नई दिल्ली. दिल्ली हाई कोर्ट ने 2004 में हुई हत्या के एक मामले में सबूत नष्ट करने के आरोप से एक व्यक्ति को बरी कर दिया. कोर्ट ने माना कि अपराध से जोड़ने के लिए कोई सबूत नहीं होने के बावजूद उसने कई वर्षों तक मुकदमे का सामना किया.
जस्टिस स्वर्णकांता शर्मा ने निचली अदालत के 2011 के फैसले को चुनौती देने वाले विजय वहादुर की अपील को मंजूर कर लिया, जिसमें उसे आपराधिक साजिश रचने और सबूतों को नष्ट करने के लिए दोषी ठहराया गया था.
उच्च न्यायालय ने कहा कि बहादुर को सबूतों को नष्ट करने के लिए स्वतंत्र रूप से दोषी नहीं ठहराया जा सकता था क्योंकि आईपीसी की धारा 302 (हत्या) के तहत मुख्य अपराध खुद किसी भी आरोपी व्यक्ति के खिलाफ स्थापित नहीं किया गया है, इसके अलावा जांच में अन्य कमी और पूरक दायर करने का तरीका (ट्रायल) अदालत के मौखिक निर्देश पर वर्तमान अपीलकर्ता के खिलाफ चार्जशीट.
“आक्षेपित फैसले (ट्रायल कोर्ट के) से ही कुछ असामान्य और दिलचस्प तथ्य सामने आए हैं और सबसे स्पष्ट यह है कि वर्तमान अपीलकर्ता के खिलाफ वर्तमान मामले में पूरक चार्जशीट संबंधित ट्रायल कोर्ट के मौखिक निर्देश पर दायर की गई थी.
उच्च न्यायालय ने कहा, “यह आपराधिक न्यायशास्त्र या आपराधिक अदालतों में अपनाई जाने वाली प्रक्रिया के बारे में अनसुना है. इस तथ्य का उल्लेख निचली अदालत ने अपने फैसले में ही किया है.”