बिलासपुर—विचार मंच की ‘इक्कीसवीं शताब्दी में भारत की अर्थव्यवस्था’ विषय पर राष्ट्रीय पाठशाला में कार्यक्रम का आयोजन किया गया। गोष्ठी में सुंदरलाल विश्वविद्यालय के प्राध्यापक शोभित बाजपेयी ने विषय वस्तु पर अपनी बातों को विस्तार के साथ पेश किया। वाजपेयी ने बताया कि हमारा भारत हर शताब्दी का भारत है। आज भी हमारे देश में 17 वीं, 18 वीं और 19 वीं शताब्दी के कुटीर उद्योग मिल जाएंगे। उन्होने चिंता और खुशी जाहिर करते हुए कहा कि देश समृद्धि के रास्ते पर तेजी के साथ चल तो रहा है। लेकिन कल्याणकारी अवधारणा की जगह उदारीकरण अवधारणा ने कब्जा करना शुरू कर दिया है।
सीएमडी महाविद्यालय के पास राष्ट्रीय पाठशाला में इक्कीसव शताब्दी में भारत की अर्थव्यवस्था पर व्याख्यान का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में पंडित सुन्दरलाल शर्मा विश्वविद्यालय प्राध्यापक ने विषय वस्तु पर विस्तार के साथ प्रकाश डाला। वाजपेयी ने बताया कि हमारा भारत हमेशा भारत ही रहा है। आज भी हमारे देश में 17 वीं से लेकर 19 सदी की परम्परा उद्योग देखने को मिलता है। वैसी ही परम्पराओं का पालन करते जनजातियां भी मिल जाएंगे। जैसी उस युग में हुआ करती थी।
वाजपेयी ने कहा कि 1947 का भारत टूटा-फूटा और अस्त-व्यस्त था। जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में धीरे-धीरे पंच वर्षीय योजनाओं के माध्यम से भारत विकास की पटरी पर आया। इस दौरान देश ने बहुत से उतार-चढ़ाव देखे हैं। अनेक समस्याओं का सामना किया है। देश करीब लगभग तीस वर्षों तक अन्न की कमी से जूझा। हरित क्रांति और श्वेत क्रांति आई। हमारा देश कई दिशाओं में तेजी के साथ आगे बढ़ा…आत्मनिर्भर बना।
चीन और पाकिस्तान से हुए युद्धों ने हमारी अर्थ व्यवस्था को पीछे धकेला है। 1980 से 1991 तक के काल में आर्थिक समृद्धि की शुरुआत हुई।. कल्याणकारी राज्य की अवधारणा की जगह उदारीकरण और निजीकरण की अर्थ व्यवस्था शुरू हो गयी। देश में मिश्रित अर्थथव्यवस्था के स्थान पर पूंजीवाद का कब्जा हो गया। अब हमारा देश समृद्धि के रास्ते पर चल पड़ा है लेकिन यह समृद्धि किसके पैरों पर चढ़ कर आ रही है। यह बड़ा प्रश्न है।
वाजपेयी ने बताया कि देश की आबादी लगातार बढ़ रही है। साथ ही उसी रफ्तार से बेरोजगारी भी बढ़ रही है। कंप्यूटर और आर्टिफीशियल इंटेलीजेंस के उपयोग ने मनुष्य को काम करने के रास्ते से हटा दिया है। सरकार अब रोजगार देने वाली नहींं है। निजी क्षेत्रों के कारखानों में भी मनुष्यों की लगातार छटनी हो रही है। 2024 की चमक-धमक के पीछे काले पन्ने हैं जो दिखाई नहीं पड़ रहे हैं। 10 प्रतिशत लोगों के पास देश की 90 प्रतिशत सम्पत्ति है। 22 प्रतिशत देशवासी गरीबी रेखा के नीचे हैं।
वाजपेयी ने दुहराया कि सबसे बड़े संकट में देश का मध्यवर्ग है। जिसकी कोई देखने-सुनने वाला नहीं है। देश का सबसे अधिक टेक्स देने वाला वर्ग ही लगातार शोषण का शिकार हो रहा है। सरकार धनाड्य और गरीब के बारे में सोचती है लेकिन मध्यवर्ग की चिंता नहीं करती।