रवि तिवारी@देवभोग। जिले के मैनपुर ब्लॉक के गोहरापदर और देवभोग ब्लॉक के घोघर और मुंगिया गॉव में होलिका दहन के बाद आस्था और श्रद्धा के चलते ग्रामीण धधकते हुए अंगारों के ऊपर नंगे पैर चलते हैं। इस काम में युवाओं से लेकर उम्रदराज बुजुर्ग तक पीछे नहीं रहते। ग्रामीणों का दावा है कि आग पर चलने के बाद भी किसी ग्रामीण के ना तो पैर जलते हैं और न ही कोई और परेशानी होती है। सभी ग्रामीण बारी-बारी से आग पर से निकलते हैं।
मामला देवभोग ब्लॉक के घोघर,मुंगिया और ग्राम पंचायत गोहरापदर का है। घोघर में ग्रामीण पिछले कई साल से होली पर आग पर से निकलते आ रहे हैं, वहीं गोहरापदर में करीब सौ सालों से ये परंपरा चली आ रही है। युवा व बुजुर्ग जलते हुए अंगारों पर ऐसे चलते हैं, मानो जैसे फूलों पर चल रहे हो।
परम्परा को पूरी श्रद्धा के साथ निभाते है ग्रामीण-:
ग्रामीण अपनी इस परंपरा को पूरी श्रद्धा से निभाते आ रहे हैं। घोघर गॉव के चौराहे पर विधि विधान के साथ पूजा अर्चना के पश्चात ग्रामीणों के सहयोग से होलिका दहन किया जाता है। पंचायत के सरपंच व गॉव के पुजारी बृजलाल सोरी ने बताया कि यह परम्परा कई साल पुरानी है.. बृजलाल के मुताबिक होलिका दहन के बाद सबसे पहले धधकते हुए अंगारों पर वे खुद चलते है.. इसके बाद पुरे गॉव के लोग देवी का जयकारा करते हुए अंगारों के बीच से होकर गुजरते है.. ग्रामीण घनश्याम सोनवानी की माने तो अंगारों के बीच से होकर गुजरने पर ठंडकता का अहसास होता है.. घनश्याम ने बताया कि गॉव की सुख समृद्धि की कामना कर सभी ग्रामीण अंगारों के बीच चलकर गुजरते है…
होलिका दहन के बाद अंगारों पर चलने की प्रथा है-:
होलिका दहन के बाद धधकते हुए अंगारों के ऊपर से नंगे पैर चलने का सिलसिला करीब सौ वर्षों से चल रहा है। इसके शुरू होने के पीछे का कारण ग्रामीण प्राकृतिक आपदाओं से गॉव को बचाना मानते है..वहीं आस्था इतनी है कि पर्व आने के कई दिन पहले से ही ग्रामीणों द्वारा तैयारियां शुरू कर दी जाती हैं। बड़ी संख्या में ग्रामीण इस आयोजन में भाग लेते हैं।
नहीं आती प्राकृतिक आपदा, ऐसी है मान्यता-:
गोहरापदर के वरिष्ठ नागरिक जुगधर यादव,पूर्व विधायक गोवर्धन मांझी और गुरुनारायण तिवारी से जब हमने इस बारे में पूछा, तो उनका कहना था कि इस प्रथा की वजह से गांव में कभी कोई प्राकृतिक आपदा नहीं आती है। सुख-शांति-समृद्धि के लिए हमारे बुजुर्गों द्वारा सैकड़ों वर्षों से इस परंपरा को निभाया जा रहा है। इसी मान्यता के चलते प्रत्येक वर्ष होली दहन के बाद यह आयोजन ग्रामीणों द्वारा किया जाता है।