कोर्ट जल्द ही इस मुद्दे पर सुनवाई कर सकता है।
मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट से किए गए अनुरोध में यह भी स्पष्ट किया है कि एशियाई शेरों को गुजरात के गिर अभयारण्य से मध्य प्रदेश के कूनो अभयारण्य में रखने का फैसला उनकी सुरक्षा के लिहाज से लिया गया था। लेकिन मौजूदा समय में गिर में शेरों को सुरक्षित रखने की जो योजना बनाई गई है, उनमें वह न सिर्फ सुरक्षित है बल्कि उनकी आबादी भी तेजी से बढ़ रही है। पिछले सालों में इनकी आबादी में 29 फीसद की वृद्धि हुई है। इसके साथ ही इसके क्षेत्र को भी गिर अभयारण्य के आसपास ही विस्तार दिया जा रहा है। इस प्रोजेक्ट पर तेजी से काम किया जा रहा है।
गौरतलब है कि कूनो अभयारण्य को केंद्र सरकार ने एशियाई शेरों के लिए ही विकसित किया था। हालांकि बाद में जब यहां शेरों के आने का बारी आयी तो इसे लेकर विवाद खड़ा हो गया। इसके पीछे जो योजना थी वह एशियाई शेरों की प्रजाति को भविष्य के किसी भी संकट से बचाने को लेकर थी। मौजूद समय में एशियाई शेर सिर्फ गिर में ही पाए जाते है।
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